रोग निवारण एवं स्वास्थ्य संवर्द्धन की यज्ञोपचार प्रक्रिया-6

July 2001

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यह विज्ञान के अनेकों पक्ष हैं। इसमें मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि के साथ-साथ शारीरिक रोगों के निवारण में भी असाधारण सफलता मिलती है। स्वास्थ्य संवर्द्धन की यह यज्ञोपचार प्रक्रिया इतनी सरल और उपयोगी है कि इसके आधार पर मारक और पोषक दोनों ही तत्त्वों को शरीर के विभिन्न अंग-अवयवों में आसानी से पहुँचाया जा सकता है। विभिन्न औषधीय वनस्पतियों, पोषक द्रव्यों की हवि से हर कोई व्यक्ति बल, पोषण एवं रोगनिरोधक शक्ति प्राप्त कर सकता है तथा आगत व अनागत विभिन्न रोगों से बचकर दीर्घायुष्य ऊर्जा के साथ सूक्ष्मीभूत हुए औषधीय एवं पोषक तत्त्व साँस के साथ सीधे रस-रक्त में शीघ्रता से मिल जाते हैं और जीवकोशाओं को प्रभावित कर शरीर के रोग प्रतिरोधी क्षमता की अभिवृद्धि एवं जीवनी शक्ति का विकास असाधारण रूप से करते हैं। मन-मस्तिष्क से संबंधित सिर दर्द, आधासीसी, अनिद्रा, सनक, पागलपन, उन्माद आदि एवं नासिका, गला, फेफड़े आदि से संबंधित सरदी, जुकाम, खाँसी, दमा, ब्रौंकाइटिस, क्षय आदि रोगों में देखते-देखते लाभ पहुँचता है। गहन अध्ययन-अनुसंधानों के पश्चात् देखा गया है कि जिन स्थानों पर नित्य निरंतर यज्ञ होता रहता है, वहाँ क्षय, प्लेग जैसी महामारियों के जीवाणु-विषाणु पनपते तक नहीं हैं।

अखण्ड ज्योति के गत अंक में बताया गया है कि किस प्रकार से यज्ञोपचार प्रक्रिया द्वारा विविध प्रकार के ज्वरों से छुटकारा पाया जा सकता है। यहाँ पर सरदी, जुकाम, खाँसी, दमा-ब्रौंकाइटिस, क्षय आदि से लेकर त्वचा रोग, प्रदर प्रमेह आदि रोगों की यज्ञ चिकित्सा के संबंध में वर्णन किया जा रहा है।

(1) सरदी, जुकाम, बुखार की विशेष हवन सामग्री-

सरदी-जुकाम के साथ ही यदि बुखार आता हो तो निम्नलिखित औषधियों को समान मात्रा में लेकर हवन सामग्री बनाकर सूर्य गायत्री मंत्र के साथ कम-से-कम चौबीस बार नित्य हवन करना चाहिए। गत अंकों में वर्णित ‘काँमन हवन सामग्री’ नंबर-1 को भी रोगानुसार तैयार की गई सभी प्रकार की विशिष्ट हवन सामग्री में बराबर मात्रा में मिश्रित कर तब हवन किया जाता है, इस बात को भी सदैव ध्यान में रखना चाहिए। इस काँमन हवन सामग्री में अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गूगल, चिरायता, गिलाय एवं अश्वगंधा आदि वनौषधियाँ मिली होती हैं। घी, जौ, शक्कर हवन करते समय अलग से मिलाए जाते हैं।

सरदी-जुकाम, बुखार की विशेष हवन सामग्री इस प्रकार है-

(1) दूब (2) पोस्त (3) कासनी (4) चिरायता (5) कालममेध (6) शरपुँखा (7) सप्तपर्णी (8) भुईं आँवला (9) पटोल पत्र (10) नीमछाल (11) कटु (12) कुटकी (13) आर्टीमीसिया (14) तुलसी पत्र (15) वासा (16) भारंगी (17) कंटकारी (18) मुलहठी।

हवन करने के साथ ही उक्त सभी अठारह औषधियों के बारीक पिसे एवं कपड़छन पाउडर को सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुनगुने जल के साथ रोगी को खिलाते रहना चाहिए। इससे सरदी-जुकाम में तत्काल लाभ मिलता है।

(2)जुकाम की विशेष हवन सामग्री- (खाँसी, ठंड लगना, हाथ-पैर में टूटन आदि में)

(1) दूर्वा घास (दूब) (2) कासनी (3) सौंफ (4) उन्नाव (5) बहेड़ा (6) धनिया (7) तुलसी पत्र (8) अंजीर (9) गुलाब के फूल (10) गुल बनफ्शा (11) तुलसी की मंजरी (12) चिरायता।

इन सभी बारह चीजों के सूक्ष्मीकृत पाउडर को सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुनगुने जल के साथ जुकाम पीड़ित व्यक्ति को हवन के पश्चात् देते रहने से शीघ्रता से आराम मिलता है।

(3)खाँसी की विशेष हवन सामग्री- (सरदी, जुकाम एवं संबंधित ज्वरों पर)

इसके लिए निम्नलिखित औषधियों को बराबर मात्रा में मिलाकर हवन सामग्री तैयार की जाती है।

(1) मुलहठी (2) पान की जड़(कुरदान) (3) हल्दी (4) अनार (5) कंटकारी (6) वासा (7) बहेड़ा (8) उन्नाव (9) अंजीर की छाल (10) काकड़ासिंगी (11) बड़ी इलायची (12) कुलंजन (13) तुलसी की मंजरी (14) गिलोय (15) दालचीनी (16) लौंग (17) मुनक्का (18) पिप्पली।

हवन के साथ-साथ उक्त अठारह चीजों को समान मात्रा में मिलाकर बनाए गए कपड़छन चूर्ण को सुबह एवं शाम को एक-एक चम्मच शहद को साथ रुग्ण व्यक्ति को खिलाते रहना चाहिए।

(4)खाँसी-अस्थमा-दमा-क्रॉनिक ब्रौंकाइटिस आदि रोगों की विशिष्ट हवन सामग्री-

अस्थमा की आरंभिक अवस्था से लेकर ‘क्रॉनिक’ अवस्था तक के लिए निम्नाँकित वनौषधियों को बराबर मात्रा में लेकर जौकुट हवन सामग्री बनाकर नित्य प्रातः हवन करने एवं शाम को इसी हवन सामग्री से अग्निधूप देने से शीघ्र लाभ मिलता है। सामग्री के घटक तत्त्व इस प्रकार हैं- (1) धाय के फूल (2) पोस्त के डोड़े (3) बबूल की छाल (4) मालकाँगनी (5) बड़ी इलायची (6) तुलसी पंचाँग (7) वासा-अडूसा के पत्ते (8) आक के पीले पत्ते (9) नागरमोथा (10) कंटकारी (11) काकड़ासिंगी (12) लौंग (13) भाँग (14) बहेड़े का छिलका (15) चिरायता (16) अपामाग्र के बीज (17) धनिया (18) अजवायन (19) चंदन (20) हल्दी (21) इंद्र जौ (22) सोंठ (23) छोटी पीपल (24) अतीस।

हवन के साथ ही इन सभी चौबीस चीजों को मिलाकर बनाए गए कपड़छन चूर्ण को सुबह चीजों को मिलाकर बनाए गए कपड़छन चूर्ण को सुबह एवं शाम को एक-एक चम्मच शहद के साथ खिलाते रहने से दूना लाभ मिलता है और अस्थमा रोग धीरे-धीरे सदा के लिए समूल नष्ट हो जाता है।

(5)उष्णता की विशिष्ट हवन सामग्री- (शरीर में गरमी की अधिकता एवं संबंधित रोगों पर)

शरीर में उष्णता अधिक बढ़ जाने पर निम्नाँकित औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर हवन सामग्री बनाई जाती है और नित्य प्रातः सूर्य गायत्री मंत्र के साथ हवन किया जाता है।

(1) धनिया (2) कासनी (3) बन गुलाब के फूल (4) आँवला (5) खस (6) खसखस (पोस्तबीज) (7) सौंफ (8) बनफ्शा।

हवन के बाद इन सभी आठ चीजों को मिलाकर बनाए गए सूक्ष्म पाउडर को सुबह-शाम एक-एक चम्मच जल से खिलाने से तत्काल लाभ मिलता है।

(6) रक्त विकार की विशेष हवन सामग्री-

इसमें निम्नलिखित औषधियाँ मिलाकर हवन सामग्री तैयार करते हैं-

(1) धमासा (2) सारिवा (3) कुटज छाल (कुड़ा) (4) अडूसा (वासा) (5) शरपुँखा (6) मजीठ (7) कुटकी (8) रास्ना (9) खदिर (खैर) (10) शीतल चीनी (11) चोपचीनी (12) नीम के फूल या पत्ते (13) दारु हल्दी (14) कपूर (15) चकोड़ा के बीज (चक्रमर्द बीज) (16) चमेली के पत्ते (17) बाकुची (18) जवासा (19) कालमेध।

हवन के पश्चात् सभी बाईस चीजों को मिलाकर कपड़छन किया हुआ पाउडर सुबह शाम एक-एक चम्मच जल के साथ रोगी को खिलाते रहने से तत्काल लाभ मिलता है। रक्त विकार में परहेज का विशेष ध्यान रखना चाहिए और प्रभावित व्यक्ति को खटाई एवं तली-भुनी चीजें नहीं खानी चाहिए।

(7)चर्म रोग-दाद, खाज, खुजली, एलर्जी आदि की विशिष्ट हवन सामग्री-

इसके लिए निम्नलिखित औषधियों को समान मात्रा में लेकर हवन सामग्री बनाई जाती है-

(1) शीतल चीनी (2) चोपचीनी (3) नीम के फूल या पत्ते (4) चमेली के पत्ते (5) दारु हल्दी (6) कपूर (7) मेथी के बीज (8) पद्माख (9) मेंहदी के पत्ते (10) चक्रमर्द (चकोड़ा) के बींज

उक्त सभी दस चीजों को नित्य हवन करने के पश्चात् समान मात्रा में मिलाकर बनाए गए बारीक कपड़छन पाउडर को सुबह एवं शाम एक-एक चम्मच जल के साथ खाते या खिलाते रहना चाहिए। रक्त विकार की तरह ही त्वचा रोग में भी परहेज करना आवश्यक है। इसमें भी खटाई, तली-भुनी चीजें एवं गरिष्ठ पदार्थ नहीं खाने चाहिए।


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