ब्रह्मज्ञानी रामानुज उन दिनों धर्मप्रचार की पदयात्रा पर थे। रात्रि में जहाँ रुके वहाँ एक व्यक्ति प्रेत बाधा से पीड़ित मिला। वह स्वयं आवेशग्रस्त रहता और उन्माद कृत्य से सभी व्यक्तियों को भी दुःख देता।
लोग उसे रामानुज के पास लाए। उन्होंने प्रेत से पूछा, वह पूर्व जन्म में कौन था और क्यों इन दिनों कष्ट सहता और कष्ट देता है।
प्रेत ने कहा, “वह विद्वान् था, पर विद्या का लाभ केवल स्वार्थपूर्ति में ही करता रहा। इस कारण ब्रह्मराक्षस बना और इस उद्विग्नता में जलने लगा।”
रामानुज ने प्रेत का मार्गदर्शन किया, समाधान कराया और विद्यादान का केंद्र स्थापित कराने के उपचार से सभी को उस विपत्ति से छुड़ाया।