स्नेह एवं श्रद्धा का विषय (kahani)

July 2001

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गुरु-शिष्य की इस परंपरा में परमपूज्य गुरुदेव एक ऐसी ही दिव्य सत्ता के रूप में हम सबके बीच आए। अनेकों व्यक्तियों ने उनका स्नेह पाया, सामीप्य पाया, पाय बैठकर मार्गदर्शन पाया, अनेक प्रकार से उनकी सेवा करने का अवसर मिला, पर जो उनके विचारों को उनका स्वरूप समझकर उनके निर्देशों के अनुरूप चलता रहा, उसे यह सब न भी मिला हो, तो भी आत्मिक प्रगति के पथ पर चल पड़ने का मार्गदर्शन मिला। ऐसे व्यक्ति साधना क्षेत्र में ऊँचाइयों को प्राप्त होंगे। गुरु जो कहे बिना कोई विकल्प प्रस्तुत किए, बिना कोई तर्क किए उसे करना ही साधना है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-गुरु के वचन प्रतीत न जेहिं, सपनेहुँ सुलभ न तेहिं।

प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री ने अपने जीवन के रोचक प्रसंग सुनाते हुए बताया-

“जब मैं पहली बार अपने पति के साथ रूस यात्रा के लिए तैयार हुई, तो मुझे बड़ा डर लग रहा था। मैं सोच रही थी कि मैं सीधी-सादी भारतीय गृहणी हूँ। राजनीति का मुझे ज्ञान नहीं, विदेशी तौर-तरीकों का पता नहीं। कहीं मुझसे कोई ऐसे प्रश्न न किए जाएँ, जिसका उत्तर मैं ठीक से न दे पाऊँ और तब मेरे पति अथवा देश का गौरव कुछ घटे अथवा उनकी हँसी हो। किंतु फिर मैंने यह निश्चय करके अपना डर दूर कर लिया कि मैं एक महान् देश के प्रधानमंत्री की पत्नी के रूप में अपने प्रस्तुत नहीं करूंगी। मैं तो सबके सामने अपने को एक साधारण भारतीय गृहणी के रूप में रखूँगी। मैंने जाकर अपने को एक गृहणी के रूप में ही पेश किया। वहाँ के अच्छे लोगों ने मुझसे घर-गृहस्थी के विषय में ही बातचीत की, जिसका उत्तर देकर मैंने सबको संतुष्ट कर दिया। इस प्रकार मैंने एक बहुमूल्य अनुभव यह पाया कि मनुष्य वास्तव में जो कुछ है, यदि उसी रूप में दूसरों के सामने पेश करे, तो उसे कोई असुविधा नहीं होती और उसकी सच्ची सरलता उपहास का विषय न बनकर स्नेह एवं श्रद्धा का विषय बनती है।”


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