अजीब हैं ये सनकें, विचित्र हैं ये शौक

July 2001

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सामान्यतः मनुष्य सामाजिक नीति-नियमों के आधार पर ही अपना मानदंड बनाता है। इन्हीं नियमों के अनुरूप अपने क्रियाकलापों एवं गतिविधियों को संचालित एवं नियंत्रित करता है, पर कभी-कभी व्यक्ति इन नियम, कानूनों से परे कुछ अजीब सोचने एवं करने लग जाता है। मन का आवेग किसी विशेष पहलू पर वेगवान हो जाता है। यह विधेयात्मक भी हो सकता है एवं निषेधात्मक भी। प्रायः निषेधात्मक स्वरूप को सनक के रूप में जाना जाता है और ऐसे व्यक्तियों को सनकी कहते हैं। समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। इस दायरे में विशिष्ट एवं प्रसिद्ध लोग भी आते हैं।

पहले जमाने में बादशाहों की सनकें भी बड़ी विचित्र प्रकार की थीं। संसार का सर्वाधिक पेटू बादशाह रोम का बिटेलियस माना जाता है। जिसकी एक दिन की खुराक का खरच तीन लाख पचहत्तर हजार डालर था। वह बुलबुलों की जीभ और मोरों का दिमाग बड़े चाव से खाता था। इतना खाने वाले बादशाह ने अपनी माँ को इसलिए भूखों मार डाला, क्योंकि उसे किसी ज्योतिषी ने बताया था कि यदि उसकी माँ का शीघ्र स्वर्गवास हो जाए, तो वह अधिक दिन सुख से शासन करेगा।

जरा-सा प्रसन्न हुए तो बड़े-बड़े इनाम दे दिए और नाराज हुए तो देश निकाला कर दिया। बादशाहों के लिए यह साधारण बात थी। भारत पर सत्रह बार हमला करने वाले और सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को तोड़कर सोना-चाँदी एवं हीरे-जवाहरात अपने देश ले जाने वाले मुहम्मद गजनवी को बहुत प्रिय थी। वह अंसारी को सदैव अपने साथ रखता था। एक बार गजनवी अपनी बेगमों के बीच बैठा हँसी-मजाक कर रहा था। अंसारी ने समयानुकूल एक शानदार नज्म सुना दी। गजनवी बड़ा प्रसन्न हुआ एवं उसे इनाम देने के लिए शाही खजाने ले गया। वहाँ हीरे-जवाहरात की चकाचौंध करने वाले ढेरों को देखकर अंसारी का मुँह खुला-का-खुला रह गया। गजनवी ने अंसारी को हुक्म दिया कि वह अपना मुँह इसी प्रकार खुला रखे। मुहम्मद गजनवी ने उसका मुँह अमूल्य रत्नों से भर दिया। उसने ऐसा तीन बार किया। इसकी कीमत उस समय एक करोड़ से अधिक थी।

जिसके सिर पर मौत का साया पड़ा हो, वह भी बादशाह की सनक के परिणामस्वरूप समृद्ध हो सकता है। ऐसा सौभाग्य गरीब बनौदी को बादशाह नादिरशाह के द्वारा प्राप्त हुआ। ईरान का शहंशाह नादिरशाह अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। उसने जब भारत पर आक्रमण किया, तो चारों ओर हाहाकार मच गया। उसकी सेनाओं ने तबाही मचा दी थी। ऐसे समय भागते समय बनौदी को कुछ न सूझा एवं वह एक पेड़ पर चढ़ गया। संयोग की बात थी कि नादिरशाह की सेना ने रात्रि विश्राम हेतु उसी स्थान पर पड़ाव डाला और उस पेड़ के नीचे बादशाह का हरम यानि अंतःपुर की बेगमों का खेमा लगा। ऊपर बनौदी प्राणों की खैर मनाता पेड़ से चिपका बैठा था और नीचे बादशाह की बेगमें।

बनौदी इसी प्रकार रात गुजारना चाहता था, परंतु भाग्य को कुछ और मंजूर था। आधी रात को एक सैनिक की नजर उस पर गई और उसने तत्काल खतरे का बिगुल बजा दिया। बनौदी घबराहट में पेड़ से नीचे गिर पड़ा। नादिरशाह के पास उसे पेश करने पर पहले तो बादशाह ने तलवार खींचनी चाही, लेकिन तत्काल अपना निर्णय बदलकर हुक्म दिया कि पूरा हरम ही बनौदी को सौंप दिया जाए। बादशाह की इस सनक ने दरिद्र बनौदी को हीरे-जवाहरात से लदी तैंतीस बेगमों तथा गुलामों का मालिक बना दिया।

रूस के बादशाह के सनक की एक और कहानी दाढ़ी के बारे में है। रूस के सम्राट् पीटर महान् को दाढ़ी से चिढ़ हो गई थी। वह अपनी जेब में उस्तरा रखता था और जो भी दढ़ियल आदमी राजमहल में प्रवेश करे, उसकी दाढ़ी अपने हाथों से मूँड़ देता था।

दाढ़ी की भाँति संसार में मूँछों का भी अपना अलग इतिहास है। मूँछें मर्दानगी की शान मानी जाती हैं और इससे व्यक्तित्व की अपनी पहचान बनती है। हिटलर, चर्चिल, चार्ली चैपलिन की मूँछें जहाँ सूक्ष्मता के कारण प्रसिद्ध हैं, वहीं हमारे देश के खूँखार डाकू सरदार माधोसिंह, मोहरसिंह, तहसीलदार सिंह एवं मलखानसिंह आदि की बड़ी मूँछें उनकी क्रूरता एवं दबंगता को दर्शाती हैं। राजेंद्रकुमार उर्फ दुकार की मूँछ का कारनामा कुछ निराला है। राजेंद्र कुमार तिवारी अपनी मूँछ में मोमबत्ती फँसाकर उन्हें जलाते हैं। इनकी मूँछें तबले की थाप के इशारे पर नृत्य करती हैं। 33 वर्षीय इन महाशय का कहना है कि बारह साल की कठिन साधना के उपराँत ही वे विद्या में पारंगत हो सके। वह अपनी मूँछ में प्लास्टिक की क्लिपों के द्वारा जलती मोमबत्ती रखकर तबले की थाप पर शास्त्रीय नृत्य कराते हैं। जापान, चीन, कोरिया आदि देशों के दूरदर्शन केंद्र इन पर वृत्तचित्र भी बना चुके हैं। इस मूँछ नृत्य के लिए उन्होंने अपने सारे दाँत भी उखड़वा दिए हैं।

मूँछों का रिकार्ड प्रौढ़ तथा वृद्ध व्यक्तियों के नाम ज्यादातर दर्ज है। परंतु लंबी मूँछ की दास्तान भी बड़ी अजीबोगरीब है। उनतालीस वर्षीय एक महाशय ने तो 8 फीट 10 से.मी. की लंबी मूँछ बढ़ाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। वर्तमान में टेलीफोन मैकेनिक पद पर कार्यरत रामचंद्र को मूँछ बढ़ाने का बड़ा शौक है। इसी सनक के कारण वह 16 वर्ष की उम्र से उसे बढ़ाते चले जा रहे हैं। उन्होंने अपनी मूँछ को सन् 1980 के अंत में बढ़ाने का निश्चय किया था। प्रतिदिन की परवरिश से बढ़ी अपनी इस मूँछ को वह कानों में लपेटकर रखते हैं।

सामान्यतः व्यक्ति रोटी, दाल, चावल आदि खाता है। लेकिन कोई साइकिल खा जाए या पूरी टोकरी कच्ची सब्जी खा जाए, तो इसे आश्चर्य ही कहा जाएगा। भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थान जगन्नाथपुरी में एक ऐसा आदमी दिखाई दिया, जो शक्ल-सूरत में आदमी जैसा है, पर उसका आचरण विचित्र है। 43 साल का यह व्यक्ति पश्चिम बंगाल के हुगली जिले से पुरी आया था। वह हजारों लोगों के सामने चार ईंटें, कुछ पत्थर, पत्ते, पंद्रह गोभी, केले का पेड़, कागज, कपड़े, पचास किलो कच्ची सब्जी, सेलून के कटे हुए बालों का ढेर आसानी से खा गया। इस खबर के प्रसारित होते ही पुरी के पुलिस अधीक्षक के निर्देश से उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस जीप में जब उस ले जाया जा रहा था, तो लक्ष्मी बाजार के निकट भूख के मारे चिल्लाने लगा। पुलिस की निगरानी में उसे सब्जी बाजार में छोड़ दिया गया। वहाँ उसने तुरंत पंद्रह गोभी, दस लौकी, तीन बड़े कद्दू, ढेर सारे सेव व अंगूर खा गया। इसे देखकर सब्जी मंडी डर के मारे खाली हो गई। यह दावा करता है कि दस हजार रुपये देने पर वह एक आदमी का शव भी आराम से खा लेगा।

इस विचित्रता की दौड़ में सर्वभक्षक फ्राँसवासी लोटिटो उर्फ मैगेटाउट बहुत आगे हैं। ये धातु, प्लास्टिक तथा कांच को निगल जाते हैं। इनकी आँत की एक्सरे रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है। ग्रेनब्रेन स्थित मेडीकल हिस्ट्री में इसके बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। एक बार तो मैगेटाउट पूरी साइकिल को ही खा गए। हालाँकि इसे खाने में उन्हें छह दिन लगे। उनका कहना है कि मैंने साइकिल को फ्रेम से खाना शुरू किया। बाद में हथौड़ी से तोड़-तोड़कर सारी साइकिल खा गया। केवल टायर एवं ट्यूब को खाने में थोड़ी दिक्कतें हुईं। इसको खाते समय बेहिसाब पानी पीना पड़ा। सुलगती हुई सिगरेट, रेजर, ब्लेड आदि को खाने में उन्हें कुछ लगता ही नहीं। इसी क्रम में वह एक पूरा का पूरा जहाज भी खा गए।

सनक की ये कहानियाँ विचित्र, रोचक, आश्चर्यजनक होने के साथ ही हैरत-अंगेज भी लगती है। इसके निषेधात्मक पहलुओं के साथ इससे जुड़ा एक सत्य भी है और वह सत्य यह है कि मनुष्य अपनी प्रबल इच्छाशक्ति के साथ कुछ भी कर सकता है। बस बात है अपनी सोच को सही और उचित दिशा में मोड़ने की।


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