गुरु ने शिष्य को साथ-साथ दो ध्यान करने का निर्देश दिया, एक गणेश का, दूसरा कुबेर का।
शिष्य ने बहुत प्रयत्न किया, पर दोनों एक साथ न बन पड़ते। जब एक की छवि में तन्मयता आती, तो दूसरा विस्मृत हो जाता। असफलता की स्थिति उसने गुरु को कह सुनाई।
गुरु मुस्कराए और बोले, “स्वार्थ और परमार्थ दोनों एक साथ सधते नहीं हैं। संसार और भगवान् में से एक ही हाथ लगता है।”