स्वप्नों का गूढ़-रहस्यमय लीला जगत्

July 2001

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स्वप्न का विचित्र संसार प्राचीनकाल से ही मनुष्य के लिए जिज्ञासा एवं महान् कुतूहल का विषय रहा है। विश्व के विभिन्न दार्शनिकों ने अपने-अपने अनुभव के प्रकाश में इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। आधुनिक विज्ञान की शोध का भी यह एक रोचक विषय बना हुआ है। वह उसे प्रमुखतया अचेतन मन की भाषा मानता है और इसके अगम्य गूढ़ पक्षों को उभारने में प्रयासरत है, किंतु अभी तक वह कोई निश्चित मत नहीं निर्धारित कर पाया है। इस संदर्भ में भारतीय मनीषा का अपना मौलिक दृष्टिकोण रहा है। मानवीय चेतना के मर्मज्ञ ऋषियों ने इसके विविध स्वरूपों पर प्रकाश डालते हुए इसका समग्र विवेचन प्रस्तुत किया है।

प्राचीन यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक हिप्पेक्रेटस का मानना था कि निद्रा के समय आत्मा शरीर से अलग होकर भ्रमण करती है और ऐसे में जो देखती है या सुनती है, वही स्वप्न है। प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो अपनी पुस्तक ‘टाइमिमस’ में स्वप्नों की, दैहिक एवं मानसिक लक्षणों की महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में व्याख्या करते हैं। अरस्तू ने अपनी पुस्तक ‘पशुओं के इतिहास’ में लिखा है कि केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु भेड़, बकरियाँ, गाय, कुत्ते, घोड़े इत्यादि पशु भी स्वप्न देखते हैं।

भारतीय चिंतन में स्वप्न पर व्यापक प्रकाश डाला गया है। संहिता ग्रंथों का यह एक प्रमुख विषय रहा है। प्राचीन दार्शनिकों का यह मानना था कि आत्मा चौरासी लाख योनियों में जन्म लेने और भ्रमण करने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त करती है। स्वप्न के माध्यम से वह विभिन्न योनियों में अर्जित अनुभवों का पुनः स्मरण करती है। इन्हीं के साथ ही स्वप्नों को भविष्य के संकेतों के साथ भी जोड़ा गया है। प्राचीनकाल से ही यह मान्यता रही है कि प्रकृति अपने ढंग से भावी शुभाशुभ संकेत देती है। वैदिक साहित्य में स्वप्न को भविष्य की शुभाशुभ घटनाओं का अमोघ लक्षण माना गया है। इस संदर्भ में रामायण, महाभारत, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणेश पुराण, ज्योतिष तत्त्व, भद्रबाहु संहिता, जैन कल्प सूत्र, अथर्वण परिशिष्ट आदि ग्रंथों में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है।

प्रसिद्ध ग्रंथ भद्रबाहु संहिता में छह प्रकार के स्वप्नों का वर्णन मिलता है। (1) दृष्ट, जो जाग्रत् अवस्था में देखा गया हो उसे स्वप्न में देखना, (2) श्रुत, सोने से पूर्व सुनी बात को देखना, (3) अनुभूत, जो जागते हुए अनुभव किया हो उसे देखना, (4) प्रार्थित, जाग्रत् अवस्था में की गई प्रार्थना की इच्छा को देखना, (5) दोषजन्य, वात, पित्त आदि के दूषित होने से स्वप्न देखना। (6) भाविक, जो भविष्य में घटित होना हो उसे देखना। उपर्युक्त स्वप्नों में केवल भाविक स्वप्न का फल ही सही होता है।

इस क्रम में कई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का स्वरूप इस तरह के स्वप्नों द्वारा प्रकट हुआ है। रामचरितमानस में महात्मा तुलसी जी ने त्रिजटा के स्वप्न के माध्यम से रावण व राक्षस कुल के विनाश का संकेत किया था। त्रिजटा ने स्वप्न में देखा था कि रावण काले कपड़े पहने, गधे जुते रथ से दक्षिण दिशा में जा रहा है। कुछ दूर चलकर वह सिर के बल गिर पड़ता है। फिर उसने एक ऐसे तालाब में प्रवेश किया, जहाँ लाल वस्त्र पहने काले रंग की स्त्री खड़ी है। उसका पूरा शरीर कीचड़ से लथपथ है। उसके बाद त्रिजटा ने देखा कि रावण के सभी पुत्र सिर मुड़ाए तेल में नहाए हैं और रावण सुअर पर, कुँभकरण ऊँट पर तथा मेघनाथ सुअर पर सवार होकर दक्षिण दिशा की ओर गए हैं। समस्त राक्षस लाल कपड़े पहने गोबर के कुँड में घुस गए हैं।

अपने देश की सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृता प्रीतम ने भी ‘लाल बागों का रिश्ता,’ ‘अक्षर कुँडलिनी, ‘सितारों के अक्षर और किरणों की भाषा’ जैसे ग्रंथों में स्वप्न पर व्यापक प्रकाश डाला है। वह लिखती हैं कि इन्सान की सोई हुई आँखें स्वप्न में कुदरत की लिखी हुई इबारत को देखती हैं, पर वह पढ़ने में समर्थ नहीं होता। स्वप्नों की पृष्ठभूमि में भी कहीं यथार्थ की परछाई रहती है और ये कई बार बीते हुए कल तथा आने वाले कल की ओर संकेत करते हैं।

पश्चिमी मनोविज्ञानी कार्लजुग ने अपनी छात्रा का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जिसे स्वप्न में अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता है। वह स्वप्न में देखती है कि वह मर चुकी है और कक्षा चल रही है। उसके पास कई मृत सहेलियां अगली बैंच पर बैठी हैं। कक्षा का वातावरण बहुत शाँत एवं गंभीर है। वह शिक्षक को खोजी निगाहों से ढूँढ़ती है, किंतु यह नहीं दिखता। फिर उसे आभास होता है कि वह स्वयं ही शिक्षक है और मृत्यु के तुरंत बाद लोगों को अपने समूचे जीवन का विस्तृत वृत्ताँत सुना रही होती है। अन्य मृत लोग बड़े चाव से इन अनुभवों को सुन रहे थे, जैसे कि लौकिक जीवन के क्रियाकलाप और अनुभव बहुत निर्णायक एवं महत्त्वपूर्ण हैं। बाद में उसका यह स्वप्न आश्चर्यजनक ढंग से सत्य साबित हुआ।

‘स्लीप एंड ड्रीम्स’ में श्री अरविंद एवं श्री माँ ने एक यात्री का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसे स्वप्न में भावी दुर्घटना की चेतावनी मिलती है। यात्री एक होटल में ठहरता है। वहाँ स्वप्न में वह एक बहरे को उसकी अर्थी की ओर इशारा करता है और अंदर प्रवेश करने के लिए कहता है। प्रातः जब वह कमरे से बाहर आता है, तो बाहर उसे वही लड़का दिखता है। वैसे ही वस्त्र पहने हुए था और लिफ्ट की ओर संकेत कर रहा था। यह सब देख आश्चर्यचकित यात्री जब लिफ्ट की ओर प्रवेश करने ही वाला था कि वह अचानक ध्वस्त हो गई और इसमें वे सभी लोग मारे गए। इस घटना के बाद से यह व्यक्ति स्वप्नों को गंभीरता से लेने लगा।

सुविख्यात पाश्चात्य स्वप्न विश्लेषक जे. आर. ब्लैंड ने प्रसिद्ध शासक नौशेरखाँ के ऐसे ही एक स्वप्न का विवरण प्रस्तुत किया है। नौशेरखाँ स्वप्न विज्ञान को ‘ताबिर विज्ञान’ कहता था। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि वह सोने के पात्र में मदिरा का पान कर रहा है। उसी पात्र में एक काले कुत्ते ने भी मदिरा पान किया। उसने अपने मंत्री बुजुरमिहिर को अगले दिन बुलाकर स्वप्न सुनाया और विश्लेषण चाहा। मंत्री ने जो विश्लेषण बताया, उसके अनुसार उसकी प्रिय रानी के पास कोई काला दास है, वह उसका प्रेमी है। यह बात अंततः सही निकली। कहा जाता है कि यह विश्लेषक विश्वविख्यात ज्योतिषी वराहमिहिर थे।

गौतम बुद्ध के जन्म से पूर्व उनकी माता महामाया ने स्वप्न में देखा था कि छह दाँतों वाले हाथी ने उनके शरीर में प्रवेश किया है। स्वप्नशास्त्रियों ने स्वप्न की व्याख्या करते हुए बताया था कि जन्म लेने वाला शिशु या तो चक्रवर्ती सम्राट् होगा या महान् संत। भविष्य में यह बात सत्य सिद्ध हुई।

स्वप्नों के फलों की विवेचना के संदर्भ में भी भारतीय ग्रंथों में समय, तिथि एवं अवस्था के आधार पर इनके परिणामों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। यहाँ तिथि एवं स्वप्न के परिणामों का घनिष्ठ संबंध है। इनके अनुसार शुक्ल पक्ष की षष्ठी, सप्तमी तथा चतुर्दशी तिथि को देखा गया स्वप्न शीघ्र फल देने वाला होता है। पूर्णिमा को देखे गए स्वप्न का फल अवश्य प्राप्त होता है। शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी तथा नवमी को देखा गया स्वप्न विपरीत फल प्रदान करता है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, कृष्णपक्ष की द्वितीया के स्वप्न का फल देरी से प्राप्त होता है। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तथा पंचमी को देखे स्वप्न का फल दो माह से दो वर्ष के अंदर प्राप्त होता है। रात्रि के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ प्रहर का फल क्रमशः 1 वर्ष, 8 माह, 3 माह, एवं 6 दिन में प्राप्त होता है। उषाकाल में देखे स्वप्न का फल अति शीघ्र प्राप्त होता है। परंतु ये सभी बातें विषयसूचक स्वप्नों के बारे में हैं। इनका इन स्वप्नों से कोई संबंध नहीं, जो किसी शारीरिक क्रिया एवं सोच का परिणाम होते हैं।

भगवान् महावीर के जीवन में अस्थिग्राम के शूलपाणि मंदिर में रात्रि के अंतिम प्रहर में देखे गए ऐतिहासिक स्वप्न का उल्लेख प्राप्त होता है। महावीर ने स्वप्न में पिशाच की मौत, सफेद पंछी, कोयल, फूलों के दो हार, बैल, कमल के फूलों का सरोवर, समुद्र, रवि किरणें, बाँहों में लिपटा पर्वत तथा मेरुपर्वत की चढ़ाई देखी। उसी गाँव के ज्योतिषी ने नौ स्वप्नों का विश्लेषण श्री महावीर को बताया था। दो फूलों का हार, इस स्वप्न का विश्लेषण स्वयं भगवान् ने किया व बताया कि मैं गृहस्थ और संन्यास दोनों में जनमानस का विश्वास उत्पन्न करूंगा।

भगवान् महावीर की माता महारानी तृषला के चौदह स्वप्नों का भी उल्लेख इतिहास में मिलता है। ये चौदह स्वप्न थे, ऐरावत हाथी, सफेद बैल, शेर, लक्ष्मी, माला, चाँद, रवि, इंद्र, ध्वज, कमल, कलश, क्षीरसागर, देवरथ, तथा धुँआरहित अग्नि। जो वास्तव में 14 प्रतीक थे। मान्यता है कि जब कोई तीर्थंकर गर्भ में आता है, तो उसकी माता इन प्रतीकों को स्वप्न में देखती है।

भावी संकेत सूचना के अतिरिक्त स्वप्नों के माध्यम से जीवन की समस्याओं के समाधान भी उपलब्ध होते हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों एवं साहित्यिक रचनाओं में स्वप्नों की इस अद्भुत भूमिका को देखा जा सकता है। नील वोहर की परमाणु संरचना और फ्रेडरिक केकुले द्वारा बेन्जाइन की रसायन रचना की खोज इसी के उदाहरण हैं। सुप्रसिद्ध विद्वान् हेनरी फेहर के अनुसार सृजनशील व्यक्ति स्वप्नों में अपनी समस्याओं के समाधान खोजते हैं। मनोविद् नाओपी एपल के अनुसार जब कुछ लेखक, वैज्ञानिक और कलाकार निद्रावस्था में जाते हैं, तो वे अवचेतन मन को अनसुलझे विषयों पर समाधान का संदेश देते हैं और वे आश्चर्यजनक ढंग से इनका समाधान पाते हैं। क्योंकि एपल के अनुसार अचेतन मन वह जानता है, जो चेतन नहीं जानता। पट कथा लेखक जेम्स केमराँन ने स्वप्न से प्राप्त संकेतों के आधार पर ही अर्नाल्ड श्वार्जनेगर की प्रसिद्ध एक्शन फिल्म ‘द टर्मीनेटर’ की स्क्रिप्ट लिखी थी।

इस तरह यह कहना तनिक भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है कि स्वप्नों का अद्भुत एवं गूढ़ जगत् स्वयं में अस्तित्व के गहनतम आश्चर्य एवं समाधान सभी कुछ समेटे हुए है। आवश्यकता है इसकी रहस्यमयी भावना को सही ढंग से समझने व इसके रचनात्मक उपयोग की, जिससे कि यह मात्र कुतूहल एवं आश्चर्य भर न रहकर जीवन की गुत्थियों को हल कर लेने वाला एक सशक्त माध्यम बन सके।


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