मनुष्य भगवान् नहीं बन सकता, यह सत्य है, पर उसकी शक्ति को स्वयं में ग्रहण-धारण कर अपनी समर्थता का आभास अवश्य दिला देता है। जब अंशधर सत्ता इतनी शक्तिशाली हो सकती है, तो स्वयं भगवान् कितने सामर्थ्यवान् होंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है और इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि मनुष्य निर्बल नहीं, बलवान है।
मूर्द्धन्य नृतत्ववेत्ता स्टील्स ने अपने संस्मरणों में इस बात का उल्लेख किया है कि मनुष्य साधारण सत्ता और महत्ता वाला प्राणी भर प्रतीत होता है, पर यदि किसी को उसके अंदर तक झाँक सकने की दृष्टि मिल सकी होती, तो वह देख सकता कि मनुष्य वस्तुतः कितना दिव्य और विभूतिवान् है। वे सन् 1950 के अंतिम दशकों में पूर्वी कनाडा में कोण्टाग्नेज इंडियन्स के अध्ययन के दौरान बिताए गए क्षणों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार वे जंगलों में छोटी-छोटी कुटिया बनाकर दूरश्रवण की क्षमता विकसित करने के प्रति प्रयत्नशील दिखाई पड़े, वह वास्तव में लक्ष्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निष्ठा ही दर्शाता है। वे तब तक एकाँतवास का जीवन व्यतीत करते, जब तक उस सामर्थ्य को पूर्णतः प्राप्त न कर लेते। इसकी प्राप्ति के उपराँत वे कठिनाई में पड़े अपने दूरस्थ मित्रों और कुटुँबियों से संपर्क साधने और उन्हें आवश्यक संदेश देने में इस शक्ति का उपयोग करते। अनेक बार वे इसी शक्ति के माध्यम से उन्हें संकटों से उबारते और उनकी रक्षा करते। उस दौरान उनके झोंपड़ों का काँपना इस बात का स्पष्ट प्रमाण होता कि वे किसी दूरवर्ती के सघन संपर्क हैं और दोनों के बीच कोई महत्त्वपूर्ण आदान-प्रदान चल रहा है।
स्टीफन स्वाट्ज ने भी अपनी रचना ‘दि सीक्रेट वॉल्ट्स ऑफ टाइम, साइकिक आरकियोलॉजी एण्ड दि क्वेस्ट फोर मैन्स बिगनिंग्स’ में मोण्टाग्नेज इंडियन्स के अतींद्रिय क्षमताओं का बखान करते हुए लिखा है कि वे दूरश्रवण में पारंगत थे। इसके अतिरिक्त भी उनमें विविध प्रकार की सामर्थ्य थी। वे बादलों का आवाहन कर तत्काल वर्षा कराने में समर्थ थे। किसी व्यक्ति में अतिशय गरमी और अतिशय शीत की अनुभूति को क्षण मात्र में परिवर्तित करने की शक्ति उनमें विद्यमान थी। वे जड़ में भी गति पैदा करने की विभूति से संपन्न थे। उनका मत है कि पंचभौतिक प्रकृति पर नियंत्रण के लिए पंच तत्त्वों पर नियंत्रण आवश्यक है। वे इस विचारधारा से भी सहमत थे कि मानवी शक्ति वास्तव में अंतस् की परिष्कृति की ही पर्याय है।
पं. गोपीनाथ कविराज अपनी पुस्तक ‘सनातन साधना की गुप्त धारा’ में लिखते हैं कि इस जगत् में अज्ञान के आवरण में आच्छन्न होकर मोहनिद्रा में निद्रित हैं। इससे जागना ही वास्तविक जाग्रति है, शक्ति का अनावरण है, विभूतियों का उद्भव और ऐश्वर्य का प्रकटीकरण है। हम लोग व्यवहार भूमि में जिसे जाग्रत् अवस्था समझते हैं, वह भी वास्तव में जाग्रत् नहीं है। चेतना की तीन स्थितियाँ जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति भी प्रकाराँतर से नींद के ही भेद मात्र हैं। इनको त्यागना ही ईश्वरप्राप्ति है। पूर्णत्व लाभ इसी को कहते हैं। इसके पश्चात् शक्ति का ऐसा प्राकट्य होता है कि ‘जीव’ ‘शिव’ और ‘नर’ ‘नारायण’ बन जाता है।
आदि शंकराचार्य ने अपनी ‘दक्षिणा मूर्ति स्तोत्र’ में इस बात का स्पष्ट संकेत किया है कि मोहनिद्रा से जीव को जो जगा देता है, वही वास्तविक गुरु है। जीव की संपूर्ण जाग्रति की स्थिति में उसे इस बात का स्फुट अनुभव होता है कि यह जगत् उससे बाहर नहीं है, वरन् नगर प्रतिबिंबित होता है और वह प्रतिबिंबित नगर जिस प्रकार दर्पण के अंतर्गत है, उससे बाहर नहीं, ठीक उसी प्रकार समग्र विश्व ही आत्मरूपी स्वच्छ दर्पण में प्रतिबिंबित होता है। इसलिए यह कहना गलत नहीं है कि यह विश्व, आत्मा के अपने ही भीतर है, बाहर नहीं। माया के कारण जो अंतर की वस्तु है, उसे बाहर देखा जाता है। सद्गुरु ही जीव सत्ता को इस निम्न भूमिका से ऊपर उठाते और आगे बढ़ाते हैं। साधना का समग्र उद्देश्य और गुरुकृपा का संपूर्ण लक्ष्य साक्षात्कार कहते हैं। साधारण से असाधारण एवं क्षुद्र से महान् बनने की यही प्रक्रिया है।
अपनी प्रसिद्ध कृति ‘योगी गुरु’ में बंगाल के सिद्ध योगी निगमानंद कहते हैं कि योग की प्रारंभिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए साधक जब सफलतापूर्वक समाधि-सोपान तक पहुँचता है, तब उसे पहली बार यह ज्ञात होता है कि उसकी शक्ति कितनी असीम है। ससीमता के बंधन को तोड़ते हुए जब वह असीमता के द्वार पर पहुँचता है, तो सोचता है कि मनुष्य भी कितना मूढ़ है कि सब कुछ होते हुए भी वह दीन-दयनीय स्थिति में पड़ा-पड़ा विपन्नता के आँसू बहाता रहता है! जिस क्षण मानवजाति की यह मूर्च्छना टूटेगी, उसी क्षण वह मनुष्य से शक्तिसंपन्न देवता बन जाएगा।
मनुष्य की शक्ति कितनी चमत्कारिक हो सकती है, इसकी चर्चा करते हुए प्रख्यात नृतत्वविज्ञानी डाउग बॉयड ने अपने ग्रंथ ‘रॉलिंग थण्डर’ में एक ऐसे अमेरिकी व्यक्ति का वर्णन किया है, जिसे लोग रॉलिंग थण्डर बनाम ‘शक्ति का स्वामी’ कहकर पुकारते थे। एक बार उसने एक बड़े से कीड़े को सींक के सहारे छेड़ दिया। उसमें तीव्र हलचल हुई। वह बेचैन होकर इधर-उधर भागने लगा। उसी के साथ वहाँ भयंकर तूफान आ गया। कीटक के शाँत होने के साथ-साथ वह भी शाँत हो गया। लोग इसे संयोग न समझ बैठें, इस भ्रम को दूर करने के लिए रॉलिंग थण्डर ने उसे दुबारा छेड़ा। कीड़ा फिर व्याकुल हो उठा। उसके साथ ही एक तीव्र चक्रवात पुनः आ उपस्थित हुआ, जो पहले की तरह कीटक के शाँत होने के साथ-साथ धीरे-धीरे थम गया। अगली बार रॉलिंग थण्डर ने कीड़े को उछाल दिया। वह पीठ के बल आ गिरा। दूसरे ही पल एक प्रचंड आवाज के साथ बिजली कौंधी। कई बार इस क्रिया की पुनरावृत्ति की गई। हर बार तीक्ष्ण ध्वनि के साथ बिजली कड़की। दोनों क्रियाएँ इतने आश्चर्यजनक ढंग से साथ-साथ होतीं, मानो कीड़े के गिरने का सीधा संबंध वज्रपात से हो। भौतिक क्रियाओं में जिस तरह का कार्य-कारण संबंध दिखलाई पड़ता है, वैसा ही कुछ यहाँ देखा गया। थोड़ी देर पश्चात् घनघोर वर्षा आरंभ हो गई, जो घंटों जारी रही।
एक अन्य प्रसंग में रॉलिंग थण्डर ने अपनी अतींद्रिय शक्ति के माध्यम से जेल काट रहे एक कैदी को कारागार से मुक्त कराया था। उस व्यक्ति ने वियतनाम युद्ध में लड़ाई लड़ने से मना कर दिया था। इसे सरकारी अवज्ञा समझकर उसे बंदी बना लिया और कारावास में डाल दिया गया।
तब रॉलिंग थण्डर के साथ एक अन्य नृतत्वशास्त्री जॉन वेल्श भी थे। दोनों लीवेनवर्थ जेल पहुँचे और दरबान से अपने आने का अभिप्राय बताया, कहा कि वे उस कैदी से मिलना चाहते हैं और उसे साथ ले जाने की भी इच्छा है। थोड़ी देर पश्चात् एक जेल अधिकारी आया और कहा कि उससे मिलना संभव नहीं है। रॉलिंग थण्डर अपनी बात पर अड़ा रहा और मिलाने का बार-बार आग्रह करता रहा। इसी बीच एक अन्य अधिकारी वहाँ पहुँचा। उसने बताया कि उस कैदी को दूसरी जेल में स्थानाँतरित कर दिया गया है।
शाम हो चुकी थी, इसलिए दोनों नजदीक के एक होटल में चले गए। अर्द्धरात्रि को रॉलिंग थण्डर अचानक क्रोधित हो उठा। उसने वेल्स को बताया कि अधिकारियों ने झूठ बोला है। कैदी यहीं है। अभी-अभी उसने जेल के अंदर जाकर इसकी जानकारी की है। यदि वे असत्य का सहारा लेंगे, तो वह ‘भय’ को हथियार बनाएगा।
दूसरी सुबह उसने वेल्श से आग्रह किया कि वह उसके साथ सिगार पिए और नदी तट पर चलकर मंत्र जपे। थोड़ी ही देर में सिगार से अत्यंत काला धुआँ निकलकर हवा में तिरोहित हो गया। उसी समय गड़गड़ाहट की तुमुल ध्वनि हुई और ऊपर आकाश में बादल इकट्ठे होने लगे। उसका एक बड़ा टुकड़ा उनके साथ-साथ जेलखाने की ओर बढ़ चला। वहाँ पहुँचकर रॉलिंग थण्डर इस बुरी तरह चिल्लाया कि द्वारपाल डरकर भीतर चला गया और अधिकारियों को बुला लाया। उन लोगों ने उसे वहाँ से चले जाने को कहा, किंतु उसने बादल की ओर इशारा किया और उसे देखते रहने को कहा। जैसे ही उन लोगों ने वैसा करना शुरू किया, बादल उनकी ओर बढ़ने लगा। इसके साथ ही धूल और पत्थर हवा में उड़ने लगे और वहाँ एक चक्रवात उत्पन्न हो गया। जेल की इमारत उसमें बुरी तरह फँस गई। उसका द्वार उखड़कर हवा में उड़ने लगा। जेल अधिकारी भयभीत हो गए। वे कैदी को उसके साथ जाने देने के लिए सहमत हो गए।
लीवेनवर्थ के ही कारावास से संबंधित पच्चीस वर्ष पूर्व की एक घटना की चर्चा करते हुए मूर्द्धन्य मनोविज्ञानी डोनाल्ड पॉवेल विल्सन ने अपनी पुस्तक ‘माई सिक्स कन्विक्ट्स’ में हैडाड नामक एक ऐसे हत्यारे का वर्णन किया है, जो अद्भुत शक्तिसंपन्न था। विल्सन को हैडाड की विलक्षणता के बारे में पहली बार तब जानकारी मिली, जब वे कारागृह में हैडाड की कोठरी में गए। वहाँ उसका निर्जीव-सा शरीर लोहे की छड़ों के सहारे एक बेल्ट के माध्यम से लटक रहा था। यह बेल्ट किसी वार्डर का था, जो उसकी कमर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था। बाद में उसका शव परीक्षण के लिए शव-परीक्षण कक्ष में ले जाया गया। वहाँ जैसे ही डॉक्टरों ने चीर-फाड़ के औजार उठाने प्रारंभ किए, वह धीरे से उठ बैठा। उसने बताया कि वह वास्तव में मरा नहीं था, अपितु समाधि में चला गया था, इस कारण से शरीर प्रणाली की सभी क्रियाएँ एकदम ठप्प हो गई थीं।
अगले दिन उसने अपनी शक्ति का एक बार फिर प्रदर्शन किया। इस बार कुछ दूसरे ढंग से उसके साथ बहुत सारे मिर्गी के रोगी थे, जिन्हें नियमित रूप से दौरे पड़ते थे। सबको अस्पताल के मनोरोग वार्ड में एक साथ रखा गया था। हैडाड ने उनके दौरे शक्ति प्रयोग के द्वारा तीन दिन तक रोके रखने की घोषणा की। सचमुच इस मध्य किसी को भी दौरे नहीं पड़े। अवधि समाप्त होते ही उनका आना पुनः शुरू हो गया।
एक अन्य प्रदर्शन में उसने शरीर के कपड़े उतारे और डेस्क के ऊपर निश्चेष्ट लेट गया। उसके बाद घोषणानुसार उसके शरीर पर बारह राशियाँ उभर आईं। इस समय जब उसकी नस को बींधा गया, तो उसमें रक्त नहीं के बराबर था। इससे ऐसा प्रतीत होता है, उसने शरीर की समस्त अनैच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। वह इच्छानुसार जेल से गायब हो जाता था और पुनः वापस लौट आता। विल्सन लिखते हैं कि एक बार जब उसे पुलिस की गाड़ी पर बिठाकर जेल लाया जा रहा था, तो बंद गाड़ी से अचानक अदृश्य हो गया। बाद में उसने जेल के फाटक से अंदर प्रवेश किया। बताया कि वह रास्ते में खो गया था। एक अन्य अवसर पर उसे एक संगीत कार्यक्रम में देखा गया। पूछने पर बताया कि कार्यक्रम समीप ही हो रहा था और देखे हुए काफी समय हो गया था, अतः उसमें सम्मिलित हो गया। कार्यक्रम के उपराँत वह उसी अलौकिक तरीके से जेल के अंदर चला गया, जिस तरह बाहर निकला था। हैडाड विलक्षण व्यक्ति था। वह जो चाहता, उसे संभव कर दिखाता। उसके लिए असंभव कुछ भी नहीं था। वह अक्सर कहा करता कि साधारण इन्सान के लिए जो कठिन और असाध्य प्रतीत होता है, वह उसके लिए अत्यंत सामान्य-सी बात है। हैडाड साधारण दीखता भर था, पर उसकी शक्ति असाधारण थी। इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार वह दुश्मनों के चुंगुल में फँस गया। उन्होंने उसकी कार को गोलियों से छलनी कर दिया, फिर भी उसे कुछ नहीं हुआ। उसका कहना था कि गोलियाँ उसके शरीर से टकराकर बिखर गईं, जैसे वह हाड़-माँस का न होकर इस्पात का बना हो। अंततः दुश्मनों ने हार मान ली। वे उसे मार नहीं सके और उसको कोसते हुए लौट गए।
मनुष्य साधारण नहीं, दिव्य क्षमतावान् है। उसकी शक्तियाँ प्रदर्शन और बड़प्पन सिद्ध करने के लिए नहीं, कल्याण-कामना हेतु नियोजित होनी चाहिए। बाजीगरी यदि महानता की निशानी रही होती, तो हर चौक-चौराहे पर करतब दिखाने वाले लोग महान् कहलाते और पूजे जाते, पर ऐसा कहाँ है! शक्ति का वास्तविक उपयोग दूसरों की सहायता में है, अपनी शान में नहीं। जो इस मूल मंत्र को अपनाते हैं, वे यश और सम्मान के भागी बनते और जन्म-जन्माँतरों तक याद किए जाते हैं।