नत-मस्तक हो गया (kahani)

July 2001

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तथागत बोधिवृक्ष को साष्टाँग दंडवत् कर रहे थे। शिष्य ने साश्चर्य हो पूछा, “आप तो पूर्ण हैं, फिर इस तुच्छ वृक्ष को इतना सम्मान क्यों दे रहे हैं।” बुद्ध ने कहा, “आप सबको यह बोध कराने के लिए कि जो नमता है, सो बड़ा होता है। ऐसा न हो कि आप लोग अहंकारी बनकर नमन की परंपरा को भुला दें। ईश्वरीय मार्ग में इस प्रकार की बड़प्पन की महत्त्वाकाँक्षाएँ पहले छोड़नी पड़ती हैं। यह संस्कार बराबर जाग्रत् रखना चाहिए।”

बीसवीं सदी के महान् वैज्ञानिक आइन्स्टीन बेल्जियम की महारानी के निमंत्रण पर ब्रूसेल्स पहुँचे। महारानी ने अनेक उच्चाधिकारियों को उन्हें लेने के लिए स्टेशन भेजा, किंतु सामान्य वेश-भूषा और सीधे से आइन्स्टीन को वे पहचान ही नहीं पाए और निराश लौट आए।

आइन्स्टीन अपना बैग उठाए राजमहल पहुँचे और महारानी को अपने आने की सूचना भिजवाई। जब रानी ने अपने अधिकारियों की अज्ञता के कारण हुई असुविधा के लिए खेद प्रकट किया तो वे हँसते हुए बोले, “आप जरा-सी बात के लिए दुःख न करें, मुझे पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है।”

जिस राजसी सम्मान को पाने के लिए लोग जीवनभर एड़ी-चोटी का पसीना एक करते रहते हैं, वह सम्मान महामानवों को सादगी की तुलना में इतना छोटा लगता है कि उसकी चर्चा भी चलना निरर्थक समझते हैं।

ईरानी शहंशाह अब्बास शिकार के लिए जंगल में भटक रहे थे। वहाँ उनकी भेंट एक चरवाहे बालक से हो गई। उसका नाम था, मुहम्मद अलीबेग। चरवाहा होते हुए भी उसकी हाजिर-जवाबी तथा व्यक्तित्व से शाह बड़े प्रभावित हुए और लौटते समय उसे भी अपने साथ ले आए।

मुहम्मद अलीबेग को राज्य का कोषाध्यक्ष बना दिया। यद्यपि वह एक निर्धन परिवार का था, फिर भी इतनी धन-दौलत को देखकर उसका मन तनिक भी विचलित न हुआ। वह अपने को कोषालय के समस्त धन का रक्षक मानता था। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उसके जीवन में सादगी थी। शाह अब्बास के बाद उनका अल्प वयस्क पौत्र शाह सफी राजसिंहासन पर आसीन हुआ। किसी ने शाह के कान भर दिए कि मुहम्मद अली राज्य के धन का दुरुपयोग करता है। शाह ने उस प्रकरण को जाँच के लिए अपने पास रखा और एक दिन बिना सूचना के उसकी हवेली का निरीक्षण करने जा पहुँचे।

शाह ने हवेली के सब कमरों का निरीक्षण किया। थोड़ी-सी वस्तुओं के अतिरिक्त वहाँ कुछ दिखाई ही न दे रहा था। शाह निराश लौटने लगा, तो खोजियों के संकेत पर शाह की दृष्टि एक बंद कमरे की ओर गई। उसमें तीन मजबूत ताले लटक रहे थे। अब शाह की शंका को कुछ आधार मिला। उन्होंने पूछा, इसमें क्या चीज है, जिसके लिए इतने मजबूत ताले लगाए हैं।

तुरंत ताले खोल दिए गए। शाह ने कक्ष के मध्य मेज पर एक लाठी, शीशे की सुराही आदि बर्तन तथा पोशाक और दो मोटे कंबल देखे। मुहम्मद ने कहा, “जब स्वर्गीय शाह मुझे यहाँ लाए थे, उस समय मेरे पास यही वस्तुएँ थीं और आज भी मेरे पास अपनी कहने को यही हैं। मैं इनसे प्रेरणा ग्रहण करता और उसी स्तर के जीवन का अभ्यास बनाए रखता हूँ।” युवा बादशाह इस आदर्शनिष्ठा को देखकर नत-मस्तक हो गया।


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