कुछ दिन विनोबा भावे प्रतिदिन अपने पवनार आश्रम से लगभग तीन मील दूर स्थित सुरगाँव जाते थे, एक फावड़ा कंधे पर रखकर।
एक बार कमलनयन बजाज ने उनसे पूछा कि आप फावड़ा रोज इतनी दूर अपने साथ क्यों ले जाते हैं। उस गाँव में ही किसी के यहाँ फावड़ा क्यों नहीं छोड़ आते?
विनाेबा जी बोले, “जिस काम के लिए मैं जाता हूँ, उसका औजार भी मेरे साथ ही होना चाहिए। फौज का सिपाही अपनी बंदूक या अन्य हथियार लेकर चलता है, उसी प्रकार एक ‘सफैया’ को भी अपने औजार सदा अपने साथ लेकर ही चलने चाहिए। सिपाही को अपने हथियार से मोह हो जाता है, उसी तरह हमें भी अपने औजारों को अपने साथ ले जाने में आनंद और गौरव का अनुभव होना चाहिए।