पाँडवों ने राजसूय यज्ञ किया। उसमें सर्वोत्तम पद चुन लेने के लिए कृष्ण को कहा गया। उन्होंने आगंतुकों के पैर धोकर सत्कार करने का काम अपने जिम्मे लिया। यह उनकी निरहंकारिता और विनम्रता की पराकाष्ठा ही थी।
राविया बसरी संतों के संग बैठी बातें कर रही थी। तभी हसन बसरी वहाँ आ पहुँचे और बोले, “चलिए, झील के पानी पर बैठकर हम दोनों अध्यात्म की चर्चा करें।” हसन के बारे में प्रसिद्ध था कि उन्हें पानी पर चलने की सिद्धि प्राप्त है।
राविया ताड़ गई कि हसन उसी का प्रदर्शन करना चाहते हैं। बोलीं, “भैया, यदि दोनों आसमान में उड़ते-उड़ते बातें करें, तो कैसा रहे?” (राविया के बारे में भी प्रसिद्ध था कि वे हवा में उड़ सकती हैं।) फिर गंभीर होकर बोलीं, “भैया जो तुम कर सकते हो, वह हर एक मछली करती है और जो मैं कर सकती हूँ वह हर मक्खी करती है। सत्य करिश्मेबाजी से बहुत ऊपर है। उसे विनम्र होकर खोजना पड़ता है।कि अध्यात्मवादी को दबा करके अपनी गुणवत्ता गँवानी नहीं चाहिए।” हसन ने अध्यात्म का मर्म समझा और राविया को अपना गुरु मानकर आत्मपरिशोधन में जुट गए।