हजारी बाग (kahani)

July 2001

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रूस के जन-नेता लेनिन पर एक बार उनके शत्रुओं ने घातक आक्रमण किया और वे घायल होकर रोग शय्या पर गिर पड़े। अभी ठीक तरह से अच्छे भी नहीं हो पाए थे कि एक महत्त्वपूर्ण रेलवे लाइन टूट गई। उसकी तुरंत मरम्मत किया जाना आवश्यक था। काम बड़ा था, फिर भी जल्दी पूरा हो गया।

काम पूरा होने पर जब हर्षोत्सव हुआ तो देखा कि लेनिन मामूली कुली-मजदूरों की पंक्ति में बैठे हैं। रुग्णता के कारण दुर्बल रहते हुए भी लट्ठे ढोने का काम बराबर करते रहे और अपने साथियों में उत्साह की भावना पैदा करते रहे।

आश्चर्यचकित लोगों ने पूछा, “आप जैसे जन-नेता को अपने स्वास्थ्य की चिंता करते हुए इतना कठिन काम नहीं करना चाहिए था।” लेनिन ने हँसते हुए कहा, “जो इतना भी नहीं कर सके, उसे जन-नेता कौन कहेगा।”

बिहार प्राँत के एक छोटे-से गाँव में एक किसान रहता था। नाम था उसका हजारी। उसने अपने खेतों की मेड़ों पर आम के पेड़ लगाए। जब वे बड़े हुए, तो उन पर पक्षियों ने घोंसले बना लिए। मधुर स्वर में चह-चहाते। जब बौर आता तो कोयल कूकती। छोटे-छोटे फल आते तो सारे गाँव के लोग बारी-बारी से चटनी के लिए आम माँगकर ले जाते। वह स्वयं भी उस पेड़ के नीचे सघन छाया में चारपाई बिछाकर बैठता, तो अच्छा लगता।

हजारी के बच्चे बड़े हो गए थे। उसने सोचा कि खेती-बाड़ी का काम इन्हें सौंप देना चाहिए और स्वयं उस क्षेत्र में आम के पौधे लगवाने के लिए निकल पड़ना चाहिए। ढलती उम्र में परमार्थ-परायण होने को ही वानप्रस्थ कहते हैं।

उसने अपने खेत पर आमों की नर्सरी उगाई। गाँव-गाँव घूमा। आम लगाने का महत्त्व समझाया। जो लोग सहमत होते, उनके यहाँ स्वयं ही पौधे लगा आता। खाद, रखवाली आदि में भी दिलचस्पी लेता। इस प्रकार मरते समय तक उसने एक हजार आम्र उद्यान लगवा दिए। उस क्षेत्र का नाम उस किसान की स्मृति में ‘हजारी बाग’ पड़ा।


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