केंद्रीय हलचलें हीरक जयंती वर्ष में - विश्वविद्यालय निर्माण की दिशा में पहला कदम

July 2001

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सारे विश्व को, जनमानस को जीवन विद्या के आलोक केंद्र के रूप में शाँतिकुँज से प्रकाश मिले, इसकी ढेरों शाखा-प्रशाखाएँ बनें एवं पुनः भारत इस जागती एक महानायक बने, यह परमपूज्य गुरुदेव की सदा की इच्छा रही। इसी उद्देश्य से उन्होंने शाँतिकुँज को गायत्री-तीर्थ का स्वरूप दिया, ऋषि-परंपराओं की, जो लुप्तप्राय-सी हो गई थीं, यहाँ स्थापना की। यही नहीं, एक बोधिवृक्ष-कल्पवृक्ष के रूप में इस पावन तीर्थ की कई शाखाएँ गायत्री शक्तिपीठों, प्रज्ञा, संस्थानों, प्रज्ञापीठों के रूप में स्थापित की गईं। प्रारंभ चौबीस से किया गया था, किंतु उनकी संख्या देखते-देखते चौबीस सौ तक जा पहुँची एवं अब यह आँकड़ा पाँच हजार को पार करता दिखाई दे रहा है।

शाँतिकुँज एक अकाडमी का, विश्वविद्यालय का स्वरूप ले एवं इसके द्वारा पढ़ाई जाने वाली जीवन जीने की कला के पर्याय अध्यात्म विद्या की विभिन्न विधाएँ, महाविद्यालयों की तरह प्रज्ञा संस्थानों द्वारा पढ़ाई जाएँ, यह भी पूज्यवर का मन था। परिजन विगत एक-दो वर्षों से सुन रहे हैं व जब भी शाँतिकुँज आते हैं, देखते रहे हैं कि शाँतिकुँज परिसर के बिलकुल समीप आम्रकुँजों से घिर ऋषिकेश मार्ग पर एक भूखंड है, जिसमें संतों-महापुरुषों के द्वारा मई 1999 में भूमिपूजन समारोह संपन्न हुआ था। अब वह परिसर बनकर तैयार हो चुका है।

विश्वविद्यालय देश में ही नहीं, विश्वभर में ढेरों हैं। अपना मन उस परंपरागत शिक्षा पढ़ाने वाले तंत्र की स्थापना का न कभी था, न अब है। हमारी गुरुसत्ता ने शिक्षा के समानाँतर विद्या विस्तार की बात कही है। विद्या विस्तार होगा, अध्यात्म-चेतना का आलोक देश-विदेश में फैलेगा, तो पुनः नालंदा, तक्षशिला परंपरा जीवित होगी, जिसने ढेरों महामानवों को, ऋषियों को जन्म दिया। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की परमपूज्य गुरुदेव की परिकल्पना के पीछे वही चिंतन काम कर रहा है। साधना, शिक्षा, स्वावलंबन तथा स्वास्थ्य जैसी विधाओं पर कोई ठोस कार्य हो, इनके शिक्षण-प्रशिक्षण का तंत्र बने व यहाँ से प्रशिक्षित लोकसेवी विश्वभर में फैल जाएँ, तो पुनः इस देश को विश्व का अग्रणी बनने में देर नहीं लगेगी।

परमपूज्य गुरुदेव की लेखनी से अक्टूबर 89 की ‘अखण्ड ज्योति’ में लिखे एक लेख के एक उद्धरण को पाठकों को पढ़ाने को यहाँ मन है। “युग परिवर्तन की महाक्राँति के असंख्यों विभाग-उपभाग हैं। उन सभी में नवजीवन का संचार होता हुआ देखा जा सकता है। लगता है कोई महान् जादूगर अपने चमत्कारों की पिटारी खोलकर सर्वसाधारण को यह अवगत कराने जा रहा है कि दैत्य की दानवी दमनकारी शक्ति कितनी ही क्यों न हो, विश्वकर्मा की सृजन-सामर्थ्य उससे कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी है। परिस्थितियों का कायाकल्प करने के लिए सामर्थ्य पुँजों, महामनीषियों और सृजन के कलाकारों ने अपने-अपने पुरुषार्थ तेज कर दिए हैं। लगता है कि समाज के कायाकल्प को कोई भी भवितव्यता टाल नहीं सकेगी। इसके लिए चार संकल्प इस मिशन द्वारा लिए गए हैं-

(1) परिकर के प्रायः चौथाई करोड़ (पच्चीस लाख) लोगों को सृजन के लिए प्रशिक्षित करने का, बैटरी चार्ज करने के स्तर का कार्यक्रम (2) एक लाख सृजनशिल्पी कार्य क्षेत्र में उतारना। साधु, ब्राह्मण का पुनरुज्जीवन। (3) नालंदा, तक्षशिला, श्रावस्ती परंपरा का अनुकरण। श्रावकों-परिव्राजकों-पुरोहितों को प्रशिक्षित कर सारे विश्व में भेजना। (4) नारी जागरण।” (पृष्ठ 56)।

जो परिजन उपर्युक्त संदेश की भाषा समझते हों, वे जान सकते हैं कि इस हीरक जयंती वर्ष में अब क्या कुछ होने जा रहा है। शाँतिकुँज करोड़ों गायत्री साधकों की श्रद्धा का केंद्र यथावत् बना रहेगा। इसके साथ जुड़ा परिसर एक विश्वविद्यालय स्तर के परिसर के रूप में विकसित होगा। इसकी औपचारिक शुरुआत विगत दिनों हो गई जब 8 मई को हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराँचल) के उपकुलपति, कुलसचिव एवं विशेषज्ञों की एक टीम ने आकर प्रारंभिक सर्वेक्षण कर मनोविज्ञान, दर्शन, प्राच्य इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व एवं योग इन चार विषयों में परास्नातक स्तर का प्रशिक्षण देने के लिए देवसंस्कृति महाविद्यालय आरंभ किए जाने हेतु अपनी संस्तुति दे दी है। इस महाविद्यालय की जुलाई के मध्य से अस्सी छात्र-छात्राओं से शुरुआत हो रही है। इसी को आगे चलकर पहले डीम्ड एवं फिर एक पूरी यूनिवर्सिटी का रूप दिया जाएगा, जिसमें पहले बताई चारों विधाएँ अपने पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई जा सकेंगी। इसमें शासन की औपचारिकताएँ मात्र पूरी की जा रही हैं। यह महाविद्यालय पूर्णतः स्वशासित एवं बिना किसी सरकारी अनुदान के जन-जन के लिए कार्य करेगा। इसी को आगामी एक-डेढ़ वर्षों में विश्वविद्यालय स्तर मिलने पर यह बिना किसी अनुदान के जन-जन के सहयोग से ही कार्य करेगा। परिजन इसका स्वागत करें एवं इसे हीरक जयंती वर्ष में गुरुसत्ता के चरणों में चढ़ाया एक पुष्पहार मानें।


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