गौ, गंगा, गीता, गायत्री, सुर संस्कृति के धाम हैं। तो ‘सद्गुरु’ संस्कृति-सदन के शोभित शिखर ललाम हैं॥
सुर संस्कृति चोटी की संस्कृति गुरुता की ऊँचाई है। ‘जगत् गुरु’ की गुरु गरिमा के चिंतन की गहराई है।
इसीलिए हर महापुरुष संग जुड़े गुरु के नाम हैं। ‘सद्गुरु’ ही संस्कृति-सदन के शोभित शिखर ललाम हैं॥
ज्ञान और विज्ञान सभी के मूल गुरु के सूत्र हैं। सुर संस्कृति के उपासकों के चलते गुरु से गौत्र हैं।
ऋषि स्तर की गरिमा वाले ही सद्गुरु के काम हैं। ‘सद्गुरु’ ही संस्कृति-सदन के शोभित शिखर ललाम हैं॥
हृदय गुफा के अंधकार को गुरु का ज्ञान मिटाता है। सद्गुरु ज्ञानस्वरूप प्रकाशित हो सद्पथ दिखलाता है।
गुरु ‘सविता’ हैं ‘सावित्री’ हैं, गुरु ही चारों धाम हैं। ‘सदगुरु’ ही संस्कृति-सदन के शोभित शिखर ललाम हैं॥
गुरु ‘ब्रह्मा’ हैं, शिष्य उन्हीं के मानस पुत्र कहाते हैं। वे ‘विष्णु’ हैं उनके द्वारा पोषण सद्गुण पाते हैं।
वे ‘महेश’ हैं, शिष्यजनों के संरक्षक अविराम हैं। ‘सदगुरु’ ही संस्कृति-सदन के शोभित शिखर ललाम हैं॥
-मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’
*समाप्त*