मदालसा ने अपने तीनों पुत्रों को आदर्शवादी-निवृत्तिमार्गी साधक बनाया। आरंभ से ही वैसे संस्कार दिए और चिंतन उभारे। पति महाराज ऋतध्वज की इच्छा के कारण चौथे पुत्र अलर्क को राजा बनाया। वैसा ही चिंतन विकसित कर गर्भावस्था से ही संस्कार दिए।
अलर्क ने एक बार पूछा-”माँ! तीनों भाइयों ने आत्मकल्याण के लिए वनवासी, कम सुविधा का जीवन क्यों चुना? साधना तो नगर के सुविधाभरे जीवन में भी हो सकती थी?”
मदालसा बोली-”बेटे! बतलाओ, जिसका उद्देश्य नदी पार करना हो, वह सुविधा-सामग्री युक्त विशाल-किंतु छिद्र वाली नौका चुनेगा या सामान्य-सी छिद्रहीन नौका?” अलर्क ने कहा-”निश्चित रूप से छिद्रहीन नौका चुने जाने योग्य है।”
माँ ने समझाया-”वत्स साँसारिक सुख-सुविधाओं के बीच मनुष्य के व्यक्तित्व में दोषों के छिद्र पैदा होने लगते हैं। साधनायुक्त तपस्वी जीवन जीने से व्यक्तित्व का विकास होता है और प्रखरता आती है। इसीलिए साधक सुविधा भरा जीवन छोड़कर तपस्वी जीवन चुनते हैं, ताकि व्यक्तित्व को छिद्रहीन बनाना। साधनों को जरूरत से ज्यादा महत्त्व मत देना। माँ से शिक्षा पाकर ही अलर्क एक सुयोग्य राजा बना।