परिजनों से एक भावभरा अनुरोध

November 1999

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‘अखण्ड ज्योति’ के पृष्ठों पर काले अक्षर ही नहीं छपते, वरन् उसके साथ प्रचंड प्राण−प्रवाह भी बहता है। परमपूज्य गुरुदेव की प्राणचेतना सोतों को जगाती है, जागों को खड़ा करती है, खड़ों को चलाती है और चलतों को उछाल देती है। इस प्राण−प्रवाह की दिव्यक्षमता में कहीं कोई सन्देह की गुँजाइश नहीं है। विगत 62 वर्षों में इस पत्रिका रूपी कल्पवृक्ष की छाया में अनेकों ने अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाया है, परेशानियों से मुक्ति पाई है तथा मनोकामनाओं की पूर्ति होते देखी है। पचास लाख से लेकर एक करोड़ से अधिक चंदनवृक्ष के समान परिजनों को इस कल्पवृक्ष ने पोसा व बड़ा किया है। अपने स्तर को बनाए रख, विज्ञापनबाजी से दूर रह, इस पत्रिका ने सत्प्रवृत्ति−संवर्द्धन की दिशा में जो कार्य किया है, उसका लेखा-जोखा और कहीं देखने को नहीं मिलता। यह एक स्वर से अद्भुत एवं अभूतपूर्व ही कहा जा सकता है।

जो अब तक ‘अखण्ड ज्योति’ के माध्यम से हो चुका है, उसे इतिहास के प्रेरणा पृष्ठ भर कहा जा सकता है। दर्शनीय वह है जो वर्तमान में योजनाबद्ध ढंग से हो रहा है। उत्साहवर्द्धक वह है जो भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है, जिसकी संभावना का चित्र खींचने की सामर्थ्य जिनके भी पास है, वे पुलकन अनुभव करते हैं व विश्वास करते हैं कि ‘सतयुग की वापसी-नवयुग का अवतरण’ निकट भविष्य में होना ही है। यह एक तथ्यपूर्ण यथार्थता है।

जो भी कुछ सामग्री ‘अखण्ड ज्योति’ में प्रकाशित होती है, इस उत्पादन को समुद्रमंथन में उपलब्ध हुए अमृतकलश के समान माना जा सकता है। इसकी महिमा गाई जा सकती है, पर वह वहाँ जाकर अवरुद्ध हो जाती है, जब उसकी वितरण व्यवस्था जन-जन तक पहुँचाने की क्रियाप्रणाली अपंग-असहाय जैसी अस्त−व्यस्त दिखाई पड़ती है। जनसाधारण तक महापूर्णाहुति की वेला में इसे पहुँचाने के लिए अभीष्ट संख्या में कर्मवीर बादलों की तरह मैदान में उतरते नहीं देखे जाते तो लगता है वह लक्ष्य कैसे पूरा होगा, जो युगऋषि ने दिया है। कम-से-कम पोस्टमैन बनकर, उमंग पैदा कर एक से पच्चीस तक पहुँचाने की प्रक्रिया को गतिशील किया जा सकता है।

महापूर्णाहुति के प्रथम चरण में पूर्वाभ्यास के दीपयज्ञ के बाद सभी परिजनों को यह लक्ष्य दिया जा रहा है कि वे पत्रिका की पाठक संख्या वसंतपर्व तक की ढाई माह की अवधि में कम-से-कम पाँच गुना कर दें। यह तभी हो सकेगा जब अखण्ड ज्योति के पृष्ठों में लिपटी प्राणवान् ऊर्जा के महत्व को स्वयं समझा जा सके, उस चेतना में स्वयं को स्नान कराया जा सके। जो उपयोगी है, जिसकी प्रकाशप्रेरणा में जीवन का ज्योतिर्मय होना माना जाता है, उसे अग्रगामी होने के लिए अवसर क्यों न दिया जाए? यह उत्साह मन में क्यों न जगाया जाए कि अपने घर-परिवार के सभी सदस्य उसे पढ़ें या सुनें। एक कदम और आगे बढ़कर मित्रों-संबंधियों-पड़ोसियों-परिचितों तक भी इस प्रयास को गतिशील किया जा सकता है। जो भी इस अमृतकलश से सर्वथा अपरिचित हैं, उन्हें पहले पुराने अंक देकर, फिर स्वयं ही इसे नियमित रूप से प्राप्त करते रहने के लिए प्रेरित किया जा सके तो यह आपका सबसे बड़ा पुण्यपरमार्थ होगा।

‘अखण्ड ज्योति’ का कलेवर अब बढ़े पृष्ठों के साथ 65 पृष्ठ का होगा। यही नहीं, इसमें नियमित चल रहे लोकप्रिय स्तंभों के अतिरिक्त युगानुकूल नई सदी का चिंतन लिए नवीनतम सामग्री भी होगी। पहली शुरुआत हम जनवरी 2000 के सहस्राब्दी विशेषाँक ‘महापूर्णाहुति विशेषाँक’ से कर रहे हैं। इसकी सामग्री अति रोचक व पूरी सहस्राब्दी के सफरनामे से लेकर भविष्य की संभावना से भरी होगी। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर नवीनतम खोजों के निष्कर्ष-भारतीय संस्कृति के विश्व-विद्यालय की समग्र पाठ्यसामग्री लिए, इक्कीसवीं सदी के समाज का संविधान का स्वरूप तथा साधनापद्धति में परमपूज्य गुरुदेव द्वारा प्रणीत नए सूत्रों के समावेश से भरे लेखन का समुच्चय होगा अखण्ड ज्योति 2000 व उसके बाद के अंकों का प्रारूप।

महापूर्णाहुति जिस विराट् लक्ष्य को लेकर आयोजित की गई है, वह सफल निश्चित ही होनी है, जो लक्ष्य परिजनों को प्रभावित कर उसकी प्रखर आभा से आलोकित करने का रखा गया है, वह करोड़ों की संख्या को स्पर्श करने जा रहा है। इससे जो भूख पैदा होगी वह विचारक्राँति प्रधान साहित्य एवं अखण्ड ज्योति पत्रिका जन-जन तक पहुँचाकर ही पूरी की जा सकती है। अखण्ड ज्योति हर व्यक्ति तक पहुँचाने का अर्थ है-संस्कारों का समुच्चय एवं परमपूज्य गुरुदेव की प्रखर प्रज्ञा व परमवंदनीया माताजी की सजल श्रद्धा को उनके घरों में पहुँचाना।

सभी पाठकों से यही भावभरा अनुरोध है कि वे इन दिनों एक आदर्शवादी लक्ष्य अपने सामने रख ‘अखण्ड ज्योति’ के पाठक-ग्राहक अधिक-से-अधिक बनाए बिना चैन न लें। पत्रिका महंगाई के युग में भी उसी मूल्य में परंतु बढ़े कलेवर में परिजनों तक पहुँचती रहेगी। वार्षिक चंदा है 60 रुपये, आजीवन के लिए 750 रुपये एवं विदेश के लिए 5000 रुपये प्रतिवर्ष। सन् 2011-2012 में मनाई जाने वाली पूज्यवर की जन्मशताब्दी तक हम सबको अपनी सदस्यता स्थिर रखनी है, यह संकल्प तो लेना ही है।

*समाप्त*


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