टिटियन नामक प्रसिद्ध चित्रकार के जीवन की एक घटना है। वह एक दिन अपने स्टूडियो में बैठा चित्र बना रहा था। उसने अपना सर्वस्व ही चित्रों में उड़ेल रखा था। अनेक व्यक्ति उसके पास चित्रों को देखने और खरीदने को आ रहे थे। एक धनिक कलाप्रेमी आया। उसने देर तक एक चित्र को देखकर पूछा, “मैं इस चित्र को अपने लिए चुनता हूँ। इसका मूल्य क्या है?”
“पचास गिन्नियाँ।” चित्रकार ने शाँत स्वर में उत्तर दिया।
“एक छोटे-से चित्र का इतना अधिक मूल्य! आपको इस चित्र को बनाने में कठिनता से एक सप्ताह लगा होगा। कागज, रंग इत्यादि का खरच तो नहीं के बराबर है। फिर इसका दाम पचास गिन्नियाँ कैसे? आप शायद भूल करते हैं।”
टिटियन ने उत्तर दिया,”महाशय, आप भूलते हैं। पूरे तीन साल निरंतर परिश्रम करने के बाद मैं इस योग्य बना हूँ कि ऐसे चित्र को चार दिनों में ही बना सकता हूँ। इसके पीछे मेरा वर्षों का अनुभव, साधना और योग्यता छिपी हुई है।”
धनी व्यक्ति उत्तर से संतुष्ट हुआ। उसने इतने बड़े मूल्य पर उस चित्र को खुशी-खुशी खरीद लिया। यदि चित्रकार अपनी कला का मूल्य कम लगाता, तो निश्चय ही उसे कम मूल्य मिलता। पर उसके आत्मविश्वास और कलासाधना की अंततः जीत हुई।
जिसने अपने को जितना मूल्यवान समझा संसार से उसका उतना ही मूल्य प्राप्त हुआ। हमें उतना ही सम्मान, यश, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि प्राप्त होती है, जितना हम स्वयं अपने व्यक्तित्व का लगाते हैं।