आत्मपरिष्कार (Kahani)

November 1999

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एक नट खेल दिखाकर लौटा तो पीछे-पीछे एक साधु भी अपने शिष्य के साथ चल पड़े। मार्ग में नदी पड़ी। नट किनारे बैठकर नाव वाले को पुकारने लगा। संत ने पूछा-क्यों भाई तुम तो ऐसे-ऐसे करतब दिखा रहे थे-यह छोटी-सी नदी भी पार नहीं कर सकते? नट ने कहा- भगवन्! नटकला और बात है नदी पार करना और। इन दोनों में कोई संगति नहीं।

साधु ने अब शिष्य की ओर संकेत करके कहा-तात्! ऐसे ही आध्यात्मिक उन्नति के लिए साँसारिक दृष्टि से चतुर होना ही पर्याप्त नहीं, उसके लिए तो साध नहीं काम आते हैं। बिना आत्मपरिष्कार के सारे कर्मकाँड मात्र इस नट के क्रिया–कलापों तक ही सीमित हैं।


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