युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय -अमृत कलश

November 1999

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65- सामाजिक नैतिक एवं बौद्धिक क्राँति कैसे?

पिछले युगों की अपेक्षा आज का मनुष्य अधिक सुविधा एवं साधन संपन्न है किंतु, फिर भी वह दुखी है। इसका कारण यह है कि हमने समाज के इन तथ्यों को भुला दिया है-

विचारक्रान्ति अपने समय की असाधारण महाक्राँति।

बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक क्राँति -पृष्ठभूमि, रूपरेखा।

बौद्धिक क्राँति हेतु प्रेरक प्रयास।

बौद्धिक क्राँति की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम।

शाँतिकुँज की प्राणवान् प्रशिक्षण प्रक्रिया।

नैतिक क्राँति की दिशाधारा।

सामाजिक क्राँति क्यों और कैसे?

युगपरिवर्तन का अंतिम चरण-महासंघर्ष।

सामाजिक क्राँति और उसका आधार।

समाज की अभिनव रचना-सद्विचारों से।

67-प्रेरणाप्रद दृष्टाँत

जनसाधारण को समझाने की दृष्टि से दृष्टाँत कथापरक होते हुए भी प्रेरक होते हैं। ऐसे ही श्रेष्ठ दृष्टाँतों के संकलन में है-

आस्तिकता और ईश्वरविश्वास।

ईश्वरभक्ति और आध्यात्मिकता।

आत्मबोध और आत्मविस्तार।

आत्मशोधन और जीवनसाधना।

सेवा, परोपकार और पुण्यपरमार्थ।

पात्रता की कसौटी एवं योग्यता की परख।

प्रेम, करुणा और उदारता।

उत्सर्ग, त्याग और बलिदान।

कर्तव्यपरायणता और सिद्धाँतनिष्ठा।

संयम, संतुलन एवं आत्मनियंत्रण।

66 -युग निर्माण योजना-दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम

नवयुग के नवनिर्माण का काम जाग्रत और जीवंत तथा कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों के द्वारा ही संभव है। ऐसे ही भावनाशीलों का संगठन करने हेतु युगनिर्माण परिवार के प्रमुख सूत्र हैं-

युगनिर्माण योजना और उसकी दिशाधारा।

युगनिर्माण योजना -दर्शन और स्वरूप।

नवनिर्माण की पृष्ठभूमि और आधार।

युगनिर्माण योजना की रूपरेखा और कार्यपद्धति।

युगनिर्माण सत्संकल्प की दिशाधारा।

युगनिर्माण योजना के आदर्श और सिद्धाँत।

युगनिर्माण योजना का शतसूत्री कार्यक्रम।

युग की वह पुकार, जिसे पूरा होना ही है।

अशिक्षा का अंधकार दूर किया जाए।

68-पूज्यवर की अमृतवाणी (भाग एक)

अपने दीर्घ तपस्वी जीवन के अनुभव और साधना-सार को बहुत ही सुँदर रूप में प्रस्तुत करना कठिन कार्य है, किंतु जब अमृतवाणी में आप पढ़ते हैं, तब पाते हैं-

मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग का अवतरण।

देवसंस्कृति के दो आधार-गायत्री और यज्ञ।

आध्यात्मिक कायाकल्प के सूत्र और सिद्धांत।

साधना से सिद्धि।

महाकाल की पुकार अनसुनी न करें।

युगपरिवर्तन की पूर्व वेला एवं संधिकाल।

विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयार।

आपत्तिकाल का अध्यात्म।

धर्मतंत्र की गरिमा एवं महत्ता।

69-विचारसार एवं सूक्तियाँ (प्रथम खंड)

साहित्य में यत्र-तत्र अत्यंत उत्तम स्थल एवं विचारों का गुँफन मिलता है। सारपूर्ण विचारों को मनुष्य ग्रहण करता है तो उसे जीवन में अनायास लाभ मिलता है। इन्हीं विचारसार एवं सूक्तियों में हैं-

अध्यात्म एक चिंतनधारा।

धर्म और विज्ञान।

जीवनसाधना।

मनोबल एवं इंद्रियनिग्रह।

सद्गुणों की सच्ची संपत्ति।

समय का सदुपयोग।

छिद्रान्वेषण।

मूढ़’-मान्यताएँ और अंधविश्वास।

70- विचारसार एवं सूक्तियाँ (द्वितीय खंड)

जीवन की धाराएँ विभिन्न होना संभव है, किंतु जीवन के मूल सिद्धांत प्रायः समान ही होते हैं। सारयुक्त विचारों और सूक्तियों का सावधानीपूर्वक चयन करें तो पाते हैं-

राष्ट्र और संस्कृति, महापुरुषों की वाणी।

पंथ अनेक, लक्ष्य एक।

कुछ महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सूक्तियाँ।

विवेक-सतसई।

जीवन-मूल्य, भावसंवेदना, अपना दृष्टिकोण बदलें।

सेवा-साधना स्वाध्याय एवं सद्विचार।

स्वस्थ जीवन, भोगविलास, त्याग और बलिदान।

महापुरुषों की दिव्य-अनुभूतियाँ और दिव्यसंदेश।

वेदों की दिव्यसूक्तियाँ।

परमात्मा और उसकी उपासना।


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