जिज्ञासु व्यक्ति किसी भी बात की तह तक बैठकर उसमें से किसी-न’किसी प्रकार की उपयोगिता खोज लाता है। जिज्ञासा शारीरिक,मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चारों उन्नतियों की हेतु होती है। मनुष्य को अपनी जिज्ञासा को प्रमादपूर्वक नष्ट नहीं करना चाहिए। उसे विकसित एवं प्रयुक्त करना चाहिए और जिसमें नहीं है, उसे चाहिए कि वह तन्मय एवं गहरे पैठने के अभ्यास से उसे पैदा करे, क्योंकि जिज्ञासा भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में प्रगति एवं उन्नति का आधार बनती है।
एक बादशाह का एक बहुत ही मुँह लगा नौकर था। वह दिन-रात बादशाह की सेवा में लगा रहता था। एक दिन उसे विचार आया कि वह बादशाह की सेवा में दिन-रात लगा रहता है, तब भी उसे केवल पाँच रुपये ही मिलते हैं और मीर मुँशी जो कभी कुछ नहीं करता पाँच सौ रुपये वेतन पाता है। इस भेद का क्या कारण है? उनने अपने यह उलझन बादशाह को कह सुनाई। बादशाह ने हँसकर कह दिया-किसी दिन मौके पर बतलाऊँगा।
एक दिन एक घोड़ों का काफिला उसकी सीमा से गुजरा। बादशाह ने अपने सेवक को भेजा कि जाकर मालूम कर यह काफिला कहाँ जा रहा है?
नौकर गया और आकर बतलाया कि हुजूर वह काफिला सीमा के कंधार देश जा रहा है।
अब बादशाह ने मीर मुंशी को भेजा। उसने आकर बतलाया कि यह काफिला काबुल से आ रहा है और कंधार जा रहा है। उसमें पाँच सौ घोड़े और बीस ऊँट भी है। मैंने अच्छी तरह पता लगा लिया है कि वे सब सौदागर हैं और घड़े बेचने जा रहें हैं। खरीदना चाहें तो कम कीमत पर मिल सकते हैं। मैंने पचास ऐसे घोड़ों को छाँट लिया है, जो नौजवान और बड़ी ही उत्तम नस्ल के हैं। बादशाह ने तुरंत ही पचास घोड़े खरीद लिए, जिससे उसे कम दामों पर अच्छे घोड़े मिल गए। काफिले के विषय में चिंता जारी रही और उन परदेशी सौदागरों पर बादशाह की गुण-ग्राहकता का बड़ अनुकूल प्रभाव पड़ा। बादशाह ने नौकर से कहा-देखा तुम्हें पाँच रुपये क्यों मिलते हैं और मीर मुँशी को पाँच सौ क्यों? नौकर ने इस अंतर के रहस्य को समझा और सदा के लिए सावधान हो गया।