दृढ़ निश्चय हो तो सफलता अवश्य मिलेगी

November 1999

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जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता का मूल मंत्र व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति, अटूट विश्वास एवं एकनिष्ठ प्रयास है। अन्य बातें समान होने पर भी अनेक व्यक्तियों में से वही सफल होता है, जिसकी इच्छाशक्ति सबसे प्रबल और अधिक पूर्ण होती है। सफलता का इतिहास लिखने वाले सभी व्यक्तियों ने इसी गुण के बल पर महान् सफलताएँ अर्जित कीं। उनमें भले ही अन्य गुण न रहे हों, चाहें उनमें कुछ दुर्बलताएँ भी क्यों न रही हों परंतु अटूट निश्चय एवं दृढ़ इच्छाशक्ति द्वारा वे भीषण बाधाओं के बीच भी निरंतर संघर्ष करते रहे और अंततः उन्नति के महान् शिखरों पर आरुढ़ हुए।

‘रिअलाइज युअर पोटेंशियल’ के विद्वान लेखक वी. पेकेलिस ने ऐसे कई इतिहासपुरुषों का हवाला पुस्तक के अध्याय ‘डिवाइन वर्सेज सेल्फ मेड जीनियस’ में दिया है। जो बचपन या युवावस्था तक सामान्य से भी न्यूनस्थिति में पड़े रहे, परंतु समय के साथ जब उन्होंने होश सँभाला तो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं ध्येयनिष्ठा के आधार पर अद्भुत गति से सफलता के मार्ग पर आगे बढ़े। यूनान के महानतम वक्ता डेमोस्थनीज अपने शुरुआती दौर में बहुत ही संकोची व तुतलाकर बोलने वाले बालक थे, जिनसे कोई बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती थी। रूस के श्रेष्ठतम विद्वान मिखाइल लोमोनसेव एक अनपढ़ किसान परिवार में जन्मे थे। सुविख्यात वैज्ञानिक न्यूटन को भौतिकी एवं गणित बहुत कठिन विषय लगते थे। चार्ल्स डार्विन को पिता के ताने इसलिए सुनने पड़ते थे कि उसे शिकार एवं आवारागर्दी के सिवा और कुछ नहीं आता। जेम्सवाट, जोनाथन स्विफर और कार्ल गाँस स्कूल में नालायक विद्यार्थियों की श्रेणी में गिने जाते थे। किंतु इन सभी व्यक्तियों ने अपने अध्यवसाय के बल पर अपनी दुर्बलताओं, अक्षमताओं को तोड़-मरोड़कर रख दिया और अपने-अपने क्षेत्रों में स्वयं के व्यक्तित्व एवं प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ते हुए इतिहासपुरुष बन गए।

यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जिस भी वस्तु की इच्छा हम मन में करते हैं, उसकी ओर हमारी समूची शारीरिक एवं मानसिक शक्तियाँ लग जाती हैं। मन में संकल्प के रूप में उभरी आशा-आकाँक्षाएँ ही समय के साथ जीवन में मूर्तरूप लेती है। सुप्रख्यात विचारक कैंडी का कहना है कि आपके हृदय में जब किसी पदार्थ के प्रति तीव्र इच्छा जाग्रत होती है, तो समझ लीजिए कि परमात्मा ने आपके लिए विशेषतौर पर उसे सुरक्षित रखा हुआ है। फिर भले ही आप निराशा के झूले में झूलते रहें या अंधकार में भटकते रहें-इस बात की कोई चिंता नहीं। यदि आपमें ध्येय के प्रति अटूट निष्ठा और दृढ़ संकल्प है, तो आपको इसमें अवश्य सफलता मिलेगी।

अभिनेता विल्फटन कापड़े ने जब अभिनय शुरू किया, तो लोगों का कहना था कि वह कभी भी अभिनय नहीं कर सकेगा। लेकिन कापड़े अपने निश्चय पर अटल था। वह बराबर अपना सुधार करता रहा, निरंतर अपने अभिनय को निखरता रहा और एक दिन अमेरिका का स्टार बन गया। उसकी सफलता का रहस्य केवल इतना था कि उसने अपनी समस्त शक्तियों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर दिया था। जब तक व्यक्ति अपने जीवन की समूची शक्ति किसी कार्य में नहीं लगा देता, तब तक वह किसी ठोस सफलता की आशा नहीं कर सकता। अमेरिकन राष्ट्रपति रुजवेल्ट के जीवन का महान् रहस्य यही था कि वह संपूर्ण जीवनीशक्ति को दृढ़ संकल्प के साथ लक्ष्य पर लगा देते थे। जिस भी काम को वे हाथ में लेते थे, उसमें अपनी पूरी सामर्थ्य संगठित करके झोंक देते थे।

दृढ़ संकल्प में अद्भुत शक्ति है, उससे प्रेरित व्यक्ति दृढ़ता व लगन के साथ आगे बढ़ता है। दृढ़ संकल्प पीछे लौटने के सभी रास्तों को बंद कर देता है और आगे की बाधाओं को रौंद डालता है। अब्राहम लिंकन ने स्वाधीनता संघर्ष के समय अपनी डायरी में लिखा था कि मैं इस काम को अवश्य पूरा करूंगा। इस प्रण ने ही उन्हें वह सामर्थ्य दी, जिससे वे उस कार्य को पूरा कर सके और आपातकाल में देश को सफल नेतृत्व देने में समर्थ हुए।

अपना लक्ष्य निर्धारण-निश्चित होने पर ही मन-मस्तिष्क की समस्त शक्तियाँ एवं योग्यताएँ एक बिंदु पर केन्द्रित हो जाती हैं और तभी अभीष्ट सफलता का मार्ग सरल व सुनिश्चित होता है। युद्ध में नैपोलियन की सफलता का सबसे बड़ा कारण यही था कि उसका लक्ष्य निश्चित होता था और वह सीधा निशाने पर वार करता था। अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर ही नैपोलियन ने अपने समय की स्थिति को थाम लिया था। ग्लैडस्टन का मस्तिष्क बहुत ही तीव्र था, फिर भी उसका कहना था कि वह एक समय में दो काम नहीं कर सकता। वह जिस काम को करता था, एकाग्रचित्त होकर करता था और उसी में अपनी सारी शक्ति लगा देता था। हाथ में लिए हुए काम में उसकी लगन व शक्ति साफ दिखने लगती थी। यहाँ तक कि जब वह किसी मनोविनोद के सामान्य से प्रसंग में लीन होता था, तब भी वह एकाग्रचित्त, तन्मय और तल्लीन हो जाता था।

सफलता के अभीप्सु व्यक्ति के लिए चित्त की एकाग्रता अनिवार्य शर्त है। यदि शक्तियों को एक ही समय में कई बातों में बिखेर दिया जाए, तो सफलता प्रायः संदिग्ध हो जाती है। सभी महान् व्यक्तियों में चित्त की एकाग्रता बहुत अधिक थी।वे अपने उद्देश्य से बाहर की बातों को ध्यान से ही निकाल देते थे। इससे कुछ अधिक स्वेटमार्डन लिखते हैं कि हिचकिचाहट या दुविधा व्यक्ति की असफलता एवं दुःखी होने के वे दो कारण बताते हैं। एक है- अपनी योजनाओं के लिए पक्के निश्चय की कमी और दूसरा उन पर काम करते समय बार-बार की दुविधा।

जॉन ऑफ आर्क की सफलता का रहस्य यही था कि वह कभी दुविधा में नहीं रहती थी। वह किसी टेढ़े सवाल को सामने देखती तो फौरन उसे हल करने चल पड़ती थी। वह तुरंत निर्णय लेती थी। उसने साहस, वीरता और अद्भुत प्रतिभा से अधिक इसी गुण की बदौलत विजय पाई थी। कोलंबस अपने निश्चय के बल पर ही सफल हुआ था। उसमें दृढ़ निश्चय शक्ति थी, जिसके बल पर वह सीधा लक्ष्य की ओर चल पड़ा था। चाहे कुछ भी हो, लोग कितनी भी निंदा करें, उसने निराशा को हावी नहीं होने दिया।

लक्ष्य एवं आदर्श की एकनिष्ठा का महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद अपने व्याख्यान ‘द पॉवर ऑफ माइंड’ में कहते हैं- यदि जीवन में अभीष्ट सफलता चाहते हो तो एक आदर्श को लो, उसका चिंतन-मनन करो, उसी को अपने सपने में पा लो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुतंत्र व समूचे अंग-प्रत्यंगों को इसी आदर्श के विचार से ओत−प्रोत कर दो और अन्य विचारों को एक तरफ हटा दो। फिर देखो सफलता कैसे तुम्हारे कदम चूमती है। यदि तुम अपना जीवन सफल बनाना चाहते हो व समूची मानवजाति के लिए वरदान बनना चाहते हो तो तुम्हें गहराई में जाना होगा। दृढ़ निश्चयी व्यक्ति को उसका लक्ष्य रूपी ध्रुवतारा बड़ी-से-बड़ी बाधाओं को पार करने की शक्ति देता है। परिस्थितियों के ज्वार−भाटों व आँधी -तूफानों के बीच भी वह हिम्मत नहीं हारता और निरंतर अपने ध्येय की ओर बढ़ता रहता है।

महाकवि मिल्टन का कथन था- ”परिस्थितियाँ संभवतः कभी व्यक्तियों की सहायता नहीं करती। जिन लोगों ने विजय के लिए घोर संघर्ष किया, अपने मार्ग की बाधाओं से लड़ाई लड़ी, वे ही सफलता के दरवाजे तक पहुँच पाए।

परिस्थितियों पर विजय का सच्चा मार्ग यही है कि हम परिस्थितियों से अधिक प्रबल एवं महान् बन जाए।” डिजरायली के अनुसार मनुष्य को परिस्थितियों का दास नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे परिस्थितियों को अपने अधीन रखना चाहिए। डिजरायली का अपना जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था। विदेश में जन्म लेकर इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बनने में वे सफल हो गए थे।

जिनका कोई उद्देश्य नहीं होता, उनका जीवन बिना पतवार की नाव की तरह होता है। ऐसे व्यक्ति एक बिंदु पर ध्यान एकाग्र नहीं कर पाते। उनमें उद्देश्य, साहस व चरित्र की कमी होती है। वे जीवन को जैसे-तैसे काटते रहते हैं। उद्देश्य के अभाव में उनको न दिशाबोध होता है, न कोई योजना होती है और वे परिस्थितियों के दास होते हैं। वे बिना रीढ़ के व्यक्ति की तरह होते हैं, जो अपनी शक्ति व क्षमताओं को संगठित नहीं कर पाते। स्थिर उद्देश्य के अभाव में जीवन विचारों की झोंक के अनुसार चलता है। बिना पतवार की नाव की तरह हवा अनुकूल हुई तो शायद वह बंदरगाह तक पहुँच भी जाए और यदि उलटी हो तो नाव चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो सकती है।

दृढ़ निश्चयी व उद्देश्यनिष्ठ व्यक्ति जीवन की विषम परिस्थितियों के बीच भी अपना मार्ग खोज लेते हैं। साधन-सहयोग का अभाव या प्रतिकूल परिस्थितियाँ उन्हें नहीं रोक सकतीं। ‘इफ यू रिअली वाँट टू सक्सीड’ में जॉन एंडरसन लिखते हैं कि मैंने सीखा कि किसी भी क्षेत्र में चरम शिखर पर पहुँचने वाले अनिवार्य रूप से प्राकृतिक प्रतिभासंपन्न नहीं होते। बल्कि वे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति होते हैं, जो अथक् श्रम एवं अध्यवसाय से निरंतर लक्ष्य की ओर गतिशील रहते हैं। जॉनलीडन इसी तरह के एक उदाहरण हैं, जो गड़रिये के घर में पैदा हुए। उनकी स्कूली शिक्षा प्राइमरी तक ही सीमित रही, किंतु उनकी ज्ञान−पिपासा अदम्य थी। सारी बाधाओं का सामना करते हुए उन्होंने अंततः पुस्तकों की एक दुकान खोजी और यहीं आकर किताबें पढ़ने लगे। इस क्रम में उन्हें अन्न-जल तक की सुधि न रहती। इस रास्ते में तमाम बाधाएँ आईं, लेकिन उनकी ज्ञान−पिपासा के संकल्प को हतोत्साहित न कर सकीं और अंततः एक समय वह भी आया जब उन्होंने मात्र 19 वर्ष की अवस्था में अपने ग्रीक एवं लैटिन के ज्ञान से समूचे यूरोप को आश्चर्यचकित कर दिया। शायद इसीलिए पाश्चात्य जगत् के महान् मनीषी सैमुअल विल्सन कहा करते थे कि मैं दीर्घकालीन चिंतन-मनन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं और कोई भी शक्ति इच्छाशक्ति को नहीं रोक सकती। जो अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने समूचे अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हैं, उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं।

नेलसन नामक महान् अंग्रेज योद्धा द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने अद्वितीय रणकौशल व सफलताओं की लंबी श्रृंखला के लिए चिरस्मरणीय बने हुए हैं। उनकी नीति थी कि वह प्रत्येक कार्य को सफलता के अटल निश्चय, अदम्य विश्वास व अटूट निष्ठा के साथ करते थे, जिसमें असफलता की कोई गुँजाइश शेष नहीं रहती थी। एक बार मोरचे पर उनके एक सहयोगी कैप्टन ने जब उनकी योजना की सफलता पर संदेह व्यक्त किया, तो नेल्सन का आत्मविश्वास खौल उठा और उन्होंने पूरे निश्चय से कहा-जीत निश्चय ही हमारी होगी। विजय की कहानी कहने वाला कोई बचेगा या नहीं, यह पता नहीं। कल इस समय से पहले या तो मुझे विजय मिलेगी या वेस्टमिंस्टर में मेरी कब्र तैयार होगी। जिसके पास इस तरह का दृढ़ निश्चय, अडिग आत्मविश्वास और साहस है, उसे आगे बढ़ने से भला कौन रोक सकता है!

परिस्थितियों के अत्याचारी हाथ ऐसे संकल्पवान् को अधिक देर तक अपनी मुट्ठी में दबोचकर नहीं रख सकते। ऐसे व्यक्ति के लिए समूचा संसार भी एक ओर हटकर मार्ग दे देता है। महाकवि गेटे के अनुसार-”जिसकी इच्छाशक्ति अटल व अटूट है वह विश्व को अपनी इच्छा के साँचे में ढाले लेता है।” चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना था कि एक विशाल सेना के सेनापति को हटाया जा सकता है,किंतु एक मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति को कोई नहीं हटा या झुका सकता।

आधुनिक मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी विषय के प्रति आपकी सच्ची लगन ही आपकी सफलता के मार्ग को प्रशस्त करती है। यदि आप लक्ष्य के प्रति ईमानदार हैं, तो आप उसे अवश्य पा जाएँगे। आप इस जीवन में धन, बल, विद्या, श्रेष्ठता, सफलता जो भी चाहते है, वह आपको अवश्य मिलेगी। आवश्यकता इतने भर की है कि इच्छा करनी होगी और उसे पूर्णरूपेण चाहना होगा, न कि एक समय में सैकड़ों अन्य चीजों को उतनी ही तीव्रता से चाहें। एक कहावत सुप्रचलित है-ईश्वर उसी की सहायता करता है, जो अपनी सहायता अपने आप करते हैं। यों संसार में अपने भाग्य का रोना रोने वालों की कमी नहीं है, जो अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोष देते रहते हैं या परिस्थितियों का हवाला देकर स्वयं को झूठी साँत्वना देते हैं। कुछ तो नास्तिक बनकर ईश्वर को कोसते रहते हैं, किंतु दृढ़ निश्चयी एवं उत्साही व्यक्ति को किसी भी तरह से निराशा या हताश होने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसका निश्चित उद्देश्य एवं लक्ष्य आदर्श के प्रति अदम्य उत्साह एवं अनन्य लगन उसकी सफलता एवं उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करते हैं, क्योंकि ये ही सफलता, प्रगति एवं उन्नति के मार्ग की प्रथम आवश्यकताएँ हैं। बाकी गुण तो स्वयं ही इनका अनुसरण करते हैं और लक्ष्य की प्राप्ति को सुनिश्चित करते हैं।


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