प्रतिभा संवर्द्धन की दिशा में चल रहे बहुमुखी प्रयास

November 1999

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एक जमाना था, जब बुद्धिमत्ता का मूल्याँकन इस आधार पर किया जाता था कि मस्तिष्क में कितना अधिक या कम द्रव है; वह कितना भारी, बड़ा या विस्तार वाला है। अब यह बात पुरानी पड़ गयी। प्रतिभा और प्रखरता अब अभ्यास पर अवलंबित आँकी गई हैं। किसी विचारधारा में रुचिपूर्वक निमग्न रहने पर सामान्य बनावट के मस्तिष्क को भी इतना प्रशिक्षित किया जा सकता है कि उसे अपने विषय का विशेषज्ञ होने का अवसर मिल सके। कुछ अपवादों को छोड़कर सभी ढंग से निर्वाह कर सकने में समर्थ हैं।

मस्तिष्क का आकार, प्रकार और विस्तार इस बात का चिन्ह नहीं है कि उतने भर से किसी की बुद्धिमत्ता समुन्नत स्तर की बन जाएगी। गेटे, मैकियावेली, क्राँमवेल, मोजार्ट, ज्विग जैसे मनीषियों के मस्तिष्क शरीरविज्ञान के अनुसार ही पूर्ण और परिपुट पाए गए, किंतु आइंस्टीन का मस्तिष्कीय भार और प्रभाव कम आँका गया था, फिर भी उनकी बौद्धिक क्षमता की तुलना अन्य किसी के साथ नहीं की जा सकी। कई वर्षों तक उनका मस्तिष्क सुरक्षित रखा गया, ताकि उस पर अध्ययन किया जा सके; लेकिन निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। स्त्रियों के मस्तिष्क का भार और क्षेत्रफल कम होता है, इतने से ही यह नहीं कहा जा सकता कि वे बुद्धिमान नहीं होतीं।

मस्तिष्कीय संरचना पर ध्यान देते हैं, तो उसके दृश्य विभाजन को क्षमता स्तर पर वर्गीकृत करने पर तीन नए विभागों में बाँटा जा सकता है- आदि मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क और वर्तमान मस्तिष्क। आदि मस्तिष्क को जड़, मध्य को तना और वर्तमान को डालियों, पत्तियों एवं कलियों के रूप में चित्रित किया जा सकता है। आदि मस्तिष्क वह है, जो प्रगतिक्रम में अनादिकाल से लेकर अब तक की विभिन्न रूप में संचित की गई जानकारियों, आदतों को सँजोए रहता है। मध्य मस्तिष्क वह है, जिसकी अविज्ञात या अतींद्रिय क्षेत्र के रूप में विवेचना की जाती है। वर्तमान मस्तिष्क वह है, जो गर्भाधान से लेकर भ्रूण, शैशव अवधि के उपलब्ध हुए संस्कारों तथा संपर्क, शिक्षण, अनुभव के आधार पर बनता और विकसित होता है। एक के ऊपर दूसरा, दूसरे के ऊपर तीसरा-यह क्रम प्याज की परतों के समान है। इनमें सबसे अधिक सशक्त छोटा होने पर भी आदि मस्तिष्क ही है। इसे जीवनसमुदाय का प्रतिनिधि भी कहा जा सकता है। वास्तविक व्यक्तित्व इसी केंद्र में केंद्रीभूत रहता है।

मस्तिष्क में सक्रिय घटक जिन्हें ‘नर्वसेल’ कहते हैं, प्रायः 10 अरब पाए जाते हैं, जबकि संसारभर में मनुष्यों की संख्या लगभग छह अरब है। हर नर्वसेल आकार-प्रकार में नगण्य होते हुए भी सामर्थ्य और संरचना की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि दृश्यमान एक परिपूर्ण मनुष्य। संसारभर के मनुष्यों को सही रास्ते पर चलाया जा सके, तो विश्व-व्यवस्था का स्वरूप इसी धरती पर स्वर्ग से बढ़कर दृष्टिगोचर होने लगे। ठीक इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य अपने मस्तिष्कीय घटकों को अनुशासन में रखने और उन्हें अधिक सुयोग्य-सक्षम बनाने में जुट पड़े, तो इतने भर से उसे उन्हीं परिस्थितियों में देवतुल्य सुविकसित स्थिति प्राप्त कर सकने का अवसर मिल सकता है। संसारभर के छह सौ करोड़ मनुष्यों के बिखराव और स्वेच्छाचार को देखते हुए उनका नियमन कठिन है; पर किसी मनस्वी व्यक्ति के लिए यह सरल है कि अपनी मानसिक संपदा का महत्व समझे और उसे अधिक प्रखर बनाने या सत्प्रयोजनों में लगाए रहने में सफल सिद्ध हो सके। इस दिशा में प्रयत्नरत मनुष्य को विश्वशासन की व्यवस्था सँभालने वाले चक्रवर्ती राजा के समतुल्य माना जा सकता है।

मस्तिष्क की विशेषता उसके भार या विस्तार पर निर्भर नहीं होती, वरन् इस बात पर निर्भर रहती है कि उसके घटकों की संख्या, सूक्ष्मता एवं ऊर्जा की स्थिति क्या है? भार की दृष्टि से व्हेल का मस्तिष्क 7000 ग्राम होता है। मनुष्यों में नर का 1400 ग्राम और नारी का 1300 ग्राम के लगभग होता हैं। इस आधार पर किसी की कुशलता या विशिष्टता का मूल्याँकन नहीं किया जा सकता। वह तो सूक्ष्म संरचना पर आधारित है। इस दृष्टि से भी मनुष्य को अतिरिक्त रूप से भाग्यवान् कहा जा सकता है कि उसने न केवल अनेक विशेषताओं से भरापूरा शरीर पाया है, वरन् इस स्तर का मस्तिष्क भी उपलब्ध किया है, जिसे विश्वसंपदा का बीजाणु कहा जा सके। सौरमंडल की हलचलों तथा वैभवों का सार-संक्षेप परमाणु के छोटे-से कलेवर में भरा हुआ है। इसी प्रकार विश्वचेतना की समस्त संभावनाओं को मानव मस्तिष्क के तनिक-से क्षेत्र में केंद्रीभूत समझा जा सकता है। उसका जाग्रत भाग भी कम आश्चर्यजनक नहीं, फिर प्रसुप्त की परतें यदि उघाड़ी जा सकें, तो उस तिजोरी की बहुमूल्य रत्नराशि की तुलना कुबेर के वैभव से कम नहीं आँकी जा सकती।

संसार में अगणित व्यक्ति विलक्षण मेधावान हुए हैं। कितनों की स्मरणशक्ति आश्चर्यजनक थीं। किन्हीं में दूरदर्शिता, प्रतिभा, सूझबूझ एवं संभावनाओं का सही अनुमान लगा सकने जैसी विशेषताओं का बाहुल्य पाया गया है। ऐसे असाधारण मेधावी लोगों का अपना इतिहास और कीर्तिमान है। कभी ऐसे प्रसंगों को दिव्य वरदान या भाग्योदय जैसे कारण बताकर समाधान किया जाता था; पर अब पर्यवेक्षण ने सिद्ध कर दिया है कि यह मनःक्षेत्र की प्रसुप्ति में जहाँ-तहाँ जागरण होने भर का चमत्कार है। उस आधार पर मानसिक और शारीरिक क्षमताओं की दृष्टि से वह अपनी स्थिति असामान्य स्तर की बना सकता है। कभी हनुमान का समुद्र छलाँगना, रावण का दस सिर बीस भुजाओं वाला होना, सहस्रार्जुन को हजार भुजा वाला कहा जाना पौराणिक उपाख्यान कहा जाता रहा होगा; किंतु अब ऐसी विशेषताओं से संपन्न होना संभव की परिधि में आ गया है। मानवीय मस्तिष्क असाधारण रूप से विलक्षण है। उसके रहस्यमय कोष्ठक यदि अपना-अपना काम आँशिक रूप से भी करने लगें, तो व्यक्तित्व में ऐसी विचित्रताएँ उभर सकती हैं, जिन्हें चमत्कारी ऋद्धि-सिद्धियों में गिना जा सके।

मानसिक क्षमता के अभिवर्द्धन में तीन तत्व काम करते हैं। एक, सात्विक आहार, जिससे रक्त में अनावश्यक उत्तेजना उत्पन्न न होने पाए और मस्तिष्क शाँत-सौम्य बना रहे। दूसरा, उद्विग्नताओं से बचाव, चिंताओं एवं मनोविकारों से छुटकारा। यदि चिंतन विधेयात्मक रहे और आवेशों से परहेज रखे, तो सीधी-सादी सरल, संतोषी और सही जिंदगी आसानी से गुजर सकती है। ऐसी दशा में विक्षोभरहित मस्तिष्क सही काम को सही ढंग से करते हुए क्रमिक रूप से प्रगति करता रहेगा। तीसरा आधार है-प्रशिक्षण। अभ्यास के आधार है- प्रशिक्षण। अभ्यास के आधार पर शरीर के किसी भी अवयव को परिपुष्ट किया जा सकता है। फिर मस्तिष्क भी शरीर का एक अंग ही है। उसे अभीष्ट विषय में रस लेने, महत्व समझने, एकाग्र रहने और नियमपूर्वक अभ्यास करने से किसी की भी प्रतिभा अभीष्ट क्षेत्र में विकसित हो सकती है।

अपना या दूसरों का मस्तिष्क दुर्बल है- ऐसी हीनभावना किसी के भी मन पर सवार नहीं होने देनी चाहिए। जब पशु-पक्षियों को सिखाने वाले उन्हें मनुष्यों जैसी समझदारी का परिचय देने के लिए सधा लेते हैं, तो कोई कारण नहीं कि अपना या दूसरों का मस्तिष्क प्रयत्नपूर्वक अधिक विकसित न किया जा सके। इस दिशा में अब तो मानवीय प्रयासों के साथ-साथ कम्प्यूटर लर्निंग क्रम भी खूब चल गया है; परंतु पुरुषार्थपूर्वक अध्यवसाय से कमाई गई मस्तिष्कीय संपदा का महत्व अपने स्थान पर यथावत् रहेगा।

जापान की प्रयोगशाला में वानरों पर अनेक प्रयोग किए गए। टोक्यो यूनिवर्सिटी में संपन्न प्रयोगों में वानरों के अनेकों प्रसंगों में खरे-खोटे की पहचान करने और ढेर में से उपर्युक्त सामग्री बीन-बीनकर कायदे-करीने के साथ रख देने की शिक्षा में प्रवीणता प्राप्त कर सकने जैसा उन्हें योग्य पाया गया। प्रयोग यह भी चल रहा है कि क्या वे उन कराए गए अभ्यासों को अपनी भावीपीढ़ी के लिए भी हस्ताँतरित कर सकते हैं? संभावना ‘हाँ’ में व्यक्त की जा रही है।

मानसिक विकास की यदि उपयोगिता समझी जा सके और उसे नशेबाजी की ही तरह कामुकता, उदासी, उत्तेजना, उपेक्षा जैसे दुर्व्यसनों से नष्ट न किया जाए, तो अपने को तथा दूसरों को अपेक्षाकृत अधिकाधिक बुद्धिमान् बनाते चलने में किसी को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए, विशेषकर इसलिए भी कि वे सारी संभावनाएँ हर एक में विद्यमान हैं। हम प्रयत्न करे, प्रतिफल हमारे सम्मुख होगा।


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