संवेदना का जागरण ही भटकन रोक पाएगा

November 1999

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आतंकवाद बर्बरता तथा हृदयहीनता का पर्याय है। तीव्र मानसिक कुँठा एवं आत्महीनता जब विद्रोही हो जाती है, तो विद्रोह की यही ज्वाला आतंकवाद बनकर सारे समाज को जलाने लगती है। आतंकवाद कई तरह के होते हैं- साँप्रदायिक, वैचारिक, नस्लवादी तथा राजनीतिक आतंकवाद। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में जार ने रूस में इसका प्रयोग किया था। अनेक राष्ट्राध्यक्ष अपनी कूटनीति के तहत इस आग को हवा देते रहते हैं। रॉबर्ट रंगेल्स सोला के अनुसार राजनीतिक आतंकवाद संपूर्ण विश्व के लिए सबसे अधिक संघातक है। इसकी शुरुआत भले ही प्रतिपक्ष का विनाश करे, किंतु इसकी चरम परिणति स्वयं के विनाश में ही होती है। विशेषज्ञों के मत से वर्तमान आतंकवाद का दौर विश्व के इतिहास में सबसे ज्यादा भयानक और खतरनाक है।

वामपंथी आहतंकवाद फ्रेज फेनन और सात्रे से शुरू हुआ और कार्लोस मेरीगला व हर्बर्ट माक्यूस तक चला गया। यह धारा अब पतन की ओर है। दक्षिणपंथी आतंकवाद की सीमाएँ प्रायः राज्य तक सिमटी रहती हैं। फिर भी ये दोनों आतंकवाद आपस में अविच्छिन्न रूप से संबंधित होते हैं। ज्यादातर आतंकवादी स्वयं को क्राँतिकारी के रूप में प्रचारित करते हैं, परंतु इन दोनों के स्वरूप एवं भावनाओं में मौलिक अंतर है। क्राँति किसी प्राचीन व विगलित परंपरा व तंत्र को हटाकर उच्च आदर्शों की नूतन व्यवस्था को कायम करती है। इस पवित्र और पावन उद्देश्य के लिए हिंसा-हत्या का सहारा लेना बहुत मजबूरी के तहत होता है, जबकि उग्रवाद या आतंकवाद का लक्ष्य इसके एकदम विपरीत होता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम क्राँति का परिचायक था, लेकिन पंजाब, कश्मीर और असम की समस्याएं मात्र विखंडन, अशांति व असंतोष पैदा करने के लिए हैं।

रूस के विचारक विक्टर विटुकी ने वामपंथी आतंकवाद को लूटमार एवं निर्दयता का पर्याय माना है। उनके अनुसार यह सुलगती आग की भाँति है, जो परिस्थितियों की हवा पाने पर धधक उठती है। अमेरिका के साइकिएट्री के प्रोफेसर फ्रेडरिक जे. हैकर्स ने इसे तीन समूहों में बाँटा है- सनकी, अपराधी और जेहादी। विक्टरविटुकी ने आतंकवाद का गहन विश्लेषण किया है। उनके अनुसार इसमें अधिकतर युवा संलग्न होते हैं, जिनका वैयक्तिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक जीवन कुँठाओं से ग्रस्त रहता है। ये भटके हुए बेरोजगार युवक आतंकवादी संगठन में स्वयं को समर्पित कर देते हैं। कभी-कभी तो इसमें अति धनाढ्य वर्ग के ऐसे युवा होते हैं, जो गहरी मानसिक अशांति से ग्रस्त होते हैं।

कुछ भी हो आतंकवाद सामाजिक संरचना में अमानवीय तरीके से परिवर्तन करने के लिए प्रतिबद्ध होता है। इसका भयावह ताँडव प्रायः तीन स्तरों पर होता है- आस्थासंकट, विरोधाभास तथा न्यायिक संघर्ष। आतंकवादी पहला काम भय एवं आतंक के द्वारा सरकार एवं सुव्यवस्था से जनता की आस्था तोड़ने के रूप में करते हैं। इसके लिए वे हर-संभव क्रूर, घटिया, वीभत्स हथकंडों का सहारा लेने से नहीं चूकते। दूसरे वर्ग के अंतर्गत आतंकवादी न केवल देश के कानून में परिवर्तन चाहते हैं, बल्कि संपूर्ण तंत्र को बदल देने की धमकी देते हैं। कभी-कभी तो ये अपने अलग शासन की माँग करते हैं। सरकारी तंत्र तथा राजनीति में आपराधिक तत्त्वों को प्रवेश कराकर सर्वत्र भ्रष्टाचार फैला देते हैं। उनकी इस हरकत के कारण देश में सर्वत्र न्यायिक संघर्ष पैदा हो जाता है। प्रशासन एवं जनता के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा बन जाती है। इससे समुचे देश का भविष्य धुँधलाने लगता है।

सन् 1981 में अपने देश में आतंकवाद का जोर पंजाब प्राँत में शुरू हुआ। इसकी आग से सारा पंजाब एक दशक से अधिक वर्षों तक जलता रहा। सन् 1981 से 1992 के बीच बारह वर्षों में 1920 आतंकवादी घटनाएँ हुईं। इस अवधि में 11,584 सामान्यजनों सहित 1,689 सैनिकों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। इसी दौरान 15 करोड़ 18 लाख 51 हजार एवं 165 रुपये की संपत्ति तबाह हुई। अनेकों बार सामूहिक नरसंहार हुआ। आतंकवादियों ने राजनेता, उच्चपदस्थ अधिकारी तथा पत्रकारों को चुन-चुनकर अपनी गोली का निशाना बनाया। अपनी राह में रोड़े अटकाने वाले किसी भी शख्स को उन्होंने नहीं बख्शा। सन् 1988 से 1992 के बीच 320 राजनेता मेरे गए, इसके अतिरिक्त 8 ज्यूडीशियल अधिकारी, 33 उच्चपदस्थ अधिकारी, 62 बैंक अधिकारी तथा 34 अध्यापक इस आतंकवाद की भेंट चढ़ गए।

पंजाब की आग अभी ठंडी नहीं हो पाई थी कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के अराजक तत्त्वों ने कश्मीर में आतंक का भयंकर जाल बुना। भारत का स्वर्ग कहलाने वाला यह प्रदेश खून की नदियों से आप्लावित हो गया। पिछले कुछ सालों में यहाँ तकरीबन 20,000 व्यक्ति आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। जनवरी सन् 1990 से अब तक 34,760 वारदातें हुईं। सन् 1996 में 666 अपहरण हुए। पिछले सात सालों के दौरान 2671 लोग अपहृत हुए, जिसमें मुख्यतया चार विदेशी थे। अपहरण की संख्या 1990 में 169, 1991 में 290, 1992 में 281, 1993 में 349 तथा 1994 में 360 थी। बंधकों में से 73% लोगों को मार दिया गया। सुरक्षा सेनाएँ भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। सन् 1990 से अब तक सैकड़ों निर्दोष सैनिक मारे गए, हालांकि इस क्रम में आतंकवादियों को भी अपने किए का परिणाम भुगतना पड़ा।

आतंकवादियों का उद्देश्य भीषण रूप से भय और आतंक को पैदा करके मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है। आतंकवादी तीन तरीके से अपनी कार्ययोजना को परिचालित करते हैं- आतंक, हिंसा तथा हत्या। इनका उद्देश्य मात्र हत्या या हिंसा नहीं होता, बल्कि संपूर्ण संप्रदाय, समाज तथा राष्ट्र को आतंकित करना होता है। ये पूरे क्षेत्र में भय, हिंसा, असुरक्षा का ऐसा दहशत भरा माहौल पनपा देते हैं- जिससे लोगों का जीना दूभर हो जाता है। जितना नुकसान इनकी हत्या-हिंसा से होता है, उससे कहीं ज्यादा नुकसान आतंक फैलने से होता है।

नक्सलवाद आतंकवाद का ऐसा ही हिंसात्मक परिचय और पर्याय है। सन् 1960 के दशक में पहले−पहल इसका स्पष्ट नजारा देखने में आया। इस दौर में अपने देश में 30 नक्सलाइट समूह क्रियाशील थे। इन्होंने मुख्यतया आंध्रप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तरप्रदेश तथा महाराष्ट्र में अपना जाल बिछाया हुआ है। आंध्रप्रदेश नक्सलवादियों का गढ़ है। यहाँ पन सन् 1981 से 1990 के दस वर्षों के दौरान 2994 घटनाएँ घटीं जिसमें 430 निर्दोष लोगों की जान गईं। सन् 1991 से सन् 1993 के तीन वर्षों में ही 2494 मुठभेड़ों में 604 लोग मारे गए। मध्यप्रदेश की 182 घटनाओं में 93, महाराष्ट्र की 237 घटनाओं में 49, उड़ीसा की 29 घटनाओं में 20, पश्चिम बंगाल की 51 घटनाओं में 15 लोग मारे गए। बिहार की स्थिति तो और बद्तर है। यहाँ 1333 वारदातों में 640 से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

आतंकवाद का साया उत्तरपूर्वी भारत जैसे- आसाम, नागालैंड, मणिपुर आदि प्रदेशों में काफी भयावह है। यहाँ इनके संगठन एन. एस. सी. एन. (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) यू. एल. एफ. ए. (यूनाइटेड लिबरेशनल फ्रंट ऑफ आसाम), यू. एन. एल. एफ. (यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट) और पी.एल. ए. (पीपुल लिबरेशन आर्मी) के रूप में सक्रिय हैं। इन आतंकवादियों द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों में घटनाएँ एवं मारे गए लोगों की संख्या चिंताजनक है। सन् 1991 से अबतक अनेकों वारदातों में अगणित लोग मारे जा चुके हैं। करोड़ों रुपये की राष्ट्रीय संपत्ति स्वाहा हो चुकी है।

आतंकवाद या उग्रवाद मात्र भारत की ही ज्वलंत समस्या नहीं है वरन् यह एक अहम अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है। पश्चिम जर्मनी में सन् 1960 के दशक में रेडिकल स्टूडेंट मूवमेंट ने आतंकवादी गतिविधियाँ शुरू कीं। अर्जेंटीना तथा अलसल्वाडोर में आतंकवादियों ने डेथ स्क्वायड बनाया है। पेलेस्टीनियन, इस्लामिक जेहाद ने अपनी कार्यशैली में परिवर्तन कर आतंकवाद का कुख्यात तंत्र ही खड़ा कर दिया है। इटली, म्यामार, आयरलैंड, इंडोनेशिया में राजनीतिक आतंकवाद का प्रयोग जारी है। ईरान, पाकिस्तान, लीबिया, सीरिया, सूडान, उत्तरी कोरिया में विधिवत् आतंकवाद का पालन-पोषण किया जाता है। श्रीलंका में पल-बढ़ रहा एल. टी. टी. ई. का कुख्यात होना तो विश्वप्रसिद्ध है। इसके द्वारा पिछले एक दशक में हजारों लोगों, राजनेताओं सहित अपार संपत्ति नष्ट की जा चुकी है।

ब्रिटेन, फ्राँस, स्पेन, लेबनान, मिश्र, इजराइल आदि देशों की तरह अमेरिका में भी आतंकवाद की छाया गहराने लगी हैं। इस भयावह दंश से सुरक्षित समझा जाने वाला यह देश भी आतंकवाद के जाल में जकड़ता जा रहा है। 19 अप्रैल 1993 में अमेरिका के ओकलाहामा सिटी में एक ट्रकबम का विस्फोट किया था। इस घटना में 81 व्यक्ति मारे गए तथा 100 व्यक्ति लापता बताए गए। अमेरिकी रिपोर्टों के अनुसार यहाँ करीब 20 राज्यों में ईसाई आतंकवादी संगठन और उनकी निजी वाहिनियाँ सक्रिय हैं। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिका में ईसाई आतंकवादी संगठनों की निजी वाहिनियों में करीब एक लाख सैनिक हैं। मिशिगन उग्रवाद संगठन में सदस्यों की संख्या 12 से 15 हजार तक बताई जाती है। वाकोकाँड भी इसी आतंकवादी अभियान का परिणाम माना जाता है। इसके अलावा अमेरिका में कई श्वेत श्रेष्ठतावादी ईसाई आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं।

किसी समूहविशेष के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग भी आतंकवाद का एक रूप है। पाकिस्तान अपने देश में धर्म के नाम पर आतंकवाद एवं अलगाववाद का जहर घोल रहा है। एक अन्य प्रकार के आतंकवाद में जहाँ खुद वहाँ वहाँ की सरकार अपने लोगों पर अत्याचार करती है और किसी जाति या समूहविशेष को आतंक की राजनीति के तहत उनका मुँह बंद करती है। स्टालिन ने खुद अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए पूर्व सोवियत संघ के कई कम्युनिस्ट नेताओं को मौत के घाट उतार दिया था। लैटिन अमेरिका में कई ऐसे देश हैं, जहाँ पर तानाशाहों ने आतंक की राजनीति के द्वारा अपने स्वार्थों को साधा है। 1981 में अलसलवाडोर के सैनिकों ने वहाँ के नागरिकों पर बुरी तरह से कहर बरपा दिया। यूगांडा में मुख्य रूप से दो जातियों के लोग रहते हैं। जो समर्थ जाति है वह सरकार से बाहर होने के कारण प्रशासनिक तौर पर कमजोर है। परंतु मात्र 15 फीसदी वाली जाति सरकार से गठजोड़ करके दूसरी जाति पर आतंक बरपा कर रही है। 1987 से 1997 के बीच यूगांडा में इस जातीय आतंकवाद से लाखों लोगों की हत्या हुई। सच तो यह है कि अब दुनिया का कोई कोना आतंकवाद की लपटों से अछूता नहीं रह गया है।

वेद मारवाह ने अपनी पुस्तक ‘अपविविल वार’ में आतंकवाद के कतिपय रहस्यात्मक तथ्यों का खुलासा किया है। इनके अनुसार आतंकवादी जनसामान्य व समाज के दिलोदिमाग में दरार पैदा कर अशांति, असुरक्षा तथा विद्रोह की भावना को जगा देते हैं। सारा समाज व राष्ट्र इसकी आग में झुलसने लगता है। इसके दुष्चक्र में विकास अवरुद्ध होकर रह जाता है। आतंकवाद की इस विध्वंसात्मक व विस्फोटक मनःस्थिति का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अधिकतर वे युवा जो लक्ष्यहीन होने के साथ प्रतिशोध की आग में जलते रहते हैं, इस जघन्य कृत्य की ओर अग्रसर होते हैं। मार्थाकोसाँ के अनुसार जब परिस्थिति के कारण व्यक्ति अपने आपको असहाय व उपेक्षित समझता है, तो वह स्वयं को दुश्मन समझ बैठता है, जिसका परिणाम होता है- आतंकवादी बनना। वहाँ इसके इन मनोविकारों को और बढ़ावा मिलता है।

आतंकवादियों के मनोविश्लेषण हेतु अमेरिका और ब्रिटेन में काफी शोध हुआ है। इनके शोध-अनुसंधान से स्पष्ट होता है कि इनकी मानसिक संरचना बड़ी जटिल होती है। अनेकानेक मनोग्रंथियों में इनकी जीवनधारा फँसी और उलझी रहती है। सच तो यह है कि इनकी सोचने-समझे की शक्ति लुप्त हो जाती है। ये स्वयं नहीं सोच पाते कि वे क्या कर रहे है? क्यों कर रहे हैं और किसके लिए यह सब कर रहे हैं?

आतंकवादियों की हरकतों एवं आतंकवाद के कुचक्र से निबटने के लिए समूची दुनिया की सरकारों के साथ अपने देश की भी केंद्रीय सरकार के साथ राज्य सरकारें यथासाध्य प्रयत्नशील हैं, परंतु इनके वह उपाय तात्कालिक रूप से ही कारगर हो सकते हैं। इनसे स्थायी समाधान निकल पाना संभव नहीं। स्थायी समाधान और निदान के लिए तो इन हजारों−हजार दिग्भ्रमित एवं भटके हुए नवयुवकों को उनकी इस भटकन से उबारना होगा। इसके लिए आर्थिक स्वावलंबन एवं रोजगार तो कारगर उपाय हैं ही। इसी के साथ उनमें उस संवेदना का जागरण भी अनिवार्य है, जो उन्हें उनके मानवीय, राष्ट्रीय एवं सामाजिक दायित्व का बोध कराएँ। ऐसा होने पर ही उलटे को उलटकर सीधा कर पाना संभव होगा। ध्वंस सृजन का रूप ले लेगा और उस उज्ज्वल भविष्य की कल्पना साकार होगी, जिसके लिए केवल हम ही नहीं स्वयमेव महाकाल संकल्पित है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118