सद्विचार ही करेंगे समाज का उद्धार

June 1990

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“छोटी माता आ गई-छोटी माता आ गई”, कहते हुए बच्चों, युवकों, प्रौढ़ों, महिलाओं ने उसे घेर लिया। इस छोटी सी भीड़ से घिरी इस महिला की आँखों से सभी के लिए स्नेह झर रहा था। सभी मनों से उसके लिए श्रद्धा टपक रही थी। कुछ पल यों ही बीत गए। फिर एक ने उसके लिए कुर्सी ला कर रखी। वह बैठ गई। लगी एक-एक की परेशानी सुनने और समाधान सुझाने में। जादुई तरीके से प्रत्येक की परेशानी निबटती जा रही थी।

यह क्रम चल ही रहा था कि एक युवती महिला आगे बढ़ कर आयी। उसकी मुख मुद्रा से लग रहा था कि वह कुछ कहना चाहती है।

“कहो कुछ कहना है? सबकी श्रद्धा का केन्द्र बनी प्रौढ़ वय की महिला ने पूछा”।

“जी-वो-”। “निःसंकोच कहो पूछने वाली का स्नेहिल आग्रह था। मेरे पति मुझसे रुष्ट होकर घर से चले गए। “तो यदि आप मेरे घर भोजन करने चलें तो वह आपका आना जानकर अवश्य आ जाएँगे”।

“अभी चलें?” मुस्कराते हुए पूछा “बड़ी कृपा होगी।”

इतना सुनकर वह युवती महिला के साथ उसके घर की ओर चल दी और सचमुच उसका पति भी पहुँच गया। तीनों ने साथ-साथ भोजन किया। बीच-बीच में वह युवक को प्रेम भरी डाँट सुनाते हुए समझाती जा रही थीं। युवक भी अपने कमियों को स्वीकारता हुआ आगे से ऐसा न करने का वचन दे रहा था। उसके चमत्कारी व्यक्तित्व ने अमेरिका की सान-जुआन की इस बस्ती में न जाने कितने टूटतों को जोड़ा बिखरतों को सँवारा था। यह क्रम चल ही रहा था कि इतने में खबर आयी कि मिशिगन विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के छात्र उनसे मिलना चाहते हैं। वे नवनिर्मित पुस्तकालय में उनका इन्तजार कर रहे हैं।

अच्छी आती हूँ कह कहकर वह चल पड़ीं।

पहुँचने पर सामान्य कुशल प्रश्न के बाद छात्रों ने कहा “यहाँ आने के बाद थोड़े ही समय में हम लोगों ने आपके चमत्कारी कृतित्व के कई किस्से सुने। क्या आप बताने की कृपा करेंगी कि कौन सा वह रहस्य है जिसके द्वारा आपने इस समूची बस्ती का कायाकल्प कर दिया”।

“विश्वास करेंगे?” “हाँ! क्यों नहीं?”

“तो सुनिये मानवीय दुःख, दारिद्रय, दैन्य, दुर्बलता संकट समस्याओं तथा विपत्तियों आपदाओं का कारण कहीं बाहर नहीं उसके अंतराल में है”। बाहर से तो वह पहले की अपेक्षा कहीं अधिक समृद्ध है साधन संपन्न है। पर अंदर से उतना ही रुग्ण है। अयोग्य व्यक्ति, अधिकार और मूढ़ मन्द मति लोग हथियार मिलने पर जिस प्रकार अनर्थ मचाते हैं ठीक वैसी ही स्थिति इन दिनों मनुष्य की है। इसका एक ही समाधान है सद्विचारों के द्वारा भावनात्मक परिष्कार।”

सो कैसे? सभी के मुख से एक साथ निकला। व्यक्ति के भावनात्मक स्तर में अवाँछनीयताओं के घुस पड़ने से ही तमाम समस्याएँ पैदा हुई हैं। इन समस्याओं का यदि समाधान करना है तो सुधार की प्रक्रिया भी वहीं से आरम्भ करनी पड़ेगी, जहाँ से ये विभीषिकाएँ उत्पन्न हुई हैं। अमुक समस्या का अमुक समाधान या सामयिक उपचार तो हो सकता है पर चिरस्थाई समाधान के लिए तो मूल भूत आधार को ही ठीक करना पड़ेगा। “तो वह रहस्य सद्विचार ही हैं छात्रों में से कुछ ने कहा। एक दम सही। इन्हीं से व्यक्ति और समाज का कायाकल्प होगा। इस छोटी-सी बस्ती में प्रयोग करने के बाद यह मेरा अपना निजी अनुभव भी है।

छात्रों का दल उनके कथन से सहमति जताकर चला गया और वह अपने काम में पुनः व्यस्त हो गई।

सद्विचार को आधार बनाकर सान-जुआन (लैटिन अमेरिका) की बस्ती का कायाकल्प करने वाली महिला थी “डोना फेलिया”। लोक सेवा के प्रतिदान में मिले जन सम्मान के बल पर वह वहाँ की मेयर बनीं और आजीवन अपने अभियान में निरत रहीं। आज भी जरूरत जन भावनाओं को सुधारने की है। परिष्कृत मानवीय व्यक्तित्व बाह्य परिस्थितियों में अपेक्षित सुधार लाए बिना न रहेगा।


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