आकर्षण और आभा का स्रोत

June 1990

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वर्तमान को देखकर भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। वर्तमान फूल है और भविष्य उसके परिपक्व होने पर बनने वाला फल। यह सिद्धान्त सभी क्रिया-कलापों पर लागू होता है। मन पर अनुत्साह छाया हुआ हो, भविष्य की कुछ महत्वपूर्ण कल्पनाएँ न उठ रही हों, भविष्य की कई महत्वपूर्ण योजना न बन रही हों, तो फिर समझना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति का भविष्य अंधकारमय है।

शरीर दीखता तो बढ़ा चढ़ा है, पर उसकी शक्ति मनःक्षेत्र में सन्निहित रहती है। मन खिन्न-विपन्न हो तो समझना चाहिए कि शरीर स्वस्थ होते हुए भी ऐसा कुछ काम न कर सकेगा, जिसकी प्रशंसा की जा सके। इसके विपरीत संसार में ऐसे मनुष्य हुए हैं जिन्होंने बीमारियों से ग्रसित रहते हुए भी अस्पताल में पड़े रहने पर भी अपने मनोबल, उत्साह और सूझबूझ के सहारे इतने बड़े काम कर दिखाये जिस पर सौ पहलवानों को भी निछावर किया जा सकता है। इसके ठीक विपरीत ऐसी घटनाएँ भी घटती रही हैं, जिनमें दुर्बल शरीर के रहते हुए भी मनोबल का इतना प्रचंड परिचय दिया गया कि लोग उन्हें शक्तिपुँज मानने लगे।

शारीरिक सौंदर्य सभी की आँखों को सुहाता है। देखने वाले का आकर्षण भी उसकी ओर अधिक पाया जाता है। इस मान्यता के कारण कितने ही व्यक्ति सज-धज के खर्चीले समय साध्य श्रृंगार करने में लगे रहते हैं। पर यह भूल जाते हैं कि यह आँखों को छलावा और भूल भुलैया मात्र है। यदि यही वास्तविकता रही होती तो नट–नटिनियों ने समूचे संसार को विमोहित कर लिया होता और उनके पीछे चापलूसी करता हुआ हर कोई मारा मारा फिरता।

इसी प्रकार का एक भ्रम यह भी है कि स्वर संगीत का विशेष आकर्षण का केन्द्र है। नर्तक गायक अनेकों का मन मोह लेते हैं। कई बार तो शरीरगत सौंदर्य और कंठगत माधुर्य जन साधारण में इतना महत्व बना लेते हैं कि लोग उनके पीछे मुग्ध हो फिरते देखे जाते हैं।

पर यह भ्रम जंजाल मात्र है। इसके पीछे वास्तविकता का अंश नगण्य होता है। यदि बात ऐसी ही रही होती तो संसार में मूर्धन्य नहीं रहे होते जो रंग रूप कंठ की कलाकारिता होने पर भी औरों को अपनी ओर आकर्षित करते देखे जाते हैं। अष्टावक्र की आकृति कुरूप स्तर की गिनी जाती थी, पर उनकी विद्वता ने बड़े-बड़ों को चकित करके रख दिया। गाँधी जी पाँच फुट दो इंच लंबाई के थे। शरीर का वजन भी 96 पौण्ड था। व्यक्तित्व का दर्शनीय स्वरूप देखा कोई यह नहीं कह सकता था कि इनमें कोई विशेषता होनी चाहिए। पर चरित्र बल और आत्मबल के धनी होने के कारण उन्हें उच्च स्तर का महामानव माना गया। उनके प्रभाव का स्तर असाधारण देखा गया। जो कार्य उनने कर दिखाये, उनका आकलन करने वाले उन्हें किसी सिद्ध पुरुष से कम नहीं मान सकते।

शरीर अथवा स्वर का आकर्षण तो सामयिक है। कुछ ही समय उनकी चमक-दमक रहती हैं। अपने समय की मानी हुई नर्तकियाँ अभिनेत्रियाँ आयु ढलते ही बुढ़िया जैसी लगने लगती हैं। उनके चित्र देखने के लिए जो लोग लालायित रहते हैं, वे भी समय ढलते ही उपेक्षा करने लगते हैं और मुँह फेर लेते हैं। कंठ भी एक आयु तक ही मिठास और आकर्षण धारण किये रहता है। आयु का ढलान आते ही न वह स्वर का आकर्षण रहता है और न रंग रूप ही समय के साथ चमड़ी का आकर्षण न जाने कहाँ से कहाँ चला जाता है और समय बदलते ही लोग समझ जाते हैं कि आँखें जिस व्यामोह के कारण धोखा खाती रही हैं, कान जिनका शब्द सुनकर अपने आपको भूल जाते रहे हैं, यह सब मात्र छलावा था।

व्यक्तित्व मनुष्य के चिंतन व चरित्र पर अवलम्बित है। सेवा और परमार्थ ही मनुष्य का वह आकर्षण बनाये रहता है जो जन्म जन्मांतरों तक आभा रहित नहीं होता। आदर्शवादी व्यक्तित्व और सेवा संलग्न कर्तव्य ही वह निधि है, जिसके क्षरण होने की कभी कोई आशंका ही नहीं की जानी चाहिए।


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