मनुष्य अपनी छठी इन्द्रिय विकसित कर सकता है

June 1990

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जीव जन्तुओं पशु पक्षियों, की तुलना में मनुष्य भले ही बुद्धिमान, विवेकवान और विकसित क्यों न हो? किन्तु अतीन्द्रिय सामर्थ्य के क्षेत्र में वह इन निरीह प्राणियों से पीछे हैं। मनुष्येत्तर प्राणियों में भी ऐसी विशेषताएँ पाई जाती हैं, जिनके रहते वह प्रकृति और वातावरण से समन्वय और संगति बैठा कर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहते हैं। प्रकृति ने इन क्षुद्र प्राणियों को इन क्षमताओं से विभूषित न किया होता, तो बुद्धि और विवेक तथा बल और शक्ति के अभाव में अब तक ये प्रजातियाँ कब की विलुप्त हो गई होतीं। साधारणतः सृष्टि का ज्ञान पंचेन्द्रियों से ही होता है। किन्तु वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि इसके अतिरिक्त छठी इन्द्रिय भी हैं, जो इन पांचों से परे अति सूक्ष्म की जानकारी देने में समर्थ है। प्राणि जगत में यही छठी इन्द्रिय अधिक विकसित पाई जाती है और इसी के उपयोग से वे जीवन के क्रिया-कलाप चलाते देखे जाते हैं।

चूहों के नवजात शिशु यदि अपनी माँ से बिछुड़ जाते हैं अथवा किसी विपत्ति में फँस जाते हैं तब वे अश्रव्य ध्वनि में चीखते हैं, जिसे मनुष्य चाहे भी तो नहीं सुन पाता किन्तु शिशुओं के अभिभावकों को अश्रव्य ध्वनि के माध्यम से जानकारी प्राप्त हो जाती है और इतना ही नहीं, वे इन अश्रव्य ध्वनि तरंगों की दिशा का भी ज्ञान कर पाने में समर्थ होते हैं। वे उस सही स्थान पर आनन-फानन में पहुँचने में सफल हो जाते हैं। इसी प्रकार वेस्टइण्डीज में पाया जाने वाला ‘आँइल वर्ड’ पक्षी अँधेरी गुफा में छिप कर रहता है। किन्तु चमगादड़ों की भाँति अँधेरे में भी अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगों के माध्यम से सही रास्ते, तथा दुश्मन की जानकारी प्राप्त कर लेता है।

महासागरों की अथाह गहराई में विचरने वाली डॉल्फिन एवं व्हेल मछलियाँ भी सोनार ध्वनि तरंगों के माध्यम से अपना आहार एवं मार्ग, खोजती और शत्रु की जानकारी प्राप्त कर लेती तथा बचाव करती हैं। स्ट्रिंग रेंज जलजीव को अद्भुत क्षमता प्राप्त है। वह बालू रेत में छिपे जीव जन्तुओं की खोज अपने शरीर से विद्युत आवेश का प्रवाह छोड़ कर करता है। जीवों के छिपने की जानकारी विद्युत प्रवाह में अवरोध आने से हो जाती है। इस तरह वह छिपे जीव जन्तुओं को खोजकर अपनी आहारपूर्ति कर लेता है। “रेटल स्नेक” रेंगता साँप अपने इर्द-गिर्द घूमने वाले क्षुद्र जीवों का अँधेरे में ऊष्मा चित्र बना कर उनकी उपस्थिति ज्ञात कर लेता है। क्योंकि उसके नथुनों के इर्द-गिर्द एक विशेष प्रकार की संवेदनशील झिल्ली होती है, जिसमें लाखों संवेदनशील कोशिकाएँ होती हैं, जिनसे वह अपने शिकार की उपस्थिति की जानकारी कर लेता है। यह संवेदनशील झिल्ली मनुष्य में भी होती है, किन्तु उसमें प्रतिवर्ग इंच केवल 19 कोशिकाएँ ही पाई गई, जबकि साँप के नथुनों के पास पाई जाने वाली झिल्ली के इर्द-गिर्द प्रति वर्ग इंच डेढ़ लाख संवेदनशील कोशिकाएँ होती हैं

ईश्वर सभी प्राणियों को अतींद्रिय क्षमताओं से संपन्न बना कर संसार में भेजता है। किन्तु मनुष्य द्वारा सबसे अधिक प्राकृतिक नियमों की अवहेलना, मर्यादाओं का उल्लंघन अनुशासनों का अतिक्रमण किया जाता है। भ्रष्ट आचरण करने, अचिंत्य चिन्तन करने से उसकी यह क्षमता नष्ट होती चली जाती है। यदि वह पवित्र आचरण को अपनाये तथा अपनी बुद्धि को भटकाव से रोक कर अपनी प्रसुप्त क्षमताओं को जगाने की प्रक्रिया संपन्न कर ले तो वह भी अपनी छठी इन्द्रिय को जगा सकता है। इसके लिए आवश्यक है अंतःकरण का परिष्कार, पात्रता का विकास तथा उच्चस्तरीय तप पुरुषार्थ।


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