प्रार्थना में है-चमत्कारी शक्ति

June 1990

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अध्यात्मवेत्ताओं ने ईश्वरीय सहायता उपलब्ध करने हेतु प्रार्थना को सर्वोत्तम एवं उच्चस्तरीय माध्यम बताया है। प्रार्थना की अद्भुत चमत्कारिक शक्ति के समक्ष नास्तिकों तक को अपनी मान्यताओं में परिवर्तन करते और आस्तिक बनते देखा गया है। सुख, शाँति और प्रगति का वास्तविक आधार आस्था है। भावभरी श्रद्धा एवं विश्वास के आधार पर घोर संकट के क्षणों में भी उसकी आन्तरिक पुकार पर ईश्वर की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहायता घटाटोप बनकर बरसती और उबार लेती है।

विश्व इतिहास के पत्रों में ऐसे अगणित उदाहरण भरे पड़े हैं, जिनमें किसी को उसकी आन्तरिक पुकार पर दैवी सहायता उपलब्ध हुई। ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा, नरसी मेहता आदि की कथा-गाथाएँ प्रसिद्ध हैं। एकाकी प्रयत्नों की अपेक्षा सामूहिक रूप से की गई प्रार्थना अधिक बलवती होती है और देखते ही देखते असंभव को संभव बनाकर रख देती है। प्राण रक्षा एवं स्वास्थ्य रक्षा के रूप में इस तरह की कितनी ही घटनाएँ सामने आती रहती हैं। आवश्यकता मात्र अपने अन्तःकरण को ईश्वर की ओर उन्मुख करने भर की है।

इस संदर्भ में विख्यात चिकित्सा विज्ञानी डॉ. अलेक्सिस कैरेल ने गहन खोजे की हैं और “मैन द अननोन” नामक पुस्तक में उन अनुसंधानपूर्ण अनुभवों को प्रकाशित किया है। वे स्वयं कैन्सर रोग के विशेषज्ञ थे और उसके अनुसंधान एवं उपचार के लिए किये गये प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी हो चुके थे। उनके आश्चर्य का तब ठिकाना न रहा, जब एक मरणासन्न कैंसर रोगी को उनने प्रार्थना-चिकित्सा द्वारा पूर्ण रूप से स्वस्थ होते देखा। परीक्षण करने पर पाया गया कि उस स्थान पर मात्र रोग के चिह्न भर रह गये थे और रोगी रोग मुक्त हो चुका था। यह वह रोगी था, जिसे उनने स्वयं असाध्य घोषित कर जवाब दे दिया था। इस घटना के पश्चात् उनने अपनी मान्यता में परिवर्तन करते हुए कहा कि प्रार्थना सृष्टि की सर्वाधिक शक्तिशाली ऊर्जा है, जो मनुष्य के मन-मस्तिष्क एवं उसके द्वारा संचालित संपूर्ण काय तंत्र को इच्छित दिशा में क्रियाशील होने के लिए विवश कर देती है और तदनुरूप अन्दर-ही-अन्दर प्रतिरक्षी प्रक्रियाएँ सक्रिय हो उठती हैं। प्रार्थना का लाभ न केवल भौतिक स्वास्थ्य के रूप में हस्तगत होता है, वरन् बौद्धिक प्रखरता, मानसिक ओजस्विता एवं आत्मिक प्रसन्नता के रूप में भी मिलता है। इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण ईश्वरीय सत्ता का भी बोध होता है।

अपने समय के ख्यातिलब्ध शल्य-चिकित्सक एवं रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स, लन्दन के वरिष्ठ सदस्य डॉ. होवार्डसमरवेल ने अपनी कृति-”ऑपटर एवरेस्ट” में इस तरह की कई घटनाओं का सविस्तार वर्णन किया है कि जिसमें चिकित्सकों द्वारा असाध्य घोषित किये गये रोगियों ने प्रार्थना द्वारा नव जीवन प्राप्त किया। अपने हिमालय अभियान के समय देखे गये एक भारतीय शिक्षक की घटना का उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि उक्त शिक्षक के दोनों पैर क्षय रोग के कारण बेकार हो गये थे। तमाम उपचार करने के पश्चात् भी जब सुधार के कोई लक्षण नहीं दीखे, तो डॉक्टरों के पास उन्हें काटकर अलग कर देने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं रहा। इस नीति से जब रोगी को अवगत कराया गया, तो उसने चिकित्सकों से 21 दिन का अवसर माँगा और छुट्टी लेकर वापस आ गया। इस अवधि में वह निरन्तर परिवार के सदस्यों के साथ अपने स्वास्थ्य रक्षा के लिए सामूहिक प्रार्थना करता रहा। तीन सप्ताह पश्चात जब अस्पताल पहुँचे तो जाँच करने पर पता चला कि स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था। कुछ महीने पश्चात् रुग्णता पूरी तरह मिट गई और वह स्कूल पढ़ाने जाने लगा, बच्चों के साथ खेलते और दौड़ते भी देखा गया।

इसी तरह की एक अन्य घटना का वर्णन करते हुए डॉ. समरवेल लिखते हैं कि उनका एक रोगी गाल के कैंसर से पीड़ित था। रोग इतना बढ़ गया था, जिसका उपचार संभव नहीं था और अस्पताल से उसे छुट्टी दे दी गई थी। ऐसी दशा में रोगी के लिए ईश्वरीय सहायता के अतिरिक्त मरण से बचाने वाला कोई अन्य उपाय नहीं सूझा। वह अपना सारा समय प्रार्थना में लगाने लगा। उसके इस कृत्य में परिवार एवं पास-पड़ौस के सदस्य भी सम्मिलित होने लगे। ईश्वर ने उसकी पुकार सुन ली और वह रोगमुक्त हो गया। एक्स-रे आदि परीक्षणों से देखा गया तो पीड़ित स्थान पर एक गोल धब्बे के अतिरिक्त रोग का कोई चिह्न नहीं था। डॉ. समरवेल कहते हैं कि इस घटना ने मुझे भगवत्-सत्ता पर विश्वास करने को विवश कर दिया।

सुप्रसिद्ध मनीषी डॉ. शेरबुड एडी ने भी अपनी पुस्तक-”यू बिल सरवाइव आफ्टर डेथ” में प्रार्थना की शक्ति और जीवन में उसकी उपयोगिता का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। वे कहते हैं कि किन्हीं सी परिस्थितियों में सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारने पर प्रत्युत्तर अवश्य मिलता है। अंतःकरण की पुकार पर परमात्मा सत्ता द्रवित हुए बिना रहती नहीं। प्रार्थना करने और रोग मुक्त होने की एक घटना विशेष का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि प्रार्थना या अध्यात्म चिकित्सा पर पहले उनकी तनिक भी आस्था नहीं थी। इसे वह मानव मन की कमजोरी मानते थे, परन्तु कैंसर रोगी की एक घटना ने उस मान्यता को बदल कर रख दिया। घटना इस प्रकार है-लंदन निवासी खेल प्रशिक्षक डब्ल्यू. टी. पारीश नामक व्यक्ति की पत्नी को कैंसर हो गया था, जिसका उपचार चिकित्सकों द्वारा किये जाने पर भी सुधार परिलक्षित नहीं हुआ। हारकर उसे अस्पताल से घर वापस भेज दिया गया। “हारे को हरिनाम” की उक्ति को चरितार्थ करती हुई उक्त महिला 9 महीने तक प्रार्थना में निरत रही। उसका परिणाम रोगमुक्ति के रूप में मिला।

चिकित्सा शास्त्री डॉ. सेस्ली वेदरहेड पाश्चात्य जगत में अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्तों एवं प्रयोगों को विकसित करने में अग्रणी माने जाते हैं। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक-”साइकोलॉजी रिलीजन एण्ड हीलिंग“ में उनने सामूहिक प्रार्थना से उद्भूत दिव्य ऊर्जा से कितने ही मरणासन्न व्यक्तियों के स्वस्थ होने की घटनाओं का आँखों देखा विवरण प्रकाशित किया है। इनमें से एक मर्मस्पर्शी घटना चार वर्षीय एक बच्चे की है, जिसे वृक्कशोध हो गया था। जितना अधिक उपचार किया जाता मर्ज उतनी ही तीव्रता से बढ़ जाता। अंततः विशेषज्ञों ने उसे असाध्य घोषित कर उसके स्वयं के भाग्य पर छोड़ दिया। माता के वात्सल्य भाव न साहस समेटा और आस-पास के जन समुदाय को एकत्रित कर प्रार्थना करने बैठ गई। एक निश्चित अवधि तक यह क्रम कुछ दिनों तक बराबर चलता रहा। उपचार करने और बाद में हार मान लेने वाले चिकित्सकों को यह देख कर भारी आश्चर्य हुआ कि बच्चे के दोनों गुर्दे भली-भाँति कार्य करने लगे और उसका स्वास्थ्य सुधरने लगा। चिकित्सकों के उस दल ने तब एक स्वर से स्वीकार किया कि प्रार्थना में अलौकिक शक्ति है।

मनोवेत्ता जॉनपिट्स के शब्दों में मनुष्य की यह सबसे बड़ी भूल है कि जीवन दाता परमेश्वर को भूल कर वह जहाँ-तहाँ सहायता के लिए मारा-मारा फिरता है। यदि वह ही एक जगह कहीं कुछ क्षणों के लिए शाँत मन से बैठकर भी ईश्वर को अन्तःकरण से पुकारे तो कोई कारण नहीं कि उसकी आँतरिक पुकार पर परमात्मा की सहायता उपलब्ध न हो। ईश्वरीय सहायता पाने- आत्मोत्कर्ष की दिशा में आगे बढ़ने का एक सर्वोत्तम उपाय प्रार्थना है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118