जहाँ सस्ता खरीदा और बेचा जाता है वहाँ धोखा है। न ईश्वर को पाना उतना सस्ता है और न धर्म का पालन। जितना कि धूर्त लोग मूर्खों को बहकाते हुए बताया करते हैं।
मनीषियों का अभिमत है कि इक्कीसवीं सदी में ऐसी ही प्रतिभाएँ सर्वत्र उभरेंगी जिनके पिछले किये क्रिया-कलाप देखने से निराशा होती थी, उनमें से भी कितने ही ऐसे उभरेंगे जो अपने को धन्य बनायेंगे। अपने इर्द-गिर्द के लोगों को भी पार करके निहाल कर देंगे। पैसा, औलाद, स्वास्थ्य, बड़प्पन को बुरे लोग भी अपने बलबूते अर्जित कर लेते हैं, पर आदर्शों की दिशा में साहसपूर्वक चल पड़ना मात्र उन्हीं के लिए संभव होता हे, जिन पर भगवान की विशेष अनुकम्पा बरसती है जिसे परमपिता कृपापूर्वक अपने उच्चस्तरीय प्राण का वह भाग प्रदान करते हैं, जिसके सहारे नर-वानर को नर से नारायण बनने का अवसर प्राप्त होता है।