पृथ्वी पर उसके निवासी मनुष्यों, प्राणियों तथा वृक्ष-वनस्पतियों पर सौरमण्डल की उथल-पुथल का विशेष प्रभाव पड़ता है। उनमें से कुछ सामयिक होते हैं तो कुछ का प्रभाव स्थायी रूप से लंबे समय तक बना रहता है। उदाहरण के लिए समुद्र में उठने वाले ज्वार-भाटों का चन्द्रमा की घट-बढ़ के साथ तारतम्य बैठता है। इन्हीं दिनों लोगों की मानसिकता एवं स्वास्थ्य में विशेष परिवर्तन आँके जाते हैं। सूर्य मण्डल की हलचलों का प्रभाव सीमित न होकर व्यापक क्षेत्र को अपनी चपेट में लेता है। ज्योतिषियों के इस कथन में कोई दम नहीं कि जन्म काल के समय की स्थिति के आधार पर मनुष्य का भाग्य और भविष्य बनता है, परन्तु यह सत्य है कि सौर प्रवाहों, अन्तर्ग्रही प्रभावों एवं ब्रह्माण्डीय बौछारों का वातावरण सहित समूचे मानव समुदाय पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। यह सुखद एवं दुःखद दोनों प्रकार का हो सकता है।
बृहत् संहिता में उल्लेख है कि सूर्य में होने वाले परिवर्तनों एवं अन्य ग्रहों के प्रभाव से मनुष्य का स्वास्थ्य एवं व्यवहार प्रभावित होता है। शास्त्रों में ग्रहण काल में कुछ खाने-पीने की मनाही इसीलिए की गई है कि उस अवधि में निस्सृत अवाँछनीय ब्रह्माण्डीय किरणों से खाद्य पदार्थ दूषित हो उठते हैं और रोगोत्पत्ति का निमित्त कारण बन सकते हैं। इन्फ्लुएंजा, प्लेग, कालरा जैसी महामारियों को उस अवधि में अधिक उग्र रूप धारण करते हुए देखा गया है।
इस संदर्भ में थेल यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के सुविख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर हेंटिग्टन ने गंभीर खोजें की हैं और पाया है कि सौर मंडल में उत्पन्न हलचलों एवं बढ़ते सूर्य कलंकों से हमारी धरती सबसे अधिक प्रभावित होती है। उससे निस्सृत हानिकर किरणें पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ती और प्राकृतिक सुरक्षा कवच तक को तोड़कर रख देती हैं। इनके कारण जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधे तो प्रभावित होते ही हैं, बुद्धिमान समझे जाने वाले मानव समुदाय भी अवांछित प्रवाहों में बहते और आपदाग्रस्त होते हैं।
खगोलशास्त्रियों एवं ज्योतिर्विज्ञानियों ने इसी शोधश्रृंखला में अपने अध्ययन निष्कर्षों की अगली कड़ी और जोड़ते हुए कहा है कि सूर्य कलंकों के सर्वाधिक सक्रियकाल में कभी-कभी मानवी मस्तिष्क युद्धोन्मादग्रस्त तक हो उठता है। लड़कियाँ छिड़ जाती हैं, गृह युद्ध भड़क उठते हैं। असाधारण राजनीतिक उथल-पुथल होते और महाक्रान्तियाँ फूट पड़ती हैं। कार्ल साँगा एवं जॉन नेल्सन जैसे प्रख्यात ज्योतिर्विदों का कहना है कि इतिहास प्रसिद्ध घटनाएँ प्रायः इन्हीं अवसरों पर घटित हुई हैं। उनके अनुसार सूर्य से निकलने वाला प्रचण्ड प्राण प्रवाह उसमें उठने वाले तूफानी प्रवाहों तथा बनने वाले धब्बों सौर-कलंकों की बढ़ोत्तरी के साथ ही बढ़ जाता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय (अमेरिका) के सुप्रसिद्ध खगोल विज्ञानी डॉ. रॉबर्टनोयस ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि सूर्य के केन्द्र से असंख्य शक्तियों की धाराएँ सतत् प्रवाहित होती रहती हैं। जब कभी इनकी बहुलता हो जाती हे तो उस वक्त पृथ्वी पर अनेकानेक परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। इन परिवर्तनों में ध्वंस और सृजन दोनों ही सम्मिलित होते हैं। उनके अनुसार सौर मंडल में होने वाले परिवर्तनों से धरती के आयन मंडल में होने वाले परिवर्तनों से धरती के आयन मंडल का सीधा संबंध होने के कारण उसमें भी भारी उथल-पुथल होने लगती है। फलतः मानवी मस्तिष्क भी असाधारण सीमा तक प्रभावित होते हैं। अपने वर्षों के अनुसंधान अध्ययन के आधार पर उनने बताया है कि सन् 1990 के जून माह से लेकर सन् 2000 तक सैर सक्रियता अपनी चरम सीमा पर होगी। इस मध्य पृथ्वी पर वातावरण एवं मौसम संबंधी अनेकों परिवर्तन तो होंगे ही, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक महाक्रान्तियों जैसे ऐतिहासिक महापरिवर्तन भी होंगे। सूर्य की प्रचण्ड शक्ति अपने प्रबल प्रवाह से सब कुछ उलट पुलट कर रख देगी।
सविता देवता की भारतीय अध्यात्म में बड़ी महत्ता बतायी गयी है। गायत्री मंत्र सविता की उपासना का ब्रह्मतेजस् के अभिवर्धन का, सौर ऊर्जा के आध्यात्मिक अंश को ग्रहण करने की प्रेरणा देने वाला मंत्र है। अगले दिनों सूर्य मण्डल में भारी उथल पुथल की संभावना है, ऐसे में सविता साधना का आश्रय लेना चाहिए।