कलिंग राज्य में अशोक ने आक्रमण करके असंख्यों का रक्त बहाया था। इस अहंकार का त्रास उनके भीतर सदा काँटे की तरह घूमता रहा। अंत में उन्होंने प्रायश्चित की ठानी। बौद्धधर्म ग्रहण किया। समस्त अर्जित संपदा धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए दान कर दी। स्वयं भी भिक्षु जीवन जिये। अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को भी इस उच्च प्रयोजन में लगा दिया। इसी प्रकार होता है सच्चा प्रायश्चित।