महात्मा तिलमिला गया (kahani)

June 1990

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एक व्यक्ति ने सुन रक्खा था। तप करने से अहंकार मिट जाता है। क्रोध चला जाता है। वह घर छोड़ हिमालय चल दिया। जंगलों के पार बर्फीली गुफाओं में बैठकर लगा साधना करने। उसे ऐसा करते बीस साल बीत गये। अकेला रहता। अहंकार और क्रोध का मौका भी न मिलता। उसने सोचा चलो अहंकार से छुटकारा मिला। अब वापस लौट चलना चाहिए। नीचे उतर कर आया। लोगों को मालूम पड़ा कि हिमालय में रह कर बीस वर्ष तक तप किया है तो भीड़ इकट्ठी हो गई। दर्शनों के लिए लोग चले आते पैर छूते, परिक्रमा करते। महात्मा के मन में गुदगुदी होती सम्मान पाकर। एक दिन भक्तों ने कहा चलें कुम्भ स्नान करके आवें। महात्मा चल पड़े। मेला ठेला की भीड़ ने उनके पैर पर जमकर किसी का भूलवश पैर पड़ गया? महात्मा तिलमिला गया और उछल कर उस व्यक्ति की गर्दन पकड़ ली और बोला “जानता नहीं दुष्ट मैं कौन हूँ?” महात्मा के अन्दर छिपा बैठा अहंकार उछलकर ऊपर आया। लोग हैरान अरे यह कैसा महात्मा। यह तो अबोध बालकों से भी गया बीता है। कोई जानबूझकर पैर थोड़े ही रक्खा है। जो आगबबूला होता है। सच है। व्यक्ति अपने पर ही नियंत्रण न कर पाये तो उसकी एकान्त साधना तप तितीक्षा सब व्यर्थ है।


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