महाप्रभु ईसा ने मृत्युदण्ड से एक दिन पूर्व अपने सब शिष्यों को बुलाने भेज दिया। साथ ही उनके आदरपूर्वक पैर भी धोए।
किसी ने पूछा जो सम्मान गुरु को मिलना चाहिए, उसे आप शिष्यों की क्यों दे रहे हैं? उलटकर ईसा ने कहा- इन्हीं के प्रयासों से मुझे सम्मान मिला है और मरने के बाद भी इन्हीं के प्रयास से मेरा मिशन जीवित रह सकेगा। इसलिए ये सच्चे अर्थों में सम्मान के पात्र हैं।