एक राजा की संन्यास लेने की इच्छा हुई। वह घर छोड़कर बन की और चल पड़ा। बहुत दूर निकल जाने पर एक किसान की झोंपड़ी मिली।
राजा बहुत भूखा था उसने कुछ खाने को माँगा। किसान ने हाँडी में खिचड़ी डाली और कहा अब इतना काम आप कीजिये कि चूल्हा जलाकर इसे पकायें। जब पक जाये तब मुझे बुला लें। हम दोनों उससे पेट भरेंगे।
राजा ने वही किया। जब खिचड़ी पक गई तो राजा ने किसान को बुलाया। दोनों अपनी-अपनी थाली परोस कर खाने लगे। किसान ने समझाया कि खिचड़ी रूपी काम भगवान ने दिया है इसके लिए चूल्हा जलाने पकाने जैसा पुरुषार्थ हमें करना होता है। आप कर्म योग की साधना करें। कर्त्तव्यनिष्ठ रहे, भगवान को संतोष दें। राजा की समझ में यह सीधा तत्वज्ञान भली प्रकार आ गया और वे घर लौट कर परमार्थ प्रयोजनों में लग गये।