हिम्मत मत हारो (कहानी)

April 1987

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ब्रूसी को बार-बार हारना पड़ा। लड़ाई की नए सिरे से तैयारी करता, पर परिस्थिति अनुरूप न पड़ने से असफलता मिलती। ग्यारह बार हारने के उपरांत उसकी हिम्मत टूट गई और किसी अज्ञात स्थान में छिपकर दिन गुजारने लगा।

एक दिन ब्रूसी बिस्तर पर पड़ा था। छत पर मकड़ी जाला बुन रही थी। धागा बार-बार टूट जाता। फिर भी मकड़ी निराश नहीं हुई। मकड़ी को ठीक बारहवें प्रयत्न में सफलता मिली और जैसा चाहती थी वैसा जाला बुन लिया।

इस दृश्य का ब्रूसी पर बड़ा प्रभाव पड़ा। जब मकड़ी ग्यारह बार की असफलता से निराश नहीं हुई तो मैं क्यों निराश होऊँ और नए सिरे से प्रयत्न क्यों न करूंँ। बारहवें प्रयत्न में वह जीता और राजा बन गया।


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