कर्तव्य का फल (कहानी)

April 1987

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चीन में एक अमीर चांग भेड़ पालने का धंधा करता था एक बार उसने दो लड़के नौकर रखे और चराने के लिए भेड़ें बाँट दी। देखने पर पता चला कि भेड़ें दुबली भी हो गईं और कितनी ही मर भी गई। 

अमीर ने चरवाहों को जिम्मेदार ठहराया। जाँच करवाई कि किस कारण इतनी हानि हुई। पता लगा दोनों अपने-अपने व्यसनों में लगे रहे। एक जो जुआ खेलने की आदत थी।

 जब भी दाव लगाता भेड़ों की तरफ उसका ध्यान नहीं रहता। भेड़े कहीं से कहीं जा पहुँचती और भूखी-प्यासी कष्ट पातीं।  यही बात दूसरे की थी, वह पूजा पाठ का व्यसनी था। भेड़ों पर ध्यान न देता अपने रुचि के काम में लगा रहता।

दोनों पकड़े गए। न्यायाधीश के सामने न्याय के लिए प्रस्तुत किए गए। दोनों के कारण में भेद तो था; पर कत्र्तव्यपालन की उपेक्षा करने में दोनों ही समानरूप से दोषी थे। न्यायाधीश ने दोनों को समान दंड दिया और कह— "पूजा से कत्र्तव्य बड़ा है। कत्र्तव्य छोड़कर पूजा करने या जुआ खेलने में कोई अंतर नहीं है।"


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