पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)

April 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उन दिनों राशन का बड़ा कंट्रोल था। राशन कार्ड पर सीमित गेहूँ मिलता था। पुरुषोत्तम दास टंडन के घर में हजारों लोगों का तांता लगा रहता। उतने राशन से काम न चलता; फलतः वे ज्वार-बाजरा जैसे खुले बाजार में मिलने वाले सस्ते अनाज लेकर काम चलाते।

एक बार कई बड़े नेता और अफसर उनके मेहमान थे। सभी को ज्वार-बाजरे की रोटी परोसी गई। उन्हें चकित देखकर टंडन जी ने स्वयं कहा— “ब्लैक का अनैतिक तरीका अपनाकर आप लोगों को गेहूँ खिलाने की अपेक्षा ईमानदारी ने यही उपाय सुझाया, जो अभ्यस्त भोजन के रूप में आपके सामने है।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles