व्यवहार का ज्ञान (कहानी)

April 1987

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एक अध्ययनशील किसी पुस्तक को पढ़ने में तन्मय था। किसी कारीगर ने पूछा—  "क्या पढ़ रहे हो?" विद्वान झल्लाया—  "तुम जैसे मूर्ख दार्शनिक विषय के बारे में क्या जान सकते हैं?"

कारीगर ने हँसकर कहा— "बिन बताए ही मैंने समझ लिया कि यह ज्योतिष का ग्रंथ है।" अन्यथा आपको मेरे मूर्ख होने का पता कैसे लगता। इस पर विद्वान खीजा और बोला— "नहीं! यह व्यवहार ज्ञान का ग्रंथ है।"

कारीगर की हँसी न रुकी— " तभी तो! आपका व्यवहार इतना उत्तम है कि बात करने तक में चिढ़ते और झगड़ते हैं।"

विद्वान अपनी गलती पर लज्जित हुए बिना न रहा।


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