जागरूकता गंवा न बैठें

April 1987

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चोरी उन घरों में होती है, जहाँ रखवाली का प्रबंध नहीं होता। मनुष्य में अनेक दोष, दुर्गुण तब घुस पड़ते हैं, जब आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार के चौकीदार अपनी जिम्मेदारी छोड़कर ऊँघने लगते हैं। जेबकट, उठाईगीरे वहाँ अपनी घात चलाते हैं, जहाँ देखते हैं कि मुसाफिर अपने सामान की चौकसी बरतने की अपेक्षा इधर-उधर के दृश्य देखने में दिल बहलता है।

दुर्गुण पास-पड़ौस के वातावरण में से आते हैं। छूत की तरह लगते और महामारी की तरह फैलते हैं। खरपतवार के बीज हवा के साथ उड़कर उपजाऊ खेतों में बिना बुलाए जा पहुँचते और नमी पाते ही जड़े जमा लेते हैं। सद्गुणों की उपयोगी खेती तो प्रयत्नपूर्वक होती है, परिश्रम और साधन चाहती है, तब कहीं जड़ पकड़ती और पनपती है। पनपने के बाद भी खाद-पानी आए दिन माँगती रहती है; किंतु घास-पास के गुच्छे अपने लिए खुद जगह बनाते और हर परिस्थिति में बढ़ने, फैलने में समर्थ रहते हैं। दुर्गुणों में ढीठता और समर्थता ऐसी ही है, जो अनायास ही अपना विस्तार करती है। उखाड़ने-काटने पर भी दुबारा हरी-भरी हो जाती है। जन्म-जंमांतरों के संग्रहित कुसंस्कार उन्हें पोषण प्रदान करते हैं और बढ़ोत्तरी के लिए वातावरण बनाते हैं।

सफाई की सतर्कता न बरती जाए तो गंदगी स्वयमेव एकत्रित होने लगती है और सड़कर दुर्गंध फैलाती, कुरूपता उत्पन्न करती और बीमारियाँ फैलाने का निमित्त कारण बनती है। बुहारी हाथ में रहे, आँखें कचरे को तलाशती रहें, हाथ उसे उठाने में फुर्ती दिखाएँ तो कोई कारण नहीं कि मलीनता आसन जमाए बैठी रहे। असावधानी अकेली ही ऐसी दुष्प्रवृत्ति है, जो अनेकों बुराइयों, गंदगियों, क्षतियों और विपत्तियों को न्यौत बुलाती है और उन्हें टिके रहने का अवसर प्रदान करती है।

प्रगति के अवसर निरंतर आते रहते हैं, उन्हें पहचानना और उपयोग में लाना उन्हीं के लिए संभव होता है, जो ध्यानपूर्वक यह देखते रहते है; इस समय किस प्रकार क्या किया जा सकता है? समय चूकने वाले पछताने हैं। हाथ में घड़ी बँधी रहने पर भी कितने ही लोग टिकट लेने और प्लेटफार्म तक पहुँचने में विलंब लगा लेते हैं, फलतः गाड़ी निकल जाती है और दूसरे दिन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

अरुचि और उपेक्षा बरतने पर व्यक्ति अनगढ़ ही बना रहता है और पिछड़ेपन के दल दल में फँसा रह जाता है जिसे अपने भविष्य को उज्ज्वल देखना है वह वर्तमान के प्रति पूरी-पूरी सावधानी बरतता है और एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देता।

प्रगतिशील व्यक्तियों की गतिविधियों आदतों और रीति-नीतियों पर दृष्टिपात किया जाए, तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि उनमें से प्रत्येक सदा जागरूक रहे हैं ।अवसर को पहचानने में चूके नहीं है। प्रयास-पुरुषार्थ में ढील नहीं बरती और गई-गुजरी परिस्थितियों में भी क्रमश: उठने एवं बढ़ने का प्रयास जारी रखा। आशांवित साहसी और पुरुषार्थपरायण अपनी जागरूक बुद्धि के कारण सदा उन्नति की ओर बढ़ते हैं। कोई व्यवधान उन्हें देर तक रोके नहीं रह सकता।


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