स्वर्णिम-ज्योति पुंज सविता को, बारंबार प्रणाम है।
गायत्री के देव! आप का दर्शन दिव्य ललाम है॥1॥
सविता ! हम को प्राण दो। ओजस का वरदान दो।
दुर्व्यसनों से त्राण दो।जीवन दीर्घ,महान दो।
विषय-विकार जला दो सारे, यह विनती अविराम है।
स्वर्णिम-ज्योति पुंज सविता को बारंबार प्रणाम है॥2॥
हम इतने मेधावी हों। मनोविकार न हावी हों।
षडरिपु नहीं प्रभावी हों। तेजसवान प्रतापी हों॥
सविता देव! स्वरूप आपका तेज-ओज का धाम है।
स्वर्णिम-ज्योति पुंज सविता को, बारंबार प्रणाम है॥3॥
अंतःकरण परिष्कृत हो। चिंतन तंत्र न विकृत हो।
जीवन सात्विक, संस्कृत हो। वह व्यक्तित्व विनिर्मित हो॥
सविता देव! आपका वर्चस्, ही ऐसा आयाम है।
स्वर्णिम-ज्योति पुंज सविता को, बारंबार प्रणाम है॥4॥
सविता को आराधें हम। दिव्य गुणों को साधें हम।
स्वर्ग धरा पर ला दें हमें। धरती स्वर्ग बना दें हम॥
सविता के ही अनुदानों का प्रज्ञायुग परिणाम है।
स्वर्णिम-ज्योति पुंज सविता को, बारंबार प्रणाम है॥5॥