मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार

April 1987

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मस्तिष्क स्थूल दृष्टि से सबका एक-सा होता है, पर उसमें सन्निहित विभूतियों का भांडागार भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न प्रकार का पाया जाता है। वैज्ञानिक प्रयास मस्तिष्क के 7 से 13 प्रतिशत ज्ञात पक्ष को जानकर आगे नहीं बढ़ पाए हैं। प्रखरता, विलक्षण प्रतिभा, हतप्रभ कर देने वाली स्मरणशक्ति के विषय में मनःशास्त्रियों का मत है कि यह उस अविज्ञात जखीरे का कमाल है, जो 87 से 93 प्रतिशत मस्तिष्क के 'सायलेण्ट एरिया' के रूप में विद्यमान है।

वैज्ञानिकों ने स्मरणशक्ति पर काफी कार्य किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि न्यूरोकेमिस्ट्री एवं न्यूरोफार्मेकोलॉजी के आधार पर मस्तिष्कीय आर.एन.ए., जो कि विशिष्टतः स्मृति से ही संबंधित होता है, की विशिष्ट मात्रा व सक्रियता ऐसे व्यक्तियों में पाई गई है, जो कि विलक्षण स्मरणशक्ति के धनी होते हैं। दस अरब न्यूट्रॉन एवं इनसे सौगुने सिनेप्सों से बने मस्तिष्क में कुछ न्यूरान्स विशेष में संरचना व कार्य दोनों ही दृष्टि से परिवर्धित केंद्र पाए जाते हैं, जो 'मेमारी' की 'एनकोडिंग' करते हैं। इस संबंध में डॉ. बैरोंडेस ('द मिरर फोकस एण्ड लांगटर्न स्टोरेज' 1969) एवं डॉ. एग्रेनॉफ ('प्रोटीन सिन्थेसिस एण्ड मेमोरी फार्मेशन' 1969) द्वारा किया गया शोधकार्य उल्लेखनीय है। बहुत पहले कनाडा के न्यूरोसांइटिस्ट डॉ. डब्ल्यू. जी. पेनफील्ड ने प्रायोगिक जीवों पर इलेक्ट्रोड द्वारा मस्तिष्क को उत्तेजितकर ऐसे संभावित केंद्रों का पता लगाया था, जो स्मरणशक्ति व व्यक्ति की सीखने की क्षमता से संबंधित हो सकते थे। उन्होंने कुछ वालंटियर्स पर प्रयोगकर यह बताया कि, "मनुष्य-मस्तिष्क की कुछ विशेष कोशिकाओं से, चेतना के स्फुल्लिंग प्रवाह— 'रेक्टीकूलर एक्टीवेटिंग सिस्टम' के जुड़ने पर वे अतीत की घटनाएँ सुदूर बाल्यकाल तक अपने अंदर होती अनुभव कर सके।"

स्नायुविज्ञानी डॉ. कार्ललैसले अपने अनुसंधानों द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि, "मस्तिष्क के किस खंड पर, किस शक्ति से, कितना विद्युत-प्रवाह किए जाने पर, कितनी पुरातन व किस-किस किस्म की स्मृतियाँ ताजी हो सकती हैं। इस तरह स्नायुविज्ञानियों ने विचार, ध्वनि और दृश्य का संबंध स्थापित करते हुए उस दिशा में प्रगति की असीम संभावनाएँ व्यक्त की हैं। जहाँ वांछित विद्युत-प्रवाह द्वारा लोगों के मस्तिष्कों को निर्दिष्ट चिंतन हेतु प्रेरित-प्रशिक्षित किया जा सकता है। इस तरह चिरपुरातन संस्कारों को मिटाकर चिंतन को नए अभ्यास में ढलने का मौका भी दिया जा सकता है। यह सारी प्रक्रिया मस्तिष्क के स्मृतिकोशों में हो रहे स्ट्रक्चरल एवं फंक्शनल परिवर्तनों की ही प्रतिक्रिया रूप में संपन्न होती मानी गई है।

वस्तुतः स्नायुविज्ञानी सारे शोधकार्य के बावजूद बड़े असमंजस में हैं कि सेरिब्रल कार्टेक्स की पेराइटल व टेंपोरल क्षेत्र की परतें स्मृति के संबंध में बड़ा विचित्र व्यवहार करती देखी गई हैं। कनपटी के ठीक नीचे व कान से ऊपर ब्रह्मरंध्र क्षेत्र तक दोनों ओर के मस्तिष्क के गोलार्द्धों में पच्चीस वर्ग इंच क्षेत्रफल व एक इंच के दसवें भाग तक की मोटी परतों में उन्होंने न केवल बाल्यकाल तक की, अपितु पूर्वजन्मों की एवं मनुष्य की संग्रहण क्षमता से भी कई गुना अधिक विलक्षण स्मृति जागी हुई पाई है। वे यह समझ पाने में असफल रहे हैं कि ऐसा क्यों कर होता है कि कुछ व्यक्ति विलक्षण व अपरिमित स्मरणशक्ति के धनी होते हैं, जबकि अन्य क्रियाकलापों में सामान्य या उससे कुछ कम ही होते हैं।

भारतवर्ष में ही ऐसे अनेक व्यक्ति हुए हैं, जो देखने वालों के लिए अचंभा बने रहे। राजा भोज का एक दरबारी था— श्रुतिवर। वह एक घड़ी (24 मिनट) तक सुने हुए प्रसंग को तत्काल ज्यों-का-ज्यों दुहरा देता था। स्वामी विवेकानंद पुस्तक पर हाथ रखकर कुछ क्षण पलटकर उसे शब्दशः दुहरा देते थे। शकुंतला देवी अपनी स्मरणशक्ति व अतींद्रिय प्रतिभा के कारण चलता-फिरता कंप्युटर मानी जाती हैं। ढूंढ़ने पर ऐसे ढेरों उदाहरण मिल जाएँगे। कइयों में यह क्षमता अकारण— अनायास ही जागी दिखाई पड़ती है व कई इसे योग-साधना द्वारा जगाकर अर्जित करते हैं। कुछ में यह पूर्वजन्म के संस्कारों की फलश्रुति मानी जाती है व कुछ में संत-महामानवों के शक्तिपात की। जो भी हो, यह अद्भुत सामर्थ्य अपनी उपस्थिति जताकर मस्तिष्क की पिटारी में छिपे बहुमूल्य वैभव-भंडारण की, जो कि अविज्ञात है, एक झलक दिखाती एवं इसे अर्जित करने की प्रेरणा देती है।


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