अगले दिनों अखण्ड ज्योति की पाठ्य सामग्री!

December 1989

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इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण एक सुनिश्चित तथ्य है। इसमें भागीदारी लेने के श्रेय से किसी भी प्रज्ञा परिजन को चूकना न चाहिए। इस ऐतिहासिक और अविस्मरणीय विशेष अवसर पर अखण्ड ज्योति के सदस्यों और अनुपाठकों को अपनी-अपनी मनःस्थिति और परिस्थिति के अनुसार रीछ, वानरों, ग्वाल-बालों, बौद्ध परिव्राजकों, सत्याग्रहियों का अनुकरणीय आदर्श मानते हुए किसी-न-किसी रूप में सहभागी बनना ही चाहिए। सर्वथा उपेक्षा अपनाना और जिस-तिस कारण की आड़ में मूकदर्शक बने रहना घाटे का सौदा ही रहेगा।

भविष्य का स्वरूप क्या बनने जा रहा है और उसके अनुरूप अपना चिंतन और व्यवहार बदलने की किस प्रकार तैयारी करनी चाहिए, इस संदर्भ में आगे से अब अखण्ड ज्योति के पृष्ठों पर विशेष पाठ्य-सामग्री रहा करेगी। संसार भर की मूर्धन्य प्रतिभाएँ इस संबंध में क्या सोचती और क्या परामर्श देती हैं, इसका अति महत्त्वपूर्ण सामयिक संकलन अखण्ड ज्योति के पृष्ठों पर ही मिल सकेगा।

प्रस्तुत विधा को फ्यूचरोलॉजी नाम से जाना जाता है। भविष्य के संबंध में वैज्ञानिकों-मनीषियों-नेतृत्ववेत्ताओं ने भी चिंतन किया है तथा समय-समय पर उनके अधिवेशन भी होते रहे हैं। प्रस्तुत किए गए शोधपत्रों, इस विधा से संबंधित विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा लिखित पुस्तकों को न केवल शान्तिकुञ्ज में एकत्र किया गया है, वरन पत्र व्यवहार द्वारा उनसे संपर्क स्थापितकर यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि आज की परिस्थितियों व मानवी पराक्रम की भावी संभावनाओँ को देखते हुए भविष्य की, नवयुग की संरचना किस प्रकार संभव है? यह एक ऐसा विषय है, जिसे अभी तक आँकड़ों व वैज्ञानिक तथ्यों की भाषा में ही समझाया जाता रहा है, किंतु अखण्ड ज्योति के पाठक अध्यात्मपरक विवेचन, जो भविष्य विज्ञान से संबंधित हैं, आगामी माह की पत्रिका से इन पृष्ठों पर पढ़ते रह सकेंगे। जेनेटिक्स, माॅलीक्यूलर, बायोलॉजी, इलेक्ट्रोफिजियोलाॅजी, एस्ट्रोफिजिक्स, बायोमेट्रालाॅजी, काॅस्मोलाॅजी, बाॅयोकेमिस्ट्री, न्यूरोएंडोक्राइनालाॅजी, एंथ्रापोलाॅजी, आल्टरनेटिव सिस्टम आफ मेडीसिन, न्यूरोसाइकिस्ट्री आदि विधाओं के विशेषज्ञ आज के मानव को, भविष्य को, किस रूप में विनिर्मित करने की कल्पना कर रहे हैं, यह तथ्यपरक, रोचक सामग्री अखण्ड ज्योति में सार-संक्षेप में पाठकगण पा सकेंगे।

अखण्ड ज्योति के प्रकाशन के आरंभिक वर्ष में अब तक जो परिश्रम नहीं किया गया, वह अब इन्हीं दिनों छः माह की अवधि में ही किया गया है। निश्चित ही इससे पत्रिका की रोचकता बढ़ेगी, नवयुग की आधारशिला रखने के प्रयासों को मूर्त्तरूप भी दिया जा सकेगा। अन्यत्र ढूँढने में कदाचित ही कोई खोजी पाठक एक स्थान पर ऐसी सामग्री पाने में सफल हो सकेगा। संचालक मंडल ने इस स्तर की सामग्री एकत्रित करने में अपने नए सूत्र, नए आधार विशेष रूप से संजोए हैं एवं विश्वभर से संपर्क-सूत्र स्थापित किए हैं।

दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रसंग जो इस पत्रिका में वरीयता पाने जा रहा है— वह है, अनुकरणीय आदर्शनिष्ठ जीवन-चरित्रों का प्रस्तुतीकरण, मनुष्य स्वभाव से अनुकरणप्रिय है। प्राचीनकाल में आदर्शवादी और परमार्थपरायणों की सत्ता-महत्ता और कार्यपद्धति अपने संपर्क-क्षेत्र में ही प्रचुर परिमाण में देखने को मिल जाती थी, इसलिए सर्वसाधारण को उनको अपनाने में कोई कठिनाई नहीं पड़ती थी। सतयुगी वातावरण इसी आधार पर विनिर्मित हुआ था। भारतभूमि 'स्वर्गादपि गरीयसी'  इसी आधार पर बन सकी थी। यहाँ के निवासी संसार में इसी प्रक्रिया को अपनाने के कारण देवमानव बन सके थे।

आज आदर्शवादियों के उदाहरण सामने न रहने के कारण एक प्रकार से मानवी गरिमा पर ग्रहण ही लग गया है। इस सामयिक कठिनाई का समाधान इस प्रकार ढूँढा गया है कि पिछले दिनों भारत में या संसार में अन्यत्र कहीं भी आदर्शवाद के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर पुरुषार्थ करने वालों के जीवन-वृतांत और संस्मरण ढूँढ निकाले जाएँ और इन्हें अखण्ड ज्योति के पृष्ठों पर निरंतर प्रस्तुत किया जाता रहे। यों वर्त्तमान का अपना महत्त्व है, पर भूतकाल की प्रेरणाएँ भी ऐसी नहीं है, जिनका भावभरा स्मरण करने पर अंतराल में उस दिव्य धारा को अपनाने की उमंग-तरंग न उठे। गांधी जी बचपन में देखे हरिश्चंद्र नाटक से ही सत्यनिष्ठ होने को संकल्पित हो गए थे।

इन संस्मरणों के प्रस्तुतीकरण के संबंध में एक और भी अनुबंध अपनाया गया है, कि जिन संस्मरणों को उभारा जाए, वे ऐसी दिशा लिए हों, जो आज की परिस्थितियों में सामयिक कहलाएँ। इतिहास में राजा-रानियों की, मार-काट करने वाले योद्धाओं की कथा-गाथाओं का ही बाहुल्य है, या फिर मोरध्वज, शिवि जैसे अतिवादियों का उल्लेख। अखण्ड ज्योति के नए निर्धारण में उन घटनाओं का ही संकलन किया जाएगा, जिनमें आज की परिस्थिति में जो किया जाना आवश्यक है, उसी को प्रधान रूप में प्रस्तुत किया जा सकें। इसे युगधर्म का पृष्ठ-पोषण करने वाली सामग्री भी कहा जा सकेगा।

उपरोक्त दोनों विषय इस पत्रिका की पाठ्य-सामग्री में विशेष रूप से प्रतिष्ठित होते रहेंगे। इसके अतिरिक्त अध्यात्म दर्शन का व्यावहारिक विवेचन, साधना-प्रक्रिया का तत्त्व दर्शन, प्रकृति की विलक्षणताओं की आध्यात्मिक विवेचना जैसे विषय तो रहेंगे ही। इन सब के प्रभाव से यह होने की आशा है कि सामयिक उज्ज्वल भविष्य की संरचना में अपनी आज की भूमिका के संबंध में किसी उपयोगी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके।

इस अनोखे ढंग के प्रस्तुतीकरण में संपादन-तंत्र पर कितना अधिक भार पड़ेगा और उसका परिणाम कितने अधिक दूरगामी सत्परिणाम उत्पन्न करने वाला सिद्ध होगा, इसका अनुमान जो लगा सकें, उन भावनाशीलों से अनुरोध है कि अखण्ड ज्योति का प्रवाह-क्षेत्र बढ़ाने में अपना साधारण स्तर का नहीं, वरन असाधारण समझी जा सकने योग्य भूमिका संपन्न करने में जुटें।


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