जीवन एक संग्राम है, जिसमें सुख और दुःख दोनों समान रूप से आते हैं, दुःख के बाद ही सुख की अनुभूति सुखद लगती है। दुःख के बीच ही सुख है। मधु (शहद) मक्खियों के छत्ते से निकलता है। उन मक्खियों के जहरीले डंक होते हैं। उनके बटोरे हुए मधु को वही मनुष्य प्राप्त कर सकता है, जो उनके डंक से नहीं घबराता। गुलाब के पौधों में सुगंधमय पुष्पों के साथ-साथ काँटे भी लगे रहते हैं। उनके पुष्पों के सौरभ का आनंद वही मनुष्य लेता है, जिसे काँटों की पीड़ा सहन करने का साहस हो। संसार में जितने महान पुरुष हुए हैं, सबके मार्ग में विकट कठिनाइयों के जाल बिछे देखे गए हैं। वास्तव में महानता दुर्गम संकटों का आवाहन करती है और उनका निराकरण करके ही अपने अस्तित्व को सार्थक सिद्ध करती है। महानता गुलाब के फूलों की सेज से उठाकर काँटों की झाड़ी सहज पहुँचा देती है, किंतु साथ ही महानता के साथ अमरता— अमृत भी है, जबकि सांसारिक भोग-विलास में केवल दो घड़ी का मनोरंजन कराने वाली मदिरा।