मरण के बाद भी है एक विलक्षण दुनिया

December 1989

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मरणोपरांत जीव कहाँ होता है, उसकी क्या गति होती है? यह जानने की उत्सुकता जनसाधारण में देखी जाती है। इस संबंध में विभिन्न देशों, मतों, संप्रदायों में अनेकों किम्वदंतियाँ, दंतकथाएँ, मान्यताएँ, विश्वास और मत प्रचलित हैं। धरती के अधिकांश निवासी आज तक इसी भ्रम में हैं कि मरणोपरांत सब कुछ समाप्त हो जाता है। कुछ लोगों का मत है कि मरने के उपरांत जीव नरक, स्वर्ग, दोजख, हैवन में जाता है। जहाँ वह कर्मानुसार फल भोगता है। सदियों से इन्हीं विश्वासों से गुजरते हुए मनुष्य की जिज्ञासाएँ अभी भी पूरी नहीं हो सकी हैं। इस संबंध में अनेक देशों में शोध-प्रयास किए जा रहे हैं। विज्ञान के बौने हाथ अभी तक इस रहस्य से परदा उठाने में थोड़ी-बहुत ही सफलता पा सके हैं।

अध्यात्मवेत्ताओं की तरह सूक्ष्मदृष्टि न होने पर भी अपने अधिक प्रयास से विज्ञानवेत्ताओं ने यह ज्ञात कर लिया है कि प्रत्यक्ष जगत से जुड़ा एक अदृश्य जगत भी है, जिसकी प्रत्यक्ष अनुभूति तो नहीं होती, किंतु अस्तित्व का परिचय समय-समय पर अनेकानेक प्रमाणों से मिलता रहता है। शिकागो विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी विभाग की प्राध्यापिका डाॅ. एलिजाबेथ कुबलर ने मृत्यु विज्ञान (थेनेटोलाॅजी) पर गहन अनुसंधान किया है। उन्होंने एक हजार से अधिक ऐसे व्यक्तियों से संपर्क साधने में सफलता प्राप्त की है, जो घंटों मृत अवस्था में रहे और प्रयास करने पर उनको पुनः जीवित किया जा सका। इस काल में मृतक रहने वाले व्यक्ति ने जो कुछ देखा, अनुभव किया, उन्हीं के बड़े रोचक और जानकारियों से परिपूर्ण संस्मरण एकत्रित किए हैं। इस कार्य में उन्हें सात वर्ष से भी अधिक का समय लगा।

श्रीमती कुबलर एक दस वर्षीय बालक, जो दो घंटे से भी अधिक समय तक मृत रहा, के संस्मरण लिखती हैं कि, "मरणोपरांत उसे उसका भाई मिला, जिसने उसे सांत्वना दी और ढांढस बँधाते हुए कहा कि उसे अभी यहाँ नहीं आना चाहिए था, अन्यथा माँ-बाप भी उसके गम में बच न सकेंगे। उसकी बात मानकर वह लौट आया, किंतु इस मृत बालक को इसके अभिभावकों ने पूर्व मृत भाई के बारे में कभी कुछ नहीं बताया था। यह जानकारी उसको अपने मृत भाई की आत्मा से मिली। इस घटना से स्पष्ट होता कि मृतात्मा के सगे-संबंधी अदृश्य लोक में निवास करते हैं। वे कब, किस जन्म से संबंधित रहे होते हैं, यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता।

सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अनुसंधानकर्त्ता सर राबर्ट कूक ने अपनी कृति 'टेक्नीक्स ऑफ एस्ट्रल प्रोजेक्शन' में बताया है कि मृतक व्यक्ति के मित्र, स्वजन कई प्रकार से सहायता पहुँचाते हैं। विशेषकर नवागत जब भय से त्रस्त होता है, तो वे उस का भय दूर करने का प्रयास करते हैं। ढांढस बँधाते, सांत्वना प्रदान करते हैं। उनके अनुसार बालकों की मृत्यु के मामले में एक सामान्य तथ्य उजागर हुआ है कि वे सर्वाधिक अपने माँ-बाप को चाहते हैं। मरणोपरांत उन्हें देवदूत अथवा निकट के परिजन से ही भेंट होने का अनुभव होता है। अधिकांश ने यही बताया कि मरणोपरांत वे अकेले नहीं रहे। उनकी भेंट किसी-न-किसी से अवश्य हुई। इससे सिद्ध होता है कि दृश्य जगत की तरह अदृश्य जगत में भी चहल-पहल और हलचल सतत बनी रहती है।

अमेरिकन सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च के वरिष्ठ अनुसंधानकर्त्ता डाॅ. कार्लेसिस के अनुसार मृत व्यक्ति के स्वजन-संबंधी अपने मृत मित्र को लेने उसी तरह आते है, जैसे कि वह किसी सुदूर यात्रा से लौटकर आ रहा हो। अपने मृत स्वजनों को देखकर उसे बड़ी शांति अनुभव होती है और मृत्यु का कष्ट और बिछुड़ने का शोक कम हो जाता है। उन्होंने अपनी शोध में स्पष्ट किया है कि आत्मा का अस्तित्व मस्तिष्क से अलग है। 'आउट ऑफ बॉडी एक्स्पीरियन्सेस' नामक अपनी पुस्तक में मरणोत्तर संपर्क के, अपने निजी अनुभव के संबंध में उन्होंने एक सत्य घटना का वर्णन किया है। उनके अनुसार सियान्स नगर, अमेरिका में एक ट्रक ड्राइवर था। रात को गाड़ी चलाकर जा रहा था कि आइसलैंड की शीतभरी रात से बचने के लिए नदी किनारे ट्रक रोक दिया। जहाँ अतिशीत के कारण उसकी मृत्यु हो गई। ड्राइवर की लाश लावारिस पड़ी रही। जहाँ पशु-पक्षियों ने खा डाली, उसको विधिवत दफनाया नहीं जा सका। उसके टाँग की बची हड्डी को पास में रहने वाले बढ़ई ने अपने घर की दीवार में सुरक्षित रख दिया। मृतक ट्रक ड्राइवर की आत्मा बरसों भटकती रहीं। उसे सद्गति न मिल सकी। एक दिन स्वप्न में प्रकट होकर अपने भाई से उसने प्रार्थना की कि यदि आप मेरी टाँग की हड्डी को बढ़ई की दीवार से निकालकर पास के कब्रगाह में दफना दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। स्वप्न में बताए गए ठौर-ठिकाने का अता-पता भी भाई को बता दिया गया। सत्यता की जाँच करने उसका भाई बतलाए गए स्थान पर पहुँचा। वास्तव में वहाँ बढ़ई रहता था और उसने दीवार में हड्डी लगा रखी थी। सारा वृतांत बताने पर वह हड्डी उसके भाई को सौंप दी गई, जहाँ पास के कब्रगाह में उसे विधिवत दफना दिया गया तथा बाद में प्रार्थना की गई। उस रात मृतक ड्राइवर की आत्मा पुनः अपने भाई के समक्ष प्रकट हुई और कहा कि अब वह पूर्ण संतुष्ट है।

'फ्रन्टियर्स ऑफ द आफ्टर लाइफ' के लेखक एडवर्ड सी. रेंडेल ने भी एक ऐसी दिवंगत आत्मा के अनुभवों को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है— “मरने के बाद मैंने स्वयं को चारों ओर से स्वजन-संबंधियों से घिरा हुआ पाया, जो आत्माएँ मुझे लेने आई वे चलने को कह रही थी, किंतु उस समय सगे-संबंधी रो-धोकर मुझे न जाने के लिए बाध्य कर रहे थे” इसी तरह का कथन मूर्धन्य परामनोविज्ञानी डाॅ. जे. आर्थर फिडले का भी है। उन्होंने अपनी कृति 'व्हेयर टू वर्ल्ड्स मीट' में लिखा है कि मरणशय्या पर लेटे व्यक्ति को अपने विगत जीवन की पूरी फिल्म दिखाई देने लगती है। जो व्यक्ति दूसरी दुनिया में प्रयाण के पूर्व ही लौट आए, वे इसका प्रमाण देते हैं। ऐसे कोई 1300 हवाले उन्होंने एकत्र किए हैं। डाॅ. रेमंड मूडी का इस विधा पर किया गया अध्ययन तो अपने आप में एक मिसाल है।

पूर्वार्त्य दर्शन की मान्यता है कि जन्म और मृत्यु तो इस शरीर के साथ घटित होने वली प्रक्रियाएँ है। आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है तथा मरणोपरांत भी कोई दुनिया होती है, पूर्णतः तथ्यसम्मत है। यदि मनुष्य इस मान्यता को परिपक्व करता चले तो आस्तिकता उसके जीवन का एक अविच्छिन्न अंग बनकर रहेगी।


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