आज जरूरत है तोड़ें हम नफरत की दीवार।
और बसाएँ सब हिल-मिलकर प्यार भरा संसार।
मेरा तेरा हो न घरों में, लड़े न अपना खून।
खाएँ बाँटकर, तो पालेंगे, सब रोटी दो जून॥
बस शालीन भाव रखकर हम थोड़े बने उदार॥
इसी तरह है व्यर्थ धर्म का, जाति वर्ग का भेद
गागर भरो किंतु मत होने दो तुम उसमें छेद
अपनी तो मान्यता यही है-विश्व एक परिवार॥
मिलकर रहने में है मेरे बंधु! बहुत आनंद,।
प्यार-सुर, मीरा, तुलसी और बाल्मीकि का छंद॥
घृणा नहीं,अब बने प्यार ही जीवन का आधार।
टुकड़े कर लो चादर, कोई भी न ओढ़ पाएगा।
बाँटा आँगन तो मंडप कैसे छापा जाएगा।
सबको सुविधा है यदि जीवित रखते हो सहकार।
-माया वर्मा