आत्मविश्वास मानव जीवन की दृढ़ पतवार है। जो उसे अनेकों विषमताओं, उलझनों में ही गतिशील और सुस्थिर बनाए रखती है। इसकी डोर से बँधी हुई जीवन नौका डगमगा नहीं सकती। अनेकों समस्याएँ— झंझावात— तूफान भी उस व्यक्ति को अपने ध्येयपथ से विचलित नहीं कर सकते, जो अपने आप में अटूट विश्वास किए चल रहा है। जीवन में प्रकाश देने वाले सभी दीप बुझ जाएँ, किंतु मनुष्य के अंतर में यदि अपने विश्वास की ज्योति जलती रहे तो वह निविड़ अंधकार में अपना पथ स्वयं ढूँढ निकालेगा। इस ज्योति के सम्मुख पथ की तमिस्रा छिन्न-विछन्न हो जाती है।
कवि रविंद्र ने अपने प्रसिद्ध गीत 'एकला चलो रे' में आत्मविश्वास के बारे में अपने भाव को बड़े ही मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है। उस गीत के भाव हैं— "यदि कोई तुझसे कुछ न कहे, तुझे भाग्यहीन समझकर सब तुझसे मुँह फेर लें, तो भी तू अपने पर विश्वास रखकर अपनी बात कहता चल।”
"अगर तुझसे सब विमुख हो जाएँ, यदि गहन पथ-प्रस्थान के समय कोई तेरी ओर फिरकर भी न देखे, तब पथ के काँटों को अपने लहू-लुहान पैरों से दलता हुआ अकेला चलता चल।”
“यदि प्रकाश न हो, झंझावात और मूसलाधार वर्षा की अँधेरी रात में जब अपने घर के दरवाजे भी तेरे लिए लोगों ने बंद कर दिए हों, तब उस वज्रानल में अपने वक्ष के पिंजर को जलाकर उस प्रकाश में अकेला चलता चल।"
निःसंदेह हर परिस्थितियों में मनुष्य का एकमात्र साथी अपने पर विश्वास ही है। महापुरुषों ने इसी के बल पर संसार में अनेकों महान कार्य किए हैं। महात्मा गांधी के प्रबल आत्मविश्वास ने ही देश की आजादी का स्वप्न साकार किया। लोकमान्य तिलक के अंतः में यह प्रबल विश्वास था कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर ही रहेंगे। उनका यह दृढ़विश्वास ही कालांतर में मूर्त्त हुआ। इसी के बल पर लिंकन ने दासमुक्ति का महान कार्य किया। दुनिया को अमेरिका की जानकारी देने वाले कोलंबस तथा पुर्तगाल से भारत आने वाले वास्कोडिगामा ने अपने अंतर के विश्वास के बल पर साहसिक यात्राएँ संपन्न की। नेपोलियन को एक विजय अभियान के समय यह बताया गया कि मार्ग में आल्प्स है, आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इस पर उसने कहा — “यदि हमारा मार्ग रोकता है तो आल्प्स नहीं रहेगा।” और सचमुच उस विशाल पहाड़ को काटकर रास्ता बना लिया गया।
आत्मविश्वास सफल जीवन का मूलमंत्र है। स्वामी विवेकानंद ने अपने अनुभवों के आधार पर इसकी महत्ता श्री ई.टी. स्टर्डी को लिखे गए पत्र में बताते हुए कहा है— “हमारे गुरुदेव के शरीर त्याग के बाद हम लोग बारह निर्धन और अज्ञात नवयुवक थे। हमारे विरुद्ध अनेक शक्तिशाली संस्थाएँ थीं, जो हमें नष्ट करने का भरसक प्रयत्न कर रही थीं, परंतु श्री रामकृष्ण देव ने हम सबके भीतर जो आत्मविश्वास की ज्योति जलाई थी, उसके प्रभाव से सारे अंधकार नष्ट हो गए और प्रभु की शिक्षाएँ दावानल की तरह फैल रहीं हैं।''
सचमुच आत्मविश्वास से दुर्गम पथ भी सुगम हो जाता है। बाधाएँ भी मंजिल पर पहुँचने वाली सीढ़ियाँ बन जाती हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ जगदीश चंद्र बसु 'पौधों में जीवन है', इस प्रतिपादन को इंग्लैंड की वैज्ञानिक मंडली के सम्मुख प्रयोग द्वारा सिद्ध करने जा रहे थे। कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने तीक्ष्ण जहर पोटेशियम सायनाइड की जगह सामान्य चूर्ण रख दिया। चूर्ण के घोल की सुई पौधे में इंजेक्ट करने पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने आत्मविश्वास भरे स्वर में कहा— "यदि इससे पौधा नहीं मरता है तो मैं भी नहीं मरूंगा।" और सारा चूर्ण खा गए। ईर्ष्यालुओं का मुख लज्जा से नत हो गया। असली पोटैशियम साइनाइड लाया गया और उन्होंने सफल प्रयोग करके दिखा दिया।
श्री बसु के बाद वनस्पति जगत में एक और आत्मविश्वास की धनी प्रतिभा आई— डाॅ. पंचानक महेश्वरी, जिन्होंने एकाकी प्रयत्न के बल पर सर्वप्रथम परखनली में फूल वाले पौधे परागण से लेकर भ्रूण अवस्था तक उगाए। इस विभूति को जब लंदन की वैज्ञानिक संस्था रॉयल सोसाइटी द्वारा विशेष फेलोशिप के लिए चुना गया तो लोगों ने दाँतों तले अंगुली दबा ली।
यही विश्वास कूट-कूटकर भरा था, सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ एवं समाजसेवी डाॅ.पी.सी.राय में। एक बार उनके एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा— मि. राय! यदि आपको अपने पर इतना विश्वास है तो खुद ही कोई काम क्यों नहीं करते? प्रो. राय ने इस उलाहने को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और बंगाल केमिकल्स की स्थापना की। इसके अतिरिक्त विश्व के रसायनशास्त्रियों द्वारा अभिनंदित ग्रंथ 'हिंदू रसायन शास्त्र' की रचना भी की।
इसी तरह सुविख्यात न्यायविद् डाॅ. सच्चिदानंद सिन्हा लंदन विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. तथा रॉयल विश्वविद्यालय यूट्रेचर से डी.लिट. प्राप्त सुविख्यात साहित्यकार आचार्य रघुवीर, वनस्पति जगत के मूक साधक एवं नोबल पुरस्कार विजेता भौतिकशास्त्री सी.वी. रमन आदि ने अपने ऊपर अटूट विश्वास बनाए रखकर अपने लक्ष्य को पाने में सफलता पाई।
वस्तुतः आत्मविश्वास का मूल स्वरूप है— आत्मसत्ता पर विश्वास करना। जिसे अपने आत्मा की अजेय शक्ति— महानता पर विश्वास है, जो अपने जीवन की सार्थकता, महत्ता, महानता स्वीकार करता है, उसी में आत्मविश्वास का श्रोत उमड़ पड़ता है और वह जीवन-पथ के अवरोधों-कठिनाइयों को चीरता हुआ, राह के रोड़ों को धकेलता हुआ, अपना मार्ग स्वयं निकाल लेता है। प्रकृति भी आत्मविश्वासी पुरुष का साथ देती है।
अहंकार, महत्त्वाकांक्षा और आत्मविश्वास में बड़ा अंतर है। अहंकार का आधार भौतिक पदार्थ, स्थूल सामग्री और मनोविकार होते हैं। यह शोषण, निर्दयता, पीड़ा का कारण बनता है। हिटलर, मुसोलिनी, चंगेज खाँ, तैमूरलंग, नादिरशाह आदि में यही था, जो उनके और जनसमाज के लिए अहितकर सिद्ध हुआ।
मनुष्य आपने आप पर विश्वास रखकर ही तुच्छता से महानता की ओर अग्रसर होता है। सामान्य से असामान्य बनता है। स्वेट मार्डेन ने कहा है— "आत्मविश्वास हम में जितना अधिक होगा, उतना ही हमारा संबंध अनंत जीवन और अनंत शक्ति से गहरा और दृढ़तर होता जाएगा। जब चारों ओर विपत्तियों के काले बादल गहरा रहे हों, संसार सागर की गर्जन-तर्जन के बीच जीवननौका को किनारा न मिल रहा हो, नाव अब डूबे, तब डूबे की स्थिति में हो, ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास ही मनुष्य को बचा सकता है।"
आत्मविश्वास की इस ज्योति को जलाने, उसे प्रज्वलित रखने के लिए आंतरिक स्वाधीनता की आवश्यकता है। जो मनुष्य अपने मानसिक विकारों, चिंता, भय आदि से जकड़ा हुआ है, वह स्वाधीन नहीं हो सकता। वह तो परतंत्र है, उसे ये विकार अपनी इच्छानुसार जहाँ-तहाँ भटकाते हैं। ऐसी परतंत्रता में आत्मविश्वास का निवास नहीं होता। जो अपने आंतरिक, बाह्यजीवन पर शासन करता है, वही इसकी शक्ति को पाता है और इसी से मनुष्य की साधारण शक्तियाँ असाधारण बन जाती हैं और वह महान कार्य कर सकने में सक्षम होता हैं।
हमें अपने जीवन को महान, उत्कृष्ट उपयोगी बनाने के लिए, संसार पर अपनी अमिट छाप छोड़ने के लिए आत्मविश्वास की ज्योति अपने हृदय मंदिर में जलानी होगी। अपने अंतर के दिव्य गुणों एवं शास्त्रियों का परिचय प्राप्त करना होगा। इस दिव्य ज्योति के सहारे ही हम संसार के दुर्धर्ष पथ पर जीवननौका रथ को बढ़ा सकेंगे। विश्वास! विश्वास! अपने आप में विश्वास! अपने आत्मदेव की अपार शक्तियों में विश्वास! यही जीवन की सफलता और महानता का रहस्य है।