जीवन तुम्हीं से भगवन (कविता)

December 1989

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जीवंत है जगत में कण-कण तुम्हीं से भगवन।

है विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन॥


आकाश में तुम्हीं से संव्याप्ति नीलिमा की,

तुम ताप सूर्य के हो, तुम शीत चंद्रमा की,

पुष्पों और पल्लवों में पुलकन तुम्हीं से भगवन।

हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन॥


तुम स्फूर्ति भोर की हो, शाश्वत जिजीविषा हो,

दिग्भ्रांत हर पथिक की प्रेरक तुम्हीं दिशा हो,

है प्राण-तत्त्व तुमसे, जीवन तुम्हीं से भगवन।

हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन॥


अनुदान से प्रफुल्लित होते कृतज्ञ प्राणी,

आभास पर तुम्हारा पाते न अज्ञ प्राणी,

नियमित प्रकृति तुम्हीं से, हर क्षण तुम्हीं से भगवन।

हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन॥

                                                     -शचींद्र भटनागर


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