आप करुणा उड़ेला किए इस तरह,
आपने प्राण, मन, तर-बतर कर दिए।
बेसुरा-राग गाती रही जिंदगी,
आपने प्रीति से स्नात स्वर कर दिए॥
जिंदगी का सभी साज, बेसाज था,
ज्ञान तक था नहीं शब्द, स्वर ताल का।
लड़खड़ाता हुआ गीत थी जिंदगी,
बोध तक था नहीं साँस की चाल का॥
प्राण की बीन खुद ही पुलकने लगी,
आपने प्राण में प्राण वे भर दिए।
बेसुरा-राग गाती रही जिंदगी,
आपने प्रीति से स्नात स्वर कर दिए॥
साँस के तार को आपकी उंगलियाँ,
स्नेह-संस्पर्श दे झनझनाती रही।
साँस मेरी हुई आपकी,
और वह आपके गीत ही गुनगुनाती रहीं॥
ओंठ मेरे थिरकते हुए से लगे,
छंद अपने मुखर आपने कर दिए।
बेसुरा-राग गाती रही जिंदगी,
आपने प्रीति से स्नात स्वर कर दिए॥
जिंदगी बन गई गीत अब आपके,
आपका स्नेह, स्वर छलछलाने लगे।
आपकी भावना-संवेदनाजन्य स्वर,
विश्व बंधुत्व के गीत गाने लगे॥
विश्व की वेदना घुल गई प्राण में,
आपने प्राण की पीर के स्वर दिए।
आप करुणा उँडेला किए इस तरह,
आपने प्राण, मन, तर-बतर कर दिए॥
- (मंगल विजय)