अखण्ड ज्योति और उसके परिजनों के बीच मात्र लेखन-वाचन के संबंध नहीं है। उनके बीच ऐसी घनिष्ठता भी विकसित होती रही है जिसके आधार पर संबद्ध घटकों का स्तर निरन्तर ऊँचा उठता रहे और उनके संयुक्त प्रयत्नों से धरती पर स्वर्ग के अवतरण का सुनहरा स्वप्न प्रभातकालीन अरुणोदय की तरह दृश्यमान हो सके।
इस घनिष्ठता को अभी ओर प्रगाढ़ होना चाहिए। आदान-प्रदान का उपक्रम मात्र लेखन-पाठन तक न सीमित रहकर इस रूप में चल पड़ना चाहिए जिससे न केवल दो पक्ष कृतकृत्य हो सकें वरन् उस सघनता का स्वरूप नवजागरण के नव सृजन के रूप में दृष्टिगोचर होने लगे।
इस संभावना को मूर्तिमान बनाने के लिए नए सूत्रों का निर्धारण किया गया है, जिसमें एक है-मिशन के साथ उसके सदस्यों का पारिवारिक स्तर पर जुड़ना। इसके लिए मिलन, संपर्क और पत्र व्यवहार-भाव संप्रेषण का नया आधार इन्हीं दिनों खड़ा किया जा रहा है।
अखण्ड ज्योति परिजनों का (1) पारिवारिक परिचय (2) पत्र व्यवहार का पता, ग्राहक नम्बर सहित (3) जन्म दिन की तारीख और समय (4) संभव हो तो पासपोर्ट साइज का फोटो यह जानकारियाँ माँगी गई है। इनके आधार पर उनके विषय की एक फाइल बन जाएगी और ऐसे अनुदान एवं प्रकाश कण प्रेषित करने का प्रयत्न शाँतिकुँज हरिद्वार से चलता रहेगा, जिनके आधार पर परिजनों की भौतिक एवं आत्मिक क्षेत्रों की प्रगति का नया सिलसिला चल पड़ें।
मिलन के संदर्भ में परिजनों को युग संधि के विशेष वर्षों में हर वर्ष न सही तो दो वर्ष में एक बार हरिद्वार पहुँचने एवं पाँच दिन का एक छोटा साधना सत्र सम्पन्न करते रहने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि वे न आ सकें तो शाँतिकुँज के प्रतिनिधियों की टोलियाँ ऐसे स्थानों पर भेजते रहने का प्रयत्न किया जायगा, जहाँ अधिक परिजन एक स्थान पर बैठकर एक पारिवारिक गोष्ठी स्तर का छोटा मिलन समारोह कर सकें। यह जीवन-प्राण चेतना का मिलन उपक्रम हुआ। इसकी आवश्यकता इसलिये पड़ती है कि अखण्ड ज्योति के पन्नों पर छपे प्रतिपादन मात्र विचार क्षेत्र को ही एक सीमा तक प्रभावित कर सकते है। वह कमी बनी ही रहती है, जो प्राण चेतना के निकटवर्ती होने पर एक नवीन चेतना का पारस्परिक प्रत्यावर्तन संभव दिखाती है जो दूर संचार की तरह छपे कागजों द्वारा एक सीमा तक ही बन पड़ता है।
पोथी पत्री से भी सामान्य कार्य ही किसी प्रकार निपटाये जा सकते है। वे प्रयोजन पूरे नहीं हो पाते जिनके लिए आत्मा से मिलने के लिए आकुल-व्याकुल रहती है। पति पत्नी, माता-पुत्र आदि दूर देशों में रहें तो पत्र व्यवहार से वह मिलन उपक्रम पूरा नहीं हो सकता। विवाह, शादियों, मरण संवेदनाओं के अवसर पर दौड़ कर संबंधियों से मिलने की आवश्यकता पड़ती है। यह कर्म यों तो चिन्ह पूजा की तरह पोस्ट कार्ड लिखकर भी पूरा किया जा सकता है, पर वह आवश्यकता कहाँ पूरी होती है जो सान्निध्य, संपर्क और भावनात्मक आदान-प्रदान की आवश्यकता पूरी हुए बिना चैन नहीं लेने देती।
विचारों के आदान प्रदान का अपना महत्व है पर मात्र इतने भर से ही वह सब कुछ संभव नहीं हो जाता। रेडियो, टेलीविजन में हम बहुत कुछ सुन-समझ पाते हैं फिर भी वह प्रयोजन पूरा नहीं हो पाता जो नारद मुनि के प्रत्यक्ष परामर्श और सान्निध्य से अनेकों ने असाधारण स्तर का साहस एवं परिवर्तन अपने में पाकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव किया था।
अखण्ड ज्योति परिजनों और शान्तिकुँज के ऊर्जा-उद्गम के साथ अधिक घनिष्ट, अधिक प्रत्यक्ष और अधिक प्राणवान आदान प्रदान चल पड़े इसके लिए इन्हीं दिनों विशेष रूप से नया ताना बाना बुना जा रहा है। परिजन उसके लिए पूरी तरह सन्नद्ध और कटिबद्ध हो।
*समाप्त*