दैवी सत्ता द्वारा अदृश्य सहायता

December 1989

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ब्रह्मविद्या के गूढ़ रहस्यों के प्रतिपादनकर्त्ता एवं थियोसोफिकल सोसायटी के संचालकों ने अध्यात्म तत्त्वज्ञान के अनेकानेक पक्षों पर प्रकाश डालते हुए यह प्रतिपादन विशेष रूप से किया है कि दिव्य सत्ताएँ, उदात्त चरित्र व व्यक्तित्व वाले लोगों को तलाशती रहती हैं और उनकी कसौटी पर खरे उतरने पर उन्हें ऊँचे उठने, आगे बढ़ने की प्रेरणा और सहायता समय-समय पर प्रदान करती रहती हैं। इन देव सत्ताओं को उन्होंने 'इनविजिबल हेल्पर्स', 'मास्टर्स' जैसे कई नामों से संबोधित किया है।

संस्था के मूर्धन्य संचालकों यथा— मैडम ब्लैवेटस्की, ओलिवरलॉज, लेडबेटर, एनी बेसेंट आदि लोगों ने इस संबंध में कई प्रामाणिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें 'टाक्स ऑन दि पाथ ऑफ आकल्टिज्म', ' दि लाइट ऑन दि पाथ', 'एट दि फीट ऑफ दि मास्टर्स' प्रमुख हैं। इन पुस्तकों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय यही है कि यदि मनुष्य स्वयं को प्रखर, पवित्र और सात्विक बना ले, स्वार्थ को त्यागकर परमार्थ की ओर प्रवृत्त होने लगे एवं जनकल्याण और समाजोत्थान के कार्यों में अभिरुचि दिखा सके, तो उसे देवात्माओं का अदृश्य अनुदान और वरदान अनायास ही हस्तगत होता रह सकता है।

इन मान्यताओं की पुष्टि में उन अनेकानेक घटनाओं और व्यक्तियों के उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनमें उन लोगों ने सत्प्रयोजनों में निरत रहकर अदृश्य सहयोग अर्जित किए। इन उदाहरणों में यह संभव है कि लोगों को उन सत्ताओं से साक्षात्कार न हुआ हो अथवा किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हो भी गया हो, पर यह अनुभव प्रायः प्रत्येक को हुआ कि उसने अवश्य ही किसी असाधारण कार्य किए हैं, उसमें अवश्य ही किसी परोक्ष सत्ता का पुरुषार्थ भी काम करता रहा है। यह मात्र उसके स्वयं के बलबूते की बात नहीं हो सकती।

इसमें प्रथम उदाहरण थियोसोफिकल की संस्थापिका मैडम ब्लैवेटस्की के जीवन का है। जीवन के अंतिम दिनों में वे एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'सीक्रेट डॉक्ट्रिन' के प्रणयन में लगी हुई थी। आधा ग्रंथ लिखा जा चुका था और आधा शेष था। इन्हीं दिनों वह गंभीर रूप से बीमार पड़ीं। ऐसा लगता था कि इस बीमारी से वह उबर न सकेंगी, पर इस संभावना को गलत सिद्ध करती हुई आश्चर्यजनक ढंग से वह स्वस्थ हो गईं। बाद में उनने बताया कि इसी मध्य एक देवसत्ता, जिसे वह प्रायः 'मास्टर' कहकर पुकारती थीं, प्रकट हुई और यह संदेश दे गई कि यद्यपि तुम्हारी मृत्यु अवश्यंभावी है, पर तुम तब तक जीवित रहोगी, जब तक तुम्हारा ग्रंथ पूरा न हो जाए। इसमें मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। हुआ भी ऐसा ही। उनका ग्रंथ पूरा हुआ और कुछ दिन पश्चात उनकी मृत्यु हो गई।

इस ग्रंथ के बारे में वह प्रायः कहा करती थीं कि यह उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ और महानतम ग्रंथ है। इसमें उनने अध्यात्म के उन गूढ़ और अनुभूत तत्त्वों का विवेचन किया है, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। यह उत्कृष्ट रचना यदि अधूरी रह जाती, तो संस्था और समाज एक अनूठी और अनमोल कृति से वंचित ही रह जाते, पर ‘मास्टर’ की सहायता ने ऐसा कुछ न होने दिया। ग्रंथ पूरा हुआ एवं अपने समय का एक विश्वकोष कहलाया, जिससे अगणित व्यक्ति प्रेरणा-प्रकाश पाते हैं।

टीपू सुल्तान की गणना अपने समय के सफलतम शासकों में होती है। सन 1799 में इस अप्रतिम योद्धा ने श्रीरंगपट्टम में जब युद्ध करते हुए वीरगति पाई, तो राजमहल से उसकी एक व्यक्तिगत डायरी प्राप्त हुई, जिसमें उसने अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख कर रखा था। डायरी से यह भी ज्ञात हुआ कि सुल्तान को महत्त्वपूर्ण विषयों पर समय-समय पर दैवी चेतना की अंतःप्रेरणा भी होती थी। उसी के आधार पर वह अपनी नीति का निर्धारण करता था। उसे अपने साथ होने वाले कुचक्रों व युद्धमृत्यु की जानकारी भी बहुत समय पूर्व मिल गई थी। इसका उल्लेख भी उसने डायरी में किया था।

कभी-कभी साधारण, किंतु निर्मल हृदय वाले व्यक्तियों पर भी दैवी अनुकंपा बरसती है। ऐसी ही एक घटना का उल्लेख डॉ. एलेक्सिस कैरेल की 'अन टू दि अननोन' नामक पुस्तक में है। जिसमें दैवी सहायता एक किसान को मिली थी। बकिंघमशायर में बर्नहालवियो ग्राम के निकट एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। उसने अपने दो छोटे बच्चों को समीप के एक पेड़ के नीचे खेलता छोड़ दिया। किसान काम में इतना व्यस्त हुआ कि उसे अपने बच्चों का ध्यान ही न रहा। दोनों बालक खेलते-खेलते घने जंगल में चले गए और रास्ता भटक गए।

किसान शाम को जब घर पहुँचा तो बच्चों को न पाकर चारों ओर उसकी ढूँढ-खोज शुरू की। अब तक अँधेरा बढ़ चुका था। इधर-उधर खोजने के बाद किसान व उसके कुछ पड़ोसी उस वृक्ष की ओर चल पड़े, जहाँ बालक खेल रहे थे। दूर से उन्होंने वहाँ एक दिव्य, नीली ज्योति जलते देखी। जब निकट पहुँचे, तो वह ज्योति धीरे-धीरे जंगल की ओर बढ़ चली। सभी लोगों ने उसका अनुसरण किया। बढ़ते-बढ़ते वह ज्योति ठीक वहीं पहुँची, जहाँ दोनों सकुशल बच्चे एक पेड़ के नीचे सोए हुए थे। माता-पिता ने बच्चों को जैसे ही गोद में उठाया, वह अद्भुत प्रकाश अंतर्ध्यान हो गया। वस्तुतः वह दैवी चेतना ही थी। जिसने प्रकाश रूप में माँ-बाप को मार्गदर्शन और बच्चों को संरक्षण दिया।

युद्ध के दौरान एवं उसके उपरांत अनेकानेक रूपों में कितने ही पूर्वाभास द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो ब्रिटिश प्रधानमंत्री श्री चर्चिल को होते रहे थे। इन्हें उनने 'इनर वायस' अथवा 'अंतः की पुकार' नाम दे रखा था। इसे दैवी प्रेरणा, परोक्ष सहायता, पूर्वाभास, अदृश्य दर्शन, परोक्ष श्रवण कुछ भी कहा जा सकता है। जो इन्हें ग्रहण करने की सामर्थ्य रखते हैं अथवा दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि जिनमें लोकमंगल की उमंगे उठती और क्रियान्वित होती हैं, उन सबको अदृश्य दैवी सत्ता का सहयोग और मार्गदर्शन सदा उपलब्ध होते रहते हैं। इसे परोक्ष सत्ता की ओर से दैवी चेतना का अटल आश्वासन समझा जा सकता है।


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