जागरण गान (कविता)

December 1989

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कल्पनाओं जागरण का शंख फूँको,

भावनाओं रश्मियों के गीत गाओ।

       ऊर्जा चैतन्य की, गंगा बहाती,

       फूटती है प्राण से जीवन-प्रभाती, 

       रश्मियों का तेज यों उफना रहा है,

       आदमी की चेतना है, थरथराती।

प्राण कवि के गुनगुनाओ, गुनगुनाओ,

आदमी की जिंदगी के गीत गाओ।

भावनाओं, रश्मियों के गीत गाओ॥

        हार को गलहार जीवन भर बनाया,

        जिंदगी को भार जीवन का बनाया,

        प्यार की रसधार भी संसार को दो,

        श्वास को अंगार जीवन भर बनाया।

प्रेरणाओं प्यार का संगीत छेड़ो,

साधनाओं आदमी की प्रीति गाओ, 

कल्पनाओं, जागरण का शंख फूँको,

भावनाओं, रश्मियों के गीत गाओ।

                               -लाखन सिंह भदौरिया 'सौमित्र'



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