योगसूत्र में स्वप्न की विवेचना करते हुए बताया गया है कि जब व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक अथवा स्वभावतः स्मृति से विस्मृति में, चेतनावस्था से अचेतनावस्था में प्रविष्ट होता है, तो चेतन और अचेतन की सम्मिश्रित प्रक्रिया यानी अर्द्धचेतन स्थिति में चला जाता है। इसी को स्वप्नावस्था कहा गया है। इस अवस्था में व्यक्ति अपनी शारीरिक एवं मानसिक प्रवृत्तियों के अनुरूप निद्रा में जो दृश्य देखता है, उन्हीं को स्वप्न कहते हैं। पित्त-प्रधान प्रवृत्ति वाले अग्नि और प्रकाश, वात-प्रधान व्यक्ति को आकाशगमन तथा कफ-प्रधान व्यक्ति को जल-जलाशयों से संबंधित चित्र-विचित्र दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं।
अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध स्वप्न विशेषज्ञ प्रो. कैल्विन हाॅल के कथनानुसार निद्रावस्था के समय उठने वाली परिकल्पनाओं के अंतर्गत दिखने वाले दृश्यों को स्वप्न कहते हैं। उनकी विचारधाराएँ भारतीय तत्त्वदर्शियों से पूरी तरह मेल खाती हैं। उनने स्वप्न को एक प्रकार की मानसिक-प्रक्रिया ही बताया है। प्रायः देखा जाता है कि निद्रावस्था में मनुष्य की मानसिक प्रवृत्तियाँ सर्वथा निर्जीव-निस्तेज नहीं हो जाती। जाग्रत अवस्था में जो शृंखला मानसिक वृत्तियों की दिखती हैं, वह अवश्य नष्ट हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में अनेकानेक तरह की कल्पनाएँ और दृश्य अंतर्मन में उभरकर आते हैं, उन्हीं को स्वप्न कहा गया है। सपनों में कहने-सुनने की अपेक्षा दृश्य वाले भाग की ही बहुलता होती है। इसलिए सामान्य बोल-चाल की भाषा में स्वप्न देखना ही कहते हैं।
स्वप्न दिखते क्यों हैं? इसका जवाब भौतिक विज्ञान के पास नहीं। इनके आदि कारणों की खोज करना तो अध्यात्म विज्ञान का विषय है। मानवी मस्तिष्क की तुलना एक ऐसे विलक्षण कम्प्यूटर से की गई है, जो अरबों-खरबों की संख्या में स्थूल और सूक्ष्म स्मृतियों को सुरक्षित रखने में पूर्णतः सक्षम है। हम जो कुछ भी देखत-सुनते, पढ़ते अथवा अनुभव करते हैं, उसकी छाप हमारे स्मृतिपटल पर पड़े बिना नहीं रह सकती। वही स्वप्न के माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा सांकेतिक रूप से व्यक्त होती रहती है।
रूस की ओस्कौरोखोदोवा, जो पाँच वर्ष की आयु में ही अंधी, बहरी, गूँगी हो गई थी, ने अपनी अक्षमताओं के बावजूद भी लेखनकला में प्रवीणता— पारंगतता हस्तगत कर दिखाई है। उनने 'माई परसेप्शन एंड कंसेप्शन ऑफ द वर्ल्ड' एक पुस्तक लिखी है, जिसमें स्वप्नों की सार्थकता पर ही प्रकाश डाला है। उनके मतानुसार आँखों से देखे बिना भी घटनाओं का आभास स्वप्न में होने लगता है। वैज्ञानिकों ने इस तथ्य का विवेचन करते हुए बताया है कि अंधों को स्वप्न में भले ही चित्रांकन होता दिखाई न पड़े, फिर भी उनके संकेतों को ध्वनि और गंधों के माध्यम से समझ करने में वे पूरी तरह सफल होते हैं। सपने मनुष्य की प्रवृत्ति और प्रकृति के अनुरूप ही दिखाई देते हैं।
ब्रह्मसूत्र में महर्षि वेदव्यास ने स्पष्ट किया है कि स्वप्न भविष्य में घटित होने वाले शुभ-अशुभ घटनाक्रमों के प्रतीक होते हैं। यह व्यक्ति की इच्छाशक्ति व विवेकशीलता पर निर्भर है कि वह अशुभ को टाले, शुभ का लाभ उठाए। स्वप्न विज्ञान की नवीनतम खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि स्वप्नावस्था में अवचेतन मन अधिक सक्रिय रहता है, विवेक का अनुगामी और संवेदनशील भी। सपने अपनी प्रतीकात्मक भाषा में कहीं हमें परामर्श देते हैं तो कहीं उपयुक्त मार्गदर्शन। सपनों के समुचित विश्लेषण से मानव मन की दुःखद ग्रंथियों और कुंठाओं की उपचार-व्यवस्था भी बिठाई जा सकती है। जटिल-से-जटिल समस्याओँ का समाधान भी संभव है। स्वप्न चिकित्सा का मूलभूत आधार यही है।